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Suryakant Tripathi “Nirala” “सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला'” Hindi Essay, Paragraph in 700 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

Suryakant Tripathi “Nirala”

अपनी स्वच्छन्द प्रकृति के अनुरूप काव्य को भी स्वछन्द बनाने वाले स्वर्गीय ‘निराला’ जी हिन्दी साहित्य के अनूठे व्यक्ति थे। आपने ही सर्वकाय काव्य में छन्द बन्धन को तोड़कर मुक्त छन्द कविता का प्रणयन किया। तात्पर्य यह कि केवल गीतात्मक काव्य ही उनका मूलाधार बना। आपकी प्रारम्भिक रचनाओं में छायावादी प्रकृति प्रेम और मधुर कल्पना के दर्शन होते हैं। यथा-

सखि, बसन्त आया।

आदृत वाणी-उर सरीसस उठे,

स्वर्ण शस्त्र-अंचल ।

पृथ्वी कलिहरा था।

इनका जन्म माघ शुक्ल पंचमी संवत् 1955 वि. को महिषादल राज्य (बंगाल) में हुआ था। मेगढ़कालो (उन्नाव) के रहने वाले थे। इनके पिता इसी छोटे राज्यों में सरदार थे। बचपन से ही निराला जी प्रगतिशील थे। इनकी पढ़ाई का प्रारम्भ काद्रवल्य राज्य की ओर से था। संगीत की शिक्षा के लिए व्यक्ति नियुक्त थे। किन्तु पिता के दिवंगत होने के बाद अध्ययन का क्रम बिगड़ गया। फिर भी आपने बंगला और अंग्रेजी साहित्य का गम्भीरता से अध्ययन किया था। संस्कृत की तो बड़ी गर्भित शिक्षा प्राप्त की थी। संगीत का जैसा और जितना गंभीर एवं व्यापक ज्ञान इन्हें था उतना हिन्दी में इनके युग के किसी को नहीं। आधुनिक हिन्दी कविता में नये ढंग के गीतों का आविष्कार इन्होंने किया। इनके गीतों का संगीत वाला पक्ष इतना व्यापक है कि शास्त्रीय संगीत की कसौटी पर विज्ञ संगीतज्ञ भी चकित रह जाते हैं। यद्यपि इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगला के ही माध्यम से हुई और प्रारम्भिक जीवन में इन्होंने बंगला में ही कविता लिखनी प्रारम्भ की किन्तु इनकी धर्मपत्नी श्रीमती मनोरमा देवी ने इन्हें खड़ीबोली हिन्दी की ओर प्रेरित किया। फिर तो परमहंसेश्वराय कृष्ण तथा स्वामी विवेकानन्द और बंकिमचन्द्र चटर्जी की वाणियों का अनुवाद खड़ीबोली में इन्होंने किया। गोविन्ददास की पदावली का अनुवाद ब्रज भाषा में किया। ब्रजभाषा पर भी इनका पूर्ण अधिकार था।

‘जुही की कली’ नामक कविता बहुत प्रसिद्ध है, ‘तुम और मैं’, कविता में भावनाओं का सौन्दर्य द्रष्टव्य है। तथा ‘संध्या-सुन री’, ‘यमुना’ आदि ऐसी ही सरस कविताएं हैं लेकिन कल्पना का जो सौजन्य पन्त जी में है, वह यहाँ नहीं, निराला जी में अधिक था। ‘जागरण’ नामक कविता में देशप्रेम की अच्छी झलक मिलती है। आपकी प्रगतिवादी कविताओं में ‘तोड़ती पत्थर’ एवं ‘कुकुरमुत्ता’ प्रधान हैं। किन्तु छायावादी प्रारम्भिक कविताओं में संगीत का माधुर्य है। ‘गीतिका’ में ऐसे ही गीतों का संग्रह है। इसके संबंध में स्वयं कवि का कथन है:-“जो संगीत कोमल, मधुर और उच्चभाव, तदनुकूल भाषा और प्रकाशन से व्यक्त होता है उसके साफल्य की मैंने कोशिश की है।” ताले प्रायः सभी प्रचलित हैं। प्राचीन ढंग से रहने पर वे नवीन कण्ठ से नया ढंग पैदा करेंगी। प्रारम्भिक कविताएं ‘परिमल’ में संगृहीत हैं। इनके अतिरिक्त ‘अनामिका’ तुलसीदास, ‘आराधना’ आदि आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

भाषा यों तो खड़ी बोली है, किन्तु उसमें यत्र-तत्र ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग देखा जाता है। शैली की सबसे बड़ी विशेषता शब्द-चित्रांकन है। इस दृष्टि से ‘विधवा’ तथा ‘भिक्षुक’ नामक कविताएं दर्शनीय हैं-

वह इष्टदेव के मन्दिर की पूजा-सी

वह दीप-शिखा सी शान्त-भाव में लीन,

वह क्रूर-कास तांडव की स्मृति रेखा-सी,

वह टूटे तरु की छुटी लता-सी दीन

दलित भारत की ही विधवा है। – विधवा

तथा

वह आता

दो टूक कलेजे को करता पछताता पथ पर आता

पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक

चल रहा लकुटिया टेक। – भिक्षुक

निराला की कविता का अलंकार-विधान बहुत मार्मिक है। ‘कुकुरमुत्ता’ नामक कविता में प्रतीकों का सार्थक प्रयोग किया गया है। ‘तुम और मैं’ कविता में रहस्यवादी वृत्ति की झलक दिखाई पड़ती है:-

तुम पथिक दूर के श्रांत

और मैं बाट जोहती आशा

तुम भवसागर दुस्तर

पार जाने की मैं अभिलाषा।

छायावादी अन्य कवियों में डॉ. रामकुमार वर्मा, श्री भगवतीचरण वर्मा, नरेन्द्र प्रभृति नाम उल्लेख्य हैं। चूंकि वैयक्तिकता गीतात्मक छायावादी काव्य की अपनी विशेषता है इसलिए यहाँ प्रसंगानुकूल गीतिकाव्य के संबंध में विचार करना आवश्यक है। ‘गीत’ शब्द का सम्बन्ध आज अंग्रेजी के लिरिक (Lyric) शब्द से जोड़ा जाता है। इसमें अधिकतर वैयक्तिक जीवन के दुःख सुखात्मक भावों की अभिव्यक्ति होती है, साथ ही संगीतात्मकता इनका विशिष्ट आकर्षण है। गीतकार की रागात्मकता जब आत्म-निवेदन के रूप में अभिव्यक्ति पाती है, तब वहाँ महादेवी जैसे रहस्यवादी काव्य का प्रस्फुटन होता है। गांवों की एकता और संक्षिप्तता यहाँ गीतकार कोमल-पदावली में व्यक्त करता है। इनकी सर्वोपरि विशेषता सम्बन्धी, रहस्यवादी, प्रेम-सम्बन्धी और राष्ट्र सम्बन्धी विविध प्रकार के हो सकते हैं। बन्ध की दृष्टि से इन्हें मुक्तक काव्य के अन्तर्गत रखा जाता है। यों तो गीतिकाव्य का प्रारम्भ हिन्दी के प्रारम्भिक काल में गीतकार विद्यापति में ही मिल जाता है लेकिन वर्तमान हिन्दी काव्य का तो यह अपना निजी-वैशिष्ट्य है।

निराला हिन्दी के क्रांतिकारी कवि हैं। भारत-भारती के मुख की लाली रखने वाली कृषि-सन्तानों में इनका स्थान अत्यन्त उच्च है। हिन्दी साहित्य में महारथियों की कोटि में आपका नाम बड़े सम्मान, श्रद्धा तथा गौरव से लिया जाता है।

 

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