Kashmir Samasya “कश्मीर समस्या पर निबंध ” Hindi Essay, Paragraph in 1000 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.
कश्मीर समस्या पर निबंध
Kashmir Samasya
विश्व में ‘धरती का स्वर्ग’ के नाम से विख्यात कश्मीर आज बहुत ही अशान्त है। ‘स्वर्ग’ का तात्पर्य होता है जहाँ शान्ति हो, वैभव हो। किन्तु धरती के स्वर्ग कश्मीर की स्थिति आज बिल्कुल विपरीत है। सर्वत्र अशान्ति, हिंसा, बलात्कार और प्रदर्शनों को देखकर यह लगता है। क्या हम स्वर्ग की बजाय नर्क में तो नहीं आ गए? लोग आतंक के साये में जीने को विवश है। कश्मीर की प्राकृतिक छटा, हिमालय की सुरम्य घाटियाँ सब कुछ ऐसा ही है, जैसा वर्षों पहले था लेकिन सब कुछ बदला-सा लगता है। कश्मीर में रहने वाले अधिकांश लोगों की आँखें बस एक ही प्रश्न पूछती हुई प्रतीत होती है कि यह सब क्यों और कैसे हुआ? क्या कभी इससे छुटकारा मिलेगा?
जम्मू कश्मीर; आज जिस पर पहले हिन्दू राजाओं ने, उसके बाद मुस्लिम सुल्तानों ने शासन किया, अकबर के शासन काल में मुगल साम्राज्य का अंग बन गया। 1750 ई. के आरम्भ में अफगान शासन के बाद 1819 ई. में इसे पंजाब के सिख राज्य में मिला लिया गया। 1846 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू-प्रदेश गुलाब सिंह को दे दिया। 1846 ई. के निर्णायक युद्ध के बाद अमृतसर सन्धि के अधीन कश्मीर का राज्य भी महाराजा गुलाब सिंह को दे दिया गया। उसके बाद सन् 1947 ई. में भारतीय स्वाधीनता अधिनियम पास होने के समय तक यह राज्य अंग्रेजों के अधीन रहा।
स्वाधीनता के बाद सभी रियासतों ने भारत या पाकिस्तान में मिल जाने का फैसला किया किन्तु कश्मीर रियासत ने कहा कि वह भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ पूर्ववत् सम्बन्ध रखना चाहता है। इसी बीच कश्मीर रियासत पर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया और कश्मीर के महाराजा ने भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर करके 26 अक्टूबर, 1947 ई. को कश्मीर राज्य को भारत में विलय करा दिया। पाकिस्तान के आक्रमण को विफल कर देने के लिए भारतीय सेनाएँ कश्मीर घाटी पहुँच गई और पाकिस्तानी सैनिकों को वहाँ से खदेड़ना शुरू कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पाकिस्तानी आक्रमण के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत करने पहुँच गए। पण्डित नेहरू को यद्यपि उस समय भी अनेक नेताओं ने जिसमें सरदार पटेल प्रमुख थे, कहा था कि यू. एन. ओ. में कुछ मामला तय नहीं होगा। आप वहाँ न जाएं, पर नेहरू जी को विश्वास था कि यू. एन. ओ. पाकिस्तान के विरुद्ध कुछ कार्यवाई करेगा। वहाँ प्रस्ताव के बाद भी न तो कुछ होना था, न हीं कुछ हुआ। युद्ध विराम हो गया। कश्मीर का 86 294 वर्ग किलोमीटर भू भाग पाकिस्तान के कब्जे में रह गया और शेष भारत के साथ।
कश्मीर का दुर्भाग्य यह रहा कि वहाँ की अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम है और इन्होंने भारत के साथ रहने का निश्चय किया। धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान के शासक आज तक इस बात को अपने गले से नीचे नहीं उतार सके कि मुस्लिम बहुल कश्मीर क्यों भारत के साथ रहे। 1947, 1965 व 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ जो पाकिस्तानी शासकों की मानसिकता को प्रदर्शित करता है। बार-बार पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर इस बात को उठाता रहा है कि कश्मीर पर भारत ने बलपूर्वक कब्जा किया है और कश्मीर को भारत के कब्जे से आजाद कराया जाए। कुछ मुस्लिम देशों ने धार्मिक संकीर्णता से ग्रसित होकर पाकिस्तान का समर्थन भी किया, किन्तु विश्व की महाशक्तियाँ पाकिस्तान के समर्थन या विरोध में खुलकर सामने नहीं आई। अनेक अवसर ऐसे आए जब सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ ने भारत के पक्ष का समर्थन करते हुए कश्मीर सम्बन्धी प्रस्ताव पर ‘वीटो’ का प्रयोग किया।
कश्मीर समस्या को इस रूप तक पहुँचाने के पीछे पाकिस्तान की घिनौनी करतूत है। कभी कबाइलियों के बहाने, कभी खुफियों के एजेण्टों के रूप में, कभी तथा कथित आजाद कश्मीर के स्वयं-सेवकों के रूप में पाकिस्तान कश्मीर घाटी में घुसपैठ कराकर वहाँ दंगे, हत्याएँ, लूटपाट और सरकारी भवनों को आग लगवाने जैसे घृणित कार्य करता रहा है। अरब देश उसके मुस्लिम मन्सूबों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पूरा कराने में सहयोग देते रहे हैं। अरब का नाम ऐसे देशों में सबसे ऊपर है।
