Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Samachar Patra aur Unki Upyogita”, “समाचार -पत्र और उनकी उपयोगिता” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
समाचार -पत्र और उनकी उपयोगिता
Samachar Patra aur Unki Upyogita
मनुष्य के हृदय में कौतूहल और जिज्ञासा दो ऐसी वृत्तियाँ हैं, जिनसे प्रेरित होकर वह संसार की नित्य नवीन घटने वाली घटनाओं से परिचित होना चाहता है। वह जानना चाहता है कि आज अपने देश में ही नहीं, अपितु विश्व के कोने-कोने में क्या हो रहा है। व्यापारी व्यापार के विषय में नए-नए भावों को, समाजशