Hindi ke Vikas mein Yogdaan “हिन्दी के विकास में योगदान” Hindi Essay, Paragraph in 1000 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.
हिन्दी के विकास में योगदान
Hindi ke Vikas mein Yogdaan
हिन्दी के इतिहास के अध्ययन करने पर यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि विगत हजार वर्षों से ऐसे लेखकों ने हिन्दी में श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की हैं जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं थी। पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, आंध्र और कर्नाटक तक के लोगों का हिन्दी के प्रति विशिष्ट अवदान रहा है। हिन्दी के आदिकाल से आज तक ऐसे लोग हिन्दी में सृजन कार्य करते हैं।
महापण्डित राहुल सांकृत्यायन अपभ्रंश ने सुप्रसिद्ध लेखक स्वयंभू को हिन्दी का प्रधान ग्रंथकार तथा उनके ग्रंथ ‘पउम चरित्र’ अर्थात् ‘पउम चरित’ को हिन्दी का प्रथम ग्रंथ स्वीकारा है। स्वयंभू कर्नाटक के निवासी थे इनके परवर्ती राष्ट्रकुल दरबार के कवि पुष्यदन्ति ने स्वयंभू की शैली का अनुसरण कर ‘महापुराण’ की रचना की।
पंजाब के सिद्ध और नाथपंथी योगियों ने हिन्दी का विकास किया। जालंधर में जन्मे जालंधरनाथ जिन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है भाषा से सम्बन्धित तमाम पुस्तकों की रचना हिन्दी में की जिनमें ‘विमुक्त मंजरी गीत’ सर्वाधिक जनप्रिय हुआ । इनके पश्चात् चौरंगीनाथ, रतननाथ, महेन्द्रनाथ, गोरखनाथ आदि संत कवियों ने हिन्दी में कई नये ग्रन्थों की रचना की। हिन्दी में काव्य परम्परा का विशिष्ट स्थान है। इस परम्परा के उद्भव में मुल्तान के अब्दुल रहमान की रचना ‘सन्देश रासकपरवर्ती’ कवियों के लिए आदर्श बनी, जिसके अनुरूप 14वीं तथा 15वीं शताब्दी में ‘पृथ्वीराज रासो’, ‘हम्मीर रासो’ जैसे अनेक ग्रंथ रचे गये। पृथ्वीराज रासो के कवि चन्दबरदाई लाहौर के निवासी थे। पंजाब के गुरुनानक देवजी ने हिन्दी का संवर्द्धन किया। गुरु अंगदेव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु तेगबहादुर तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी ने स्वयं तो हिन्दी में लिखा ही, साथ ही गुरु गोबिन्दसिंह जी ने अपने दरबार में हिन्दी के बावन कवियों को संरक्षण भी प्रदान किया। हिन्दी का सर्वाधिक प्राचीन गद्य ग्रंथ 1730 ई. में पंजाब के रामप्रसाद निरंजनी द्वारा ‘भाषाभाव वशिष्ठ’ के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस भाग के प्रारंभिक दिनों में पं. इन्द्रनाथ ज्योति, स्वामी श्रद्धानंद, सत्यकेतु विद्यालंकार जैसे प्रसिद्ध पत्रकार पंजाबी भाषी थे। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वालों में उल्लेखनीय राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन पंजाबी भाषी थे। जामनगर में जन्मे गुजरात के निवासी प्राणनाथ ने हिन्दी में पदावली लिखी और कुरान का हिन्दी में अनुवाद किया। गुजरात के अन्य कवियों में गोपालदास, मुकुन्ददास, कृष्णदास, प्रीतमदास, बिहारीदास, निर्मलदास मनोहरदास, अनुभावानन्द, बापू साहिब गायकवाड़ आदि रचनाकारों ने हिन्दी को गौरव प्रदान किया। हिन्दी के वर्तमान स्वरूप को खड़ी बोली का नाम गुजरात के लल्लूजी ने ही दिया। उल्लूजी लाल की नियुक्ति फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दी ग्रंथ रचना हेतु अंग्रेजी सरकार ने की थी। हिन्दी के प्रभाकरप्रसाद, गुजरात के निवासी दयानन्द और महात्मा गांधी का योगदान महत्त्वपूर्ण है। स्वामी जी ने अपना ग्रंथ ‘सत्यार्थप्रकाश’ हिन्दी में ही लिखा। उनके द्वारा संस्थापित आर्य समाज ने हिन्दी को ही समाज की प्रमुख भाषा के रूप में स्वीकार किया। आर्यसमाज के लोग जब फिजी, गुयाना आदि देशों में गये तो उनके साथ हिन्दी भी वहाँ पहुँची। हिन्दी को भारत की जनभाषा भी बनाने का श्रेय बहुत कुछ गाँधी जी को ही है। उनका स्पष्ट अभिमत था – “हिन्दी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी भी चाहिए।” दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु गाँधी जी ने अपने पुत्र देवदास को भेजा था।
