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Sahitya Devta, “साहित्य देवता” Hindi motivational moral story of “Makhan Lal Chaturvedi” for students of Class 8, 9, 10, 12.

साहित्य देवता

Sahitya Devta

सन् 1944 में हरिद्वार साहित्य सम्मेलन में माखन लाल चतुर्वेदी सभापति चुने गये। उन्हें हाथी पर बिठाकर जुलूस निकाला गया और चांदी के रुपयों से तौला गया। कुल चार हजार आठ सौ रुपये जमा हुए। अपने इस स्वागत से अभिभूत दादा माखनलाल चतुर्वेदी डा० रामकुमार वर्मा से बोले। “रामकुमार, इस सरस्वती देवी की कृपा तो देखो कि छठी क्लास तक पढ़ा हुआ, नांगल स्कूल का मास्टर आज ‘अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन’ का सभापति हुआ है और हरिद्वार जैसे पुण्य क्षेत्र में उसका तुलादान चाँदी के रुपयों से हुआ, जब मैं बीस रुपये मासिक का मास्टर था, तब क्या इसकी कल्पना भी कर सकता था।”

डा० राजकुमार वर्मा ने कहा, “पंडित जी, यह आपकी साहित्य साधना है, आप अध्यापक माखनलाल नहीं है, साहित्य देवता माखनलाल हैं।’

इसके बाद माखनलाल चतुर्वेदी ने जो ग्रन्थ लिखा, उसका नाम था, ‘साहित्य देवता’।

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