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Mera Priya Aitihasik Veer Purush “मेरा प्रिय ऐतिहासिक वीर पुरूष” Hindi Essay 600 Words for Class 10, 12.

मेरा प्रिय ऐतिहासिक वीर पुरूष

Mera Priya Aitihasik Veer Purush

मेरे प्रिय ऐतिहासिक वीर पुरुष शिवाजी हैं। वे एक राष्ट्र निर्माता थे। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों के विरुद्ध लड़ाई की। वे निर्बल और निर्धन के रक्षक थे। उनका जन्म 1627 में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर के सुल्तान के एक जागीरदार थे। उनकी माता जीजाबाई एक धार्मिक स्त्री थीं। शिवाजी के चरित्र निर्माण में उनका बड़ा योगदान था।

उन्हें पढ़ने के लिए विद्यालय में नहीं भेजा गया था। उनके शिक्षक, दादा जी कोण्डदेव ने न केवल उन्हें पढ़ना-लिखना ही सिखाया अपितु युद्धकला का ज्ञान भी दिया। उनकी माता ने उन्हें रामायण और महाभारत के वीर पुरुषों की कथाएं सुनाईं। इसके अलावा उन्होंने धर्म के प्रति उनमें आस्था उत्पन्न की। इस सम्बन्ध में मराठी कवियों रामदास और तुकाराम का प्रभाव भी उन पर बहुत पड़ा था।

बचपन से ही उनमें वीर पुरुष बनने के लक्षण थे। शिवाजी ने बाल अवस्था से ही एक साहसिक सरदार के रूप में अपनी गतिविधियाँ शुरू कर दीं। उन्होंने निष्ठावान योद्धाओं का एक दल बनाया। उनकी सहायता से वे किले पर किले जीतते गये। जब उन्होने कोंकण को जीता तो बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खां के नेतृत्व में एक बड़ी सेना उनके विरुद्ध भेजी। परन्तु अफजल खां मारा गया और उसकी सेना को हार का सामना करना पड़ा।

इसके बाद शिवाजी ने मुगलों के क्षेत्र को जीतना शुरू कर दिया। शिवाजी की गतिविधियों से औरंगजेब क्रोधित हो गया। इसलिए उसने अपने मामा शायस्ता खां को उनसे युद्ध के लिए भेजा। शिवाजी उसे भी भगाने में सफल हुए। फिर औरंगजेब ने राजा जयसिंह को उनके विरुद्ध भेजा। राजा को कुछ सफलता मिली। शिवाजी और मुगल बादशाह के बीच शन्ति की स्थापना हुई। राजा ने शिवाजी को मुगल दरबार में जाने के लिए प्रेरित किया। वे दिल्ली गये जहाँ उन्हें बन्दी बना लिया गया। वे मिठाई के टोकरों में बैठकर भाग निकलने में सफल हो गये और एक साधु के वेश में अपने देश में वापस पहुँच गये।

फिर राजा जसवन्तसिंह को शिवाजी के खिलाफ भेजा गया। राजा शिवाजी के साथ मित्रता के सम्बन्ध बनाना चाहते थे और उन्होंने 1667 में औरंगजेब से अनुरोध किया कि शिवाजी को राजा का खिताब दे दिया जाए। परन्तु 1670 में युद्ध फिर से छिड़ गया। अब शिवाजी इतने शक्तिशाली हो चुके थे कि उन्होंने औरंगजेब के संरक्षण के अधीन राजाओं आदि से “चौथ” देने की मांग की। 1676 में शिवाजी ने अपने आपको एक स्वतंत्र राजा होने की घोषण कर दी। चार वर्ष के बाद इस महान योद्धा का राजगढ़ में देहान्त हो गया।

उनके चारित्रिक गुणों की प्रशंसा उनके कटु आलोचक इतिहासकार खाफी खां ने भी की है। उनके चारित्रिक गुणों की अनेक कथाएं आज भी प्रचलित हैं। युद्ध के दौरान भी उन्होंने अपने सैनिकों को चारित्रिक नैतिकता बनाये रखने के लिए कहा था।

शिवाजी महान चरित्र वाले व्यक्ति थे। वे सत्यवादी, योग्य और शूरवीर थे। वे अपने शत्रुओं के प्रति भी उदार थे। वे मानव के जन्मजात नेता थे और मानवता के प्रेमी थे ।

उन्हें एक राष्ट्रीय वीर पुरुष माना जाता है। शिवाजी ने दक्षिण में एक हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने मुसलमानों के आक्रमण से हिन्दू-धर्म की रक्षा की। उन्होंने मराठों को एक सुदृढ़ और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में संगठित किया और उनमें नवीन उत्साह भर दिया था। वे बहादुर योद्धा और योग्य प्रशासक थे। वे महान कूटनीतिज्ञ, चतुर राजनीतिज्ञ और कार्यकुशल व्यक्ति थे।

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