Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Shram Ka Mahatva” “श्रम का महत्त्व” for Class 10, 12 Examination.
श्रम का महत्त्व (Shram Ka Mahatva)
“उद्योगिन पुरूष सिंहमुपैति लक्ष्मीः
दैवेन देयमिति का पुरूषाः वदन्ति ।”
श्रम” का अर्थ है- तन मन से किसी कार्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील होना। श्रम के भेद हैं- मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम । जीवन में दोनों का अपना-अपना महत्व है। श्रम की महत्ता बताते हुए गांधीजी ने कहा था- “जो अपने हिस्से का परिश्रम किए बिना ही भोजन करते हैं वे चोर हैं।” परिश्रमी व्यक्ति के प्राप्त मेहनत की सुनहरी कुंजी होती है जो भाग्य के बंद कपाट खोल देती है। संसार रूपी कर्म क्षेत्र में निरंतर श्रम करके ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। परिश्रम के बल पर ही मनुष्य ने समुद्र लांघ लिया, आकाश नाप लिया और दुर्गम पहाड़ों पर भी चढ़ गया। श्रम ही मनुष्य का सच्चा मित्र है इसीलिए कहा जाता है-” श्रमेव जयते।” मनुष्य अपने भविष्य का निर्माण श्रम से ही करता है। उसे आत्मविश्वास के साथ लक्ष्य रखकर आगे बढ़ना होगा ताकि सफलता उसके कदम चूमें। राष्ट्र की उन्नति श्रम के द्वारा ही संभव होती है। अमेरिका जापान, चीन इस बात को सत्यापित करते हैं। भारतीय मनीषियों ने भी कहा है-
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात तें सिल पर परत निसान ॥”