कश्मीर में गरीबी से त्रस्त नवयुवकों को पर्याप्त रोजगार के अवसर न मिलने, पाकिस्तानी ऐजेण्टों द्वारा धन देकर उनसे भारत के विरुद्ध हथियार उठाने और कुछ अन्य स्थानीय समस्याओं ने आज कश्मीर घाटी को एक ऐसा रूप प्रदान कर दिया है, जहाँ भारतीय कहने का साहस शायद ही कोई कर पाता है। कश्मीर के आतंकवादी पाकिस्तानी फौजों द्वारा तथाकथित आजाद कश्मीर में स्थित अड्डों पर प्रशिक्षण प्राप्त करके घाटी में आतंक पैदा कर रहे हैं। इन दिनों आतंकवादियों के तैयार हो सके। 6 संगठन कश्मीर में सक्रिय है। ताकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के विरुद्ध जनमत
सन् 1990 में कश्मीर के इतिहास में यह पहला अवसर था कि वहाँ एक भी पर्यटक नहीं था। 1980 में जहाँ 5 लाख पर्यटक कश्मीर गए थे, वहाँ 1990 में एक भी पर्यटक का न जाना राज्य की 500 करोड़ का घाटा दे गया। कश्मीर का लगभग हर आदमी पर्यटन उद्योग से जुड़ा है। डल झील के किनारे बचे पाँच सितारा होटल, शिकारे, किश्तीवाले सबके सब उग्रवाद के शिकार हो चुके है। श्रीनगर, गुलमर्ग तथा बारामूला में चलने वाले सभी छोटे-बड़े होटल बन्द हो गए। लोग दाने-दाने को तरस रहे हैं। पर उग्रवादियों की इस करतूत के विरुरु कुछ कहने या करने का साहस उनमें नहीं है।
कश्मीर की वर्तमान स्थिति को देखकर यह लगता ही नहीं कि यहाँ भारतीय शासन चल रहा है। जम्मू क्षेत्र जो हिन्दू बहुल क्षेत्र है वहाँ की स्थिति श्रीनगर और घाटी के अन्य नगरों से भिन्न है। इन्दिरा गांधी के शासन में अन्तिम वर्षों में आतंकवाद का जन्म हो चुका था। पर उसकी स्थिति काफी कमजोर थी। 1989 में जब केन्द्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सत्ता संभाली तभी आतंकवादियों को वह सही अवसर मिल गया जिसकी तलाश वह कर रहे थे। 8 दिसम्बर, 1989 को जन्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट नामक संगठन ने भारत के गृहमंत्री मुफ्ती मौहम्मद सईद की पुत्री डॉ. रूबिया का अपहरण कर मिला। यह अपहरण केन्द्र सरकार के लिए खुली चुनौती थी। किन्तु केन्द्र सरकार बहुत ही कमजोर सिद्ध हुई। आतंकवादियों द्वारा डॉ. रूबिया के बदले में कुछ आतंकवादियों की रिहाई की माँग की। तत्कालीन सरकार ने उन आतंकवादियों की रिहाई कर दी। 13 दिसम्बर, 89 को रूबिया मुक्त हो गई। इस प्रकार आतंकवाद के सामने राष्ट्रहित को तिलांजलि देने का कार्य विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने कर दिया। अपहरण का यह सिलसिला आगे भी चलता रहा है। स्वीडिश इंजीनियर, नाहिदा दुरैस्वामी आदि अनेक लोग इसकी अगली कड़ी के रूप में रहे।
कश्मीर में बढ़ती पाकिस्तानी घुसपैठ और धर्म के नाम पर गुमराह युवकों को भारत के विरुद्ध भड़काने की कार्यवाही के कारण कश्मीर की समस्या बहुत ही विकट होती जा रही है। कश्मीरी युवकों का अलगावाद की ओर बढ़ता रूझान संभवतः घाटी में बेरोजगारी के संकट के कारण उत्पन्न हुआ है। सीमा पर कश्मीर से मिलने वाला वन्य और अन्य प्रकार की सहायता ने भी कश्मीर की स्थिति को बदतर बनाया है। अधिकांश हिन्दू कश्मीर से भागकर अन्यत्र शरणार्थी के रूप में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
कश्मीर में अलगाव की समस्या के कारगर ढंग से निबटने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार में जनता का विश्वास जगाया जाए। कट्टर अलगाववादियों, घुसपैठियों और गुमराह युवकों के बीच अन्तर किया जाए। कट्टरपंथियों के साथ सख्ती की जाए। कट्टरपंथियों द्वारा राज्य प्रशासन में जो अपने लोग लगा दिए गए हैं, उनकी पहचान कर उन्हें अलग किया जाए। गुमराह युवकों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश की जाए। घाटी में रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएँ तथा कश्मीर के विकास को प्राथमिकता दी जाए। ऐसा सब करने पर ही कश्मीर एक बार फिर सही अर्थों में स्वर्ग बन सकेगा अन्यथा यह राज्य आतंकवादियों के रहमोकरम पर अपना समय बिताने के लिए अभिशप्त रहेगा।