हिन्दी के विकास हेतु महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर, मुक्ताबाई, दामोदर पंडित, चक्रधर कवि नामदेव आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। ज्ञानेश्वर ने हिन्दी के माध्यम से निर्गुण भक्ति द्वारा प्रचार-प्रसार किया। सन्त नामदेव जी 14वीं शताब्दी में हुए। उन्होंने पद, साखी, दोहे, भजन आदि लिखकर हिन्दी के साहित्य भंडार को सम्पन्नता प्रदान की। आधुनिक युग में मराठी के रचनाकारों ने हिन्दी को बहुत कुछ प्रदान किया। सर्वश्री माधवरावजी सप्रे, बाबूराव विष्णु पराड़कर, लक्ष्मण नारायण गर्दे, सिद्धनाथ माधव आगरकर, रघुनाथ कृष्ण ज्वाडलकर आदि हिन्दी जगत् के स्मरणीय मराठीभाषी पत्रकार थे। हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार प्रभाकरलाल जन्मना मराठी भाषी थे। हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार प्रभाकर माचवे जन्मना मराठी भाषी थे।
हिन्दी के प्रति आन्ध्र प्रदेश का भी अपना अवदान है। उत्तर भारत में भक्तिकाल की सुरसरि प्रवाहित करने वाले दक्षिण के ही आलवार सन्त थे। सूरदास को काव्य रचने की प्रेरणा महाप्रभु बल्लभाचार्य से मिली जो आन्ध्र निवासी थे। बल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ जी ने अष्टछाप की रचना की थी जिनमें सूदास, नन्दास, कुंभनदास आदि आठ प्रसिद्ध भक्त कवि थे। अष्टछाप के द्वारा हिन्दी साहित्य का भण्डार अत्यधिक समृद्ध किया गया। आन्ध्र प्रदेश के कवियों में रीतिकाल के ललितकवि पद्माकर विशिष्ट स्थान रखते हैं। आधुनिक गद्य एवं पद्य में आन्ध्र के अनेक ख्यातिलब्ध गद्य एवं पद्य के लेखक हैं।
तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दियों में वर्तमान हिन्दी का आरम्भ होने लगा है। खड़ी बोली, अवधी और ब्रजभाषा के अस्तित्व का स्पष्ट परिचय मिलने लगा था। इनमें हजरत निजामुद्दीन और उनके शिष्य बाबा फरीद शहरगंज का उल्लेखनीय योगदान रहा। पंजाब के बाबा फरीद शहरगंज लगभग 13 वर्षों तक अध्योध्या में रहे और सूफी समाज के प्रचार हेतु उनकी भाषा को अपनाया कुतुबन, जायजी, मंझन उस्मान, जान कवि, कासिमशाह, शेख नबी, नूर मुहम्मद आदि ने अवधी भाषा में काफी श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की। निजामुद्दीन के शिष्य अमीर खुसरो का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। उनकी कृतियों में खड़ी बोली की आरंभिक अवस्था का परिचय मिलता है। कबीर और रसखान हिन्दी साहित्य के रचनाकारों में शीर्ष स्थान रखते हैं। कबीर के शब्द, रहीम के दोहे और रसखान के सवैये आज भी लोकप्रिय हैं। आधुनिक युग में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कई मुसलमान कवियों ने हिन्दी में अच्छी रचनाएँ लिखी हैं। हिन्दी के प्रथम दैनिक समाचार-पत्र सुधावर्षण का प्रकाशन कलकत्ता में हुआ। इसके संपादक श्याम सुन्दर जी थे।
हिन्दी में सबसे पहले प्रेम ईसाई मिशनरियों ने ही स्थापित किया। ईसाई मिशन की ओर से विलियम फर्रो, वार्ड, गार्थमेन आदि का योगदान उल्लेखनीय है। अंग्रेजों द्वारा स्थापित, फोर्ट विलियम कॉलेज ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। कॉलेज के प्रिंसिपल जानगिल क्राइस्त ने स्वयं हिन्दुस्तानी ग्रामर लिखा और हिन्दी में पुस्तकें लिखने के लिए लेखकों को प्रोत्साहन दिया।
निष्कर्ष रूप में यह स्पष्ट है कि हिन्दी के विकास में अहिन्दी भाषी कवियों की भूमिका उल्लेखनीय है। इस युग में हिन्दी के जाने-माने लेखकों में ऐसे लेखकों जिनकी भाषा हिन्दी नहीं है, लम्बी सूची प्रकाशित की जा सकती है। अज्ञेय, नागर, यशपाल, अशोक, धर्मवीर भारती, कृश्नचन्दर, अमृता प्रीतम, रांगेय राघव, अमृतलाल चक्रवर्ती, कुलदीप नैय्यर, बालकृष्ण राव, बालशौरि रेड्डी, विश्वनाथ अय्यर, पूर्णश्याम सुन्दर, विद्याभास्कर, नारायणदत्त गोविन्द रघुनाथ धन्ते, मुक्तिबोध, डॉ. प्रेममति आदि अनेक लेखक एवं कवि हैं जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं हैं। हिन्दी को जनभाषा तथा राष्ट्रभाषा बनाने में इन अहिन्दीभाषी रचनाकारों की प्रतिभा एवं उनका कृतित्व सदैव नमन योग्य लिया जायेगा।