Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Vigyan Vardan ya Abhishap”, “विज्ञान वरदान है या अभिशाप” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
विज्ञान वरदान है या अभिशाप
Vigyan Vardan ya Abhishap
विज्ञान का शाब्दिक अर्थ होता है-विशेष या विश्लेषित ज्ञान। मानव आदिकाल से नये आविष्कार करता रहा है और विकास की एक-एक सीढ़ी तय करता रहा है। आविष्कारों के बल पर ही उसने अपना जीवन सजाया-सँवारा है। आज हम जिस युग में सांस ले रहे है वह विज्ञान का युग है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियों के प्रभाव को देखा जा सकता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों ने मानव-जीवन को पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित और आरामदेह बना दिया है। अनुसंधान बहुविध, बहुआयामी और प्रत्येक क्षेत्र में किए गए हैं।
दुनिया के विभिन्न देशों के विकास पर विहंगगदृष्टि डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आज जिस देश ने वैज्ञानिक उपलब्धियों के सहारे अपना औद्योगिकरण कर लिया है, उसी की उन्नत देश कहा जाता है। जिस देश में औद्योगिकरण का स्तर नीचा है वह देश पिछड़ा हुआ देश कहा जाता है। वैज्ञानिक आविष्कारों और औद्योगिकरण के आधार पर ही किसी देश की प्रगति को आंका जा रहा है। विज्ञान ने मानव को पूरी तरह बदल दिया है।
आज वैज्ञानिक गतिविधियों को देखने से विदित नहीं होता है कि विज्ञान मानव के लिए वरदान है या अभिशाप। यह तो सर्वमान्य है कि विज्ञान ने मानव को बहुत अधिक सुख सुविधाएँ प्रदान की हैं। दैनिक जीवन से लेकर उसके जीवन से संबंधित तमाम घटनाओं तक विज्ञान का प्रभाव परिलक्षित होता है। प्राचीन काल में मानव लंबी दूरियाँ तय करने में कठिनाई महसूस करता था किन्तु आज मोटरकार, रेलगाड़ी और वायुयान की मदद से अगर वह चाहे तो हजारों मील की दूरी कुछ घंटों में तय कर लेता है। वैज्ञानिक साधनों ने दुनिया के देशों को बहुत आस-पास ला दिया है। दूरी की दृष्टि से आज तो अमेरिका, जापान, इंग्लैड वैसे ही हैं जैसे कि कोलकाता, मुंबई, दिल्ली। टेलीफोन का आविष्कार भी मानव के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। हजारों मील दूर बैठे हुए व्यक्ति से हम टेलीफोन पर बातचीत कर सकते हैं। इसके आविष्कार से व्यापारिक क्रिया-कलापांे में भी काफी सहायता मिली है। व्यापारिक संबंधो की स्थापना में इससे काफी सहायता मिली है।
मनोरंजन के लिए तो विज्ञान ने तमाम साधन प्रस्तुत किए हैं। टेलीविजन विज्ञान की आधुनिकतम प्रगति है। देश-विदेश में घटित-घटनाएँ टेलीविजन के माध्यम से हम देख सकते है आज तो प्रतीत होता है कि अगर वैज्ञानिक आविष्कारों को मानव जीवन से हटा दिया जाए तो मानव जीवन शून्य हो जाएगा। दुनिया मानव की मुठ्ठी में हो गई है। संपूर्ण संसार उसके आसपास नजर आ रहा है। पृथ्वी एवं आकाश के रहस्य का उद्घाटन विज्ञान से ही हुआ।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई है। आज मानव द्वारा हदय एवं मस्तिष्क का आपरेशन भी संभव हो गया है। अनेक जानलेवा बीमारियों से छुटकारा मिलने लगा है। चिकित्सा विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं और बहरों को कान। उसने जीवन को सुदंर, सुखद और दीर्घ बना दिया है।
परन्तु आज मानव के सामने एक बड़ा प्रश्न उपस्थित हो गया है कि विज्ञान के नित नए आविष्कारों के कारण यह बदली हुई स्थिति उसके लिए वरदान होगी या अभिशाप? यह प्रश्न इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि एक ओर जहाँ मानव-विज्ञान का उपयोग अपने हित में कर रहा है वहीं दूसरी ओर भंयकर अस्त्र-शस्त्रों द्वारा मानव की सभ्यता, संस्कृति और उसकी अब तक अर्जित समस्त पूँजी को भस्मीभूत कर देने की तैयारी भी कर रहा है। आज एक देश दूसरे देश को वैज्ञानिक शक्ति के आधार पर ही दबा रहा है। जिस देश के पास जितनी अधिक वैज्ञानिक शक्ति है, वहीं देश अपने को गौरवान्वित कर रहा है। अमेरिका, बिट्रेन आदि राष्ट्र विश्व में इसलिए आगे हैं, क्योंकि उनके पास वैज्ञानिक शक्तियाँ अधिक हैं। वैज्ञानिकों ने ऐसे अणुबमांे का आविष्कार किया है कि दुर्भाग्यवश यदि कभी विस्फोट हुआ तो देश के देश मृत्यु के गर्त में चले जाएँगे।
कुछ लोग विज्ञान को इसलिए अभिशाप मानते है कयोंकि इसने बड़े-बड़े संहारक अस्त्रों को जन्म दिया है। इतने प्रकार के घातक हथियारों का निर्माण किया गया है कि सारे संसार को मिनटों मे नष्ट किया जा सकता है। हथियारों की यह दौड़ विज्ञान के कारण नहीं बल्कि वर्तमान विश्व व्यवस्था के कारण है। विश्व का असंतुलित विकास, गरीब और अमीर देशों में दुनिया का विभाजन एवं विकसित पूँजीवादी देशों द्वारा अल्पविकसित देशों पर प्रभुत्व बनाए रखने की महत्वकांक्षा ने इस विकार को जन्म दिया है। इसलिए विज्ञान को अभिशाप होने से बचाने के लिए व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा। नई व्यवस्था में हथियारांे की होड़ समाप्त होगी और विज्ञान अभिशाप कहलाने के कलंक से बच जाएगा।