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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Van-Sanrakshan ”, ”वन-संरक्षण” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

वन-संरक्षण

Van-Sanrakshan 

निबंध संख्या:- 01

वन अरण्य, जंगल, विपिन, कानन आदि सभी शब्द प्रकृति की एक ही अनुपम देन समर्थ भाव और स्वरूप को प्रकट करने वाले हैं। आदि मानव का जन्म उस की माता-सस्कति का विकास इन वनों में पल-पुसकर ही हुआ था। उस की खाद्य आवास आदि सभी समस्याओं का समाधान करने वाले तो वन थे ही, उसकी रक्षा भी वन ही किया करते थे। वेदों, उपनिषदों की रचना तो वनों में हुई ही, औरण्यक जैसे ज्ञान-विज्ञान के भण्डार माने जाने वाले महान् ग्रन्थ भी अरण्यों यानि वनों में लिखे जाने के कारण ही ‘आरण्यक’ कहलाए। यहाँ तक कि संसार का आदि महाकाव्य माना जाने वाला, आदि महाकवि वाल्मीकि द्वारा रचा गया ‘रामायण’ नामक महाकाव्य भी एक तपोवन में ही स्परूपाकार पा सका।

भारत क्या विश्व की प्रत्येक सभ्यता-संस्कृति में वनों का अत्यधिक मूल्य एवं महत्त्व रहा है। इस बात का प्रमाण प्रत्येक भाषा के प्राचीनतम साहित्य में देखा जा सकता है कि जिन में सधन वनालियों के साधन वर्णन बड़े संजीव ढंग से और बड़ा रस ले कर किए गए हैं। उन सभी साहित्यिक रचनाओं में अनेक तरह के संरक्षित वनों की चर्चा भी मिलती है। पूछा जा सकता है कि आखिर वनों को संरक्षित क्यों और किस लिए घोषित किया जाता था ? इस का एक ही उत्तर है या फिर हो सकता है कि न केवल मानव-सभ्यता-संस्कृति की रक्षा बल्कि अन्य प्रणियों की रक्षा के लिए, तरह-तरह की वनस्पतियों, औषधियों आदि की रक्षा के लिए वन-संरक्षण आवश्यक समझा गया। वन तरह-तरह की पशु-पक्षियों की प्रजातियों के लिए तो एक मात्र आश्रय-स्थल थे, आज भी हैं; वहाँ कई प्रकार की वन्य एवं आदिवासी मानव-जातियाँ भी निवास किया करती थीं। इन की रक्षा और जीविका भी आवश्यक थी, जो वनों को संरक्षित करके ही संभव एव सुलभ हो सकती थी। आज भी वस्तु-स्थिति उससे बहत अधिक भिन्न नहीं है। स्थितियों मे समय के अनुसार कुछ परिवर्तन तो अवश्य माना जा सकता है; पर जो वस्तु जहाँ की है, वह वास्तविक शोभा और जीवन-शक्ति वहीं से प्राप्त कर सकती है। इस कारण वन-संरक्षण की आवश्यकता आज भी पहले के समय ही ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।

आज जिस प्रकार की नवीन परिस्थितियाँ बन गई हैं, जिस तेजी से नए-नए कल-कारखानों, उद्योग-धन्धों की स्थापना हो रही है, नए-नए रसायन, गैसें, अणु, उदजन, कोबॉल्ट आदि बम्बों का निर्माण और निरन्तर परीक्षण जारी है, जैविक शस्त्रास्त्र बनाए जा रहे हैं। इन सभी ने धुएँ, गैसों और कचरे आदि के निरन्तर निसरण से मानव तो क्या सभी तरह के जीव-जन्तुओं का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। केवल बम ही है, जो इस सारे विषेले और मारक प्रभाव से प्राणी जगत् की रक्षा कर सकते हैं। उन्ही के रहते समय पर उचित मात्रा में वर्षा होकर धरती की हरियाली बनी रह सकती हमारी सिचाई और पेय जल की समस्या का समाधान भी वन संरक्षण से ही सम्भव हो सकता है। वन है तो नदियों भी अपने भीतर जल की अमृत धारा संजो कर प्रवाहित कर रही हैं। जिस दिन वन नहीं रह जाएँगे, सारी धरती वीरान, बंजर और रेगिस्तान बन जाएगी। तब धरती पर वास कर रहे सभी तरह की प्राणी-प्रजातियों का भी अन्त हो जाएगा। बना के कम होते जाने के कारण अभी तक प्राणियों की अनेक प्रजातियाँ, अनेक वनस्पतियाँ एवं अन्य खनिज तत्व अतीत की भूली-बिसरी कहानी बन चुके हैं, यदि आग की तरह ही निहित स्वार्थों की पूर्ति, अपनी शानो-शौकत दिखाने के लिए वनों का कटाव होता रहा, तो धीरे-धीरे अन्य सभी का भी सुनिश्चित अन्त हो जाएगा।

उपर्युक्त सभी तरह के तथ्यों के आलोक में ही आज के वैज्ञानिक, सभी तरह के सम्झदार लोग, पर्यावरण-विशेषज्ञ आदि वन संरक्षण की बात जोर-शोर से कह और कर रहे हैं। सरकार ने वन्य प्रजातियों की रक्षा के लिए कुछ अभयारण्य बनाए और संरक्षित भी किए हैं, जहाँ शिकार खेलना तो, घास का तिनका तक तोड़ना भी पूर्णतया वर्जित है। आज पर्यावरण जिस प्रकार हमारी अपनी ही कमियों-गलतियों के कारण प्रदूषित हो रहा है, उस सब के चलते और अभयारण्य बनाने, और वन-प्रदेश सख्ती के साथ संरक्षित करने की बहुत अधिक आवश्यकता है। ऐसा कर के ही मानव मात्र ही नहीं, प्राणी मात्र का भविष्य संरक्षित समझा जा सकता था।

वन-संरक्षण जैसा महत्त्वपूर्ण कार्य वर्ष में वृक्षारोपण जैसे सप्ताह मना लेने से संभव नहीं हो सकता। इसके लिए वास्तव में पंचवर्षीय योजनाओं की तरह आवश्यक योजनाएँ बनाकर कार्य करने की जरूरत है। वह भी एक-दो सप्ताह या मास-वर्ष भर नहीं; बल्कि वर्ष तक सजग रहकर प्रयत्न करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार बच्चे को मात्र जन्म देना ही काफी नहीं हुआ करता, बल्कि उसके पालन-पोषण और देख-रेख की उचित व्यवस्था करना-वह भी दो-चार वर्षों तक नहीं, बल्कि उनके बालिग होने तक आवश्यक हुआ करती है, उसी प्रकार की व्यवस्था, सतर्कता और सावधानी वन उगाने, उनका संरक्षण करने के लिए भी किया जाना आवश्यक है। तभी धरती और उसके पर्यावरण की, जीवन एवं हरियाली की रक्षा संभव हो सकती है। इस दिशा में और देर करना घातक सिद्ध होगा, इस बात का ध्यान रखते हुए आज ही कार्य आरम्भ कर देना नितान्त आवश्यक है।

 

निबंध संख्या:- 02

वन संरक्षण

Van Sanrakshan

प्रकृति और मनुष्य

वृक्षों का हमारे जीवन में महत्त्व

वनों का संरक्षण।

प्रकृति आदिकाल से ही मनुष्य का पालन-पोषण करती रही है, उसे गरमी, सरदी, वर्षा आदि से बचाकर अपनी गोद में मातृत्व का प्रेम बरसाती रही है। परंतु मनुष्य इतना स्वार्थी, अहंकारी तथा लालची हो गया है कि उसने अपनी माता के प्रेम में सेंध लगा ली। जिस माता ने उसे वृक्षों की ठंडी छाया में बैठाकर नदियों का मीठा जल पिलाकर उसकी प्यास को शांत किया तथा मीठे रसीले फल खिलाकर उसकी क्षुधा को समझा, उसी माता का वह आज चीर-हरण करने पर तुला हुआ है। आज हम वृक्ष लगाना तो भूल ही गए हैं बल्कि उन्हें काटना शुरू कर दिया है। वृक्षों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। वृक्ष प्रकृति के द्वारा दिए गए सुंदर उपहार हैं। इनके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। वृक्ष कार्बन-डाई-ऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। जो हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। वातावरण को संतुलित रखने में भी वृक्षों का बहुत योगदान है। वृक्ष मानव को शीतल छाया प्रदान करते हैं। हमें खाने को मीठे फल देते हैं। वृक्ष हमें लकड़ी प्रदान करते हैं। वृक्षों से हमारा संबंध जीवन से लेकर मृत्यु तक बना रहता है। वृक्षों से ही हमें जल संरक्षण प्राप्त होता है। एक ओर वृक्ष वर्षा कराने, प्रदूषण को कम करने में भी सहायक होते हैं। ये पशु-पक्षियों के शरण स्थल हैं। हम अपने स्वार्थ के लिए इनका विनाश किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त जनसंख्या वृदधि के कारण तथा उनके रहने के लिए बस्तियाँ बनाई जा रही हैं इसी कारण वनों को काटा जा रहा है। अब समय आ गया है कि हमें प्रकृति की ओर पुनः मुडना होगा। वनों से विमुख होकर हम अनेक रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं। हमें पेड़-पौधों की संख्या में वृद्धि करनी होगी। उनकी सुरक्षा का ध्यान करना होगा। इसे अपना व्यक्तिगत कर्तव्य बनाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा एवं प्रदूषण से बचने के लिए वनों के संरक्षण की ओर ध्यान दें।

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