Khalsa Panth “खालसा पंथ” Hindi Essay 500 Words for Class 10, 12 and Higher Classes Students.
खालसा पंथ
Khalsa Panth
सिक्ख धर्म सबसे नया है और इसलिए, वर्तमान में विश्व के सभी धर्मों में सबसे आधुनिक धर्म होने का दावा किया जा सकता है। सिक्ख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव (1469-1539) ने ‘न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान है; सभी मानव हैं, के नारे के साथ अपना पुनीत कार्य प्रारंभ किया जिसमें मानवता में भाईचारे को प्रमुख स्थान दिया गया। गुरु नानक को विश्वास था कि सक्रिय जीवन ध्यान-प्रार्थना वाले जीवन से बेहतर होता है। वही सच्चे सिक्ख होंगे जो कठिन परिश्रम करेंगे और निर्धनों के बीच अपनी आय बाँटेंगे। गुरु नानक हिंदुओं को अच्छे हिंदू और मुसलमानों को अच्छे मुसलमान के रूप में देखना चाहते थे।
लूट-पाट के उदेश्य से बार-बार आक्रमण करने के बाद उत्तर-पश्चिम के घुसपैठियों का भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कर बाबर के साथ रहने का निर्णय यह समय की जरूरत थी।
गुरु नानक के उत्तराधिकारी हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र बढ़ाने के अपने अभियान में लगे रहे। अमृतसर में सिक्खों के पावन मंदिर गर्भगृह, हरि मंदिर की आधारशिला रखने के लिए मुसलमानों के धर्मोपदेशक, मियां मीर को आमंत्रित कर सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव (1563-1606) ने प्रशंसनीय कार्य किया। सिक्ख धर्म को एकीकृत करने के लिए उन्होंने पवित्र ग्रंथ की रचना की। गुरु अर्जुन देव की असाधारण उदारता का प्रमाण इस तथ्य में मिलता है कि सिक्ख गुरुओं की वाणी में; उन्होंने विभिन्न जाति और वर्ग, धर्म और व्यवसाय के 36 धर्मोपदेशकों की रचनाओं का समावेश किया। उनमें बंगाल के जयदेव, अवध के सूरदास, महाराष्ट्र के नामदेव, त्रिलोचन और परमानंद, उत्तर प्रदेश के बेणी, रामानंद, पीपा, सैन, कबीर, रविदास और भीखन, राजस्थान के धन्ना और पक्पत्तन (अब पाकिस्तान में) के फरीद थे। कबीर एक जुलाहा थे, नामदेव एक दर्जी थे, धन्ना एक जाट थे, पीपा एक राजा थे, सैन एक नाई थे, रविदास एक चर्मकार थे, फरीद इस्लाम धर्म के विद्वान थे और सूरदास एक रहस्यवादी एवं कवि थे।
मित्रता एवं सद्भाव स्थापित करने के लिए वचनबद्ध लोगों को समाज के साम्प्रदायिक एवं धर्मांध तत्वों के विरोध का सामना करना पड़ा। गुरु अर्जुन देव ने पवित्र ग्रंथ में द्वेष रखने वाले अन्य धर्मों की निंदा की थी। तुच्छ दोषारोपण पर उन्होंने न तो ध्यान दिया और न ही प्रतिरोध किया। तदनुसार, उन्हें यंत्रणा देकर मार दिया गया। वे सिक्ख इतिहास में अहिंसा की वेदी पर पहले शहीद थे जिन्होंने सिक्खों की जीवन-शैली में क्रांति ला दी। गुरु अर्जुन देव के उत्तराधिकारी गुरु हर गोविंद ने पीरी (भक्ति) और मीरी (राजनीति) दोनों को स्वयं में आत्मसात कर लिया।
संत जन संत-सैनिक में परिवर्तित हो गए और उन्होंने ईमानदारी से काम करने और समाज के लिए धर्मयुद्ध करने में अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया।
इसी तरह नौवें सिक्ख गुरु, गुरु तेग बहादुर के उत्कृष्ट त्याग का संघर्ष लंबा था; गुरु नानक ने केवल धर्म रूप में पवित्र धागा पहनना ही स्वीकार नहीं किया था बल्कि 200 वर्षों के बाद उनके नौवें अवतार ने पवित्र धागे को पहनने के हिंदुओं के अधिकार की रक्षा के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग भी कर दिया।
दसवें सिक्ख गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में वैशाखी के दिन (13 अप्रैल), को युवा वर्ग को अमृतपान कराया जब सिक्ख (शिष्य) सिंह (लायन) में परिवर्तित हो गए। 14 अप्रैल, 1999 को खालसा के जन्म की त्रिशताब्दी सम्पूर्ण विश्व में मनाई गई।