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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Sardar Vallabhbhai Patel”, “सरदार वल्लभभाई पटेल” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

सरदार वल्लभभाई पटेल

Sardar Vallabhbhai Patel

 

सरदार वल्लभभाई पटेल को हम लौहपुरुष के नाम से जानते हैं। उनका नाम लेते ही हर भारतीय के सम्मुख एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभर जाता है, जो न केवल अन्य की तरह भारत को स्वतंत्रता दिलाई बल्कि उन्होंने स्वतंत्र भारत को एक सूत्र में संगठित करके समूचे विश्व को आश्चर्यचकित भी किया।

पटेल जी का जन्म 31 अक्टूबर 1857 को गुजरात के खेड़ा जिले के करमसद गांव में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो अपनी देश भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। उनके पिता श्री झबेरभाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में लक्ष्मीबाई की सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों से लोहा ले चुके थे।

 पटेल जी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, परंतु आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें मैट्रिक के पश्चात् ही मुख्तारी की परीक्षा पास कर आजीविका कमाने में लगना पड़ा। लेकिन वे अपने दृढ़ निश्चय से पीछे नहीं हटे और कुछ रुपयों का इंतजाम कर विदेश चले गए, वहीं से 1913 में बैरिस्टर की डिग्री लेकर भारत लौटे।

महात्मा गांधी की प्रेरणा से पटेल ने देश में जागरण की नई ज्योति जगाई। गांधी की तरह ही वह अपनी वकालत को छोड़, राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेने लगे। वह एक त्यागी की तरह अपना जीवन बिताने लगे। जो कि एक आदर्श के रूप में अन्य पर अपना प्रभाव छोड़ रहा था। गांधी जी भी पटेल के देशप्रम व संगठन शक्ति को देख प्रभावित हुए थे।

गांधी जी ने ही पटेल को सर्वप्रथम सरदार नाम से संबोधन किया था।

सन् 1947 को विभिन्न आंदोलनों के चलते अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा, परंतु वे अपनी कूटनीति से लगभग 534 देशी रियासतों को आजाद बने रहने की ऐसी छूट दे गए, जिसके कारण देश कई टुकड़ों में विभाजित हो सकता था। पर पटेल ने अपनी सूझबूझ से इसे रोकने में सफल भूमिका निभाई।

सरदार पटेल फौजदारी के एक प्रसिद्ध वकील के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। साथ ही 1916 से 1945 तक सभी सक्रिय आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया। था। भारत छोड़ो आंदोलन में तो वह अग्रिम पंक्ति में थे।

सरदार पटेल अत्यंत स्पष्टवादी व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते थे। उन्हें कोई विचलित नहीं कर सकता था। वे जिस का निश्चय कर लेते थे, उसे पूरा करके ही। रहते थे।

उन्होंने अकेले ही कश्मीर में मुहाजिदों से टक्कर ली थी और हैदराबाद के रजाकारों से अकेले ही मुकाबले पर उतर आए।

अगर नेहरू जी अपनी हठधर्मिता न दिखाते तो पटेल ने अकेले ही संपूर्ण कश्मीर भारत में मिलाने का इंतजाम कर रखा था।

उनके इन साहसिक कार्यों को देखते हुए देशवासियों ने उन्हें लौहपुरुष के नाम से संबोधन करना शुरु कर दिया था।

5 सितंबर 1950 को इस लौहपुरुष को पंचतत्व में लीन होना पड़ा। इनके निधन पर कई बड़े नेताओं की आंखों से आंसू छलक पड़े। इन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदा किया गया।

नेहरू जी ने इनके निधर पर कहा था कि इतिहास सरदार पटेल को आधुनिक भारत के निर्माता और भारत के एकीकरण करवाने के रूप में याद रखेगा।

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