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Hindi Moral Story, Essay “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते” “Where women are worshipped” of “Mahabharat” for students of Class 8, 9, 10, 12.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते

Where women are worshipped

एक बार भीम को पता चला कि धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी के पैर दबाए हैं, तो उसे बड़ी ग्लानि हुई । वह सोचने लगा कि अब तो उलटा ही होने लगा है। जहाँ पत्नी को पति की सेवा करनी चाहिए, वहाँ पति पत्नी की सेवा करने लगा है। यह काम युधिष्ठिर ही कर सकते हैं। मैं तो ऐसा कदापि नहीं करूँगा ।

बात श्रीकृष्ण को मालूम हुई। वे भीम के पास आए और बोले, “आज रात्रि को सामने के वटवृक्ष पर छिपकर बैठना और जो कुछ दिखाई दे, उसे चुपचाप देखते रहना, पर घबराना बिलकुल नहीं।” इस पर भीम बोला, “कृष्ण! तुम मुझ महापराक्रमी को, जिसके नाम से कौरवों के खेमे में हलचल मच जाती है, डरने की सलाह दे रहे हो!” भीम की यह दंभोक्ति सुन कृष्ण मुसकरा उठे ।

रात्रि को भीम वटवृक्ष पर जा बैठा। डेढ़ प्रहर के बाद उसे नये-नये चमत्कार दिखाई देने लगे। एक तेजस्वी पुरुष आया और उसने सामने की भूमि साफ की। फिर वरुणदेव ने उस पर जलसिंचन किया। विश्वकर्मा के चाकरों ने आकर मंडप और सिंहासनों की व्यवस्था की। धीरे-धीरे एक-एक करके द्वारपाल उपस्थित हुए और फिर शुक्र, वामदेव, व्यास, नारद, इंद्रादि देवों का आगमन हुआ और वे यथाक्रम अपने-अपने आसन पर विराजमान हुए। इतने में उसे चारों पांडव भी आते दिखाई दिए और उन्होंने भी आसन ग्रहण किया। भीम यह देख चकित हुआ कि राजसिंहासन अब भी खाली है। इतने में उसे एक तेजस्वी नारी आती दिखाई दी। उसे देखते ही सारे देवता और ऋषि-मुनि उसके सम्मान में अपने आसन से उठ खड़े हुए। उस नारी के केश खुले हुए थे और भूमि को स्पर्श कर रहे थे। उसके हाथों में त्रिशूल, फरसा, तलवार आदि शस्त्र थे और उसने सिर पर भव्य मुकुट धारण किया था। उसके सिंहासन पर बैठते ही उपस्थित वृंदों ने जय-जयकार किया। भीम ने सोचा कि यह तो महामाया मालूम पड़ती है, किन्तु जब उसने सूक्ष्मता से निरीक्षण किया, तो उसे वह स्त्री और कोई नहीं, वरन् द्रौपदी ही दिखाई दी।

द्रौपदी ने सारे देवताओं से कुशल- समाचार पूछे और फिर यम से पूछा कि आज कितने घड़े भरकर लाए हो?” यम बोला, “देवी! सात घड़ों में से छह तो असुरों के रक्त से भरे हैं, पर एक खाली है।” “वह क्यों भरा नहीं? पूछे जाने पर उसने उत्तर दिया, “अभी कौरव-पांडवों का युद्ध चल रहा है, उसमें भीम के रक्त से यह घड़ा भरा जाएगा।” द्रौपदी ने पुनः प्रश्न किया, “इसे भीम के रक्त से क्यों भरना है?” उत्तर मिला, “क्योंकि उसे अपनी शक्ति का बड़ा ही गर्व है।” “तब तो इसमें देर नहीं लगानी चाहिए।” द्रौपदी ने आदेश किया, “युद्ध के लिए न रुककर, इसे अभी भरा जाए।” इस पर यम बोला, “भीम अभी कहीं दिखाई नहीं देता, वह संभवतः कहीं छिपा हुआ है।” इतने में नारद खड़े हुए और बोले, “भीम सामने के उस वटवृक्ष पर बैठा है।” अब तो भीम भय से काँपने लगा, उसका शरीर पसीने से तर हो गया। उसने सोचा, इस आपत्ति से द्रौपदी ही उसे बचा सकती है, उसी की शरण जाना चाहिए। वह वृक्ष पर से कूद पड़ा और उसने द्रौपदी के चरण पकड़ लिये। इतने में श्रीकृष्ण के शब्द सुनाई पड़े, “”अरे भीम, इतने पराक्रमी होकर भी तुम अपनी पत्नी के पैर पकड़े हुए हो?” इस पर भीम ने उत्तर दिया, “द्रौपदी सामान्य स्त्री नहीं, प्रत्युत साक्षात् महामाया है।” यह सुन श्रीकृष्ण एकदम हँस पड़े और तब भीम के सामने का सारा दृश्य ओझल हो गया। न तो वहाँ सिंहासन था, न द्रौपदी और न देवता-मुनि, सामने केवल श्रीकृष्ण खड़े मुसकरा रहे थे।

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