Thali, “थाली” Hindi motivational moral story of “Santram” for students of Class 8, 9, 10, 12.
थाली
Thali
संतराम (बी०ए०) गवर्नमेंट कालेज, लाहौर में बी०ए० के छात्र थे। एक दिन भोजन कक्ष में भोजन करने बैठे और एक साथी से जानबूझ कर छू गए। वह भी भोजन कर रहा था। बस फिर क्या था ? वह छात्र तो आग-बबूला हो उठा। अपनी थाली वहीं छोड़ते हुए रसोइए से बोला, ‘सांतु, मुझ से छू गया है, मेरी थाली का खर्च इसके नाम लिखना। दुष्ट कहीं का।’
संतराम ने अब तो उसकी बाँह पकड़ ली और वहीं बिठा कर कहा, “ज़रा अपनी यह क्रीस्ती टोपी उतारकर उलटी रखना।” उसने टोपी उतारी तो पूछा, “यह इसके भीतर पट्टी किसकी है ?” वह बोला ‘खाल की है।’ “तो क्या मैं इस टोली में लगी मरी हुई खाल से भी ज्यादा अछूत हो गया। जो तू थाली छोड़ कर भागता है ? इस टोपी को तो तू सिर पर बिठाए घूमता है। जाओ, अब छोड़ दो थाली और भूखे मरो। मैं इस थाली का खर्च हार्गिज चुकाने वाला नहीं। ” और वह छात्र भोजन करने बैठ गया।