Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Sampradayikta ka Zahar ”, “साम्प्रदायिकता का जहर” Complete Hindi Essay, Nibandh, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
साम्प्रदायिकता का जहर
Sampradayikta ka Zahar
प्रस्तावना-सम्प्रदाय का अर्थ है–विशेष रूप से देने योग्य, सामान्य रूप से नहीं अर्थात् हिन्दूमतावलम्बी के घर में जन्म लेने वाले बालक को हिन्दू धर्म की ही शिक्षा मिल सकती है, दूसरे को नहीं। इस प्रकार से साम्प्रदायिकता का अर्थ हुआ एक पन्थ, एक मत, एक धर्म या एक वाद। न केवल हमारा देश ही अपित विश्व के अनेक देश भी साम्प्रदायिक हैं। अतः वहाँ भी साम्प्रदायिक हैं। अतः वहाँ भी साम्प्रदायिकता है। इस प्रकार साम्प्रदायिकता का विश्वव्यापी रूप है। इस तरह यह विश्व चर्चित और प्रभावित है।
साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम-साम्प्रदायिकता के अर्थ आज बुरे हो गए हैं। इससे आज चारों ओर भेदभाव, नफरत और कटुता का जहर फैलता जा रहा है। साम्प्रदायिकता से प्रभावित व्यक्ति, समाज और राष्ट्र एक-दूसरे के प्रति असदुभावों को पहुँचाता है। धर्म और धर्म-नीति जब मदान्धता को पुन लेती है। तब वहाँ साम्प्रदायिकता उत्पन्न हो जाती है। उस समय धर्म-धर्म नहीं, रह जाता है वह तो काल का रूप धारण करके मानवता को ही
समाप्त करने पर तुल जाता है। फिर नैतिकता, शिष्टता, उदारता, सरलता, सहृदयता आदि सात्विक और दैवीय गुणों और प्रभावों को कहीं शरण नहीं मिलती है। सत्कर्त्तव्य जैसे निरीह बनकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। परस्पर सम्बन्ध कितने गलत और कितने नारकीय बन जाते हैं। इसकी कहीं कुछ न सीमा रह जाती है और न कोई अनुमान। बलात्कार, हाय-हत्या, अनाचार, दुराचार आदि पाशविक दुष्प्रवृत्तियाँ हँकारने लगती हैं। परिणामस्वरूप मानवता का कहीं कोई चिन्हें नहीं रह जाता है।
इतिहास साक्षी है कि साम्प्रदायिकता की भयंकरता के फलस्वरूप ही अनेकानेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भीषण रक्तपात हुआ है। अनेक राज्यों और जातियों का पतन हुआ है। अनेक देश साम्प्रदायिकता के कारण ही पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े गए हैं। अनेक देशों का विभाजन भी साम्प्रदायिकता के फैलते हुए जहर-पान से ही हुआ है।
साम्प्रदायिकता का वर्तमान स्वरूप-आज केवल भारत में ही नहीं अपितु सारे विश्व में साम्प्रदायिकता का जहरीला साँप हुँफकार रहा है। हर जगह इसी कारण आतंकवाद ने जन्म लिया है। इससे कहीं हिन्दू-मुसलमान में तो कहीं। सिक्खों-हिन्दुओं या अन्य जातियों में दंगे-फसाद बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसा इसलिए आज विश्व में प्रायः सभी जातियों और धर्मों ने साम्प्रदायिकता का मार्ग अपना लिया है। इसके पीछे कुछ स्वार्थी और विदेशी तत्त्व शक्तिशाली रूप से काम कर रहे हैं
उपसंहार–साम्प्रदायिकता मानवता के नाम पर कलंक है। यदि इस पर यथाशीघ्र विजय नहीं पाई गई तो यह किसी को भी समाप्त करने से बाज नहीं आएगा। साम्प्रदायिकता का जहर कभी उतरता नहीं है। अतएव हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए कि यह कहीं किसी तरह से फैले ही नहीं। हमें ऐसे भाव पैदा करने चाहिए जो इसको कुचल सकें। हमें ऐसे भाव पैदा करना चाहिएं-
मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी है हम वतन है, हिन्दोस्तो हमारा ”
तथा
“चाहे जो धर्म तुम्हारा, चाहे जो वादी हो,
नहीं जा रहे अगर देश के लिए भी अपराधी हो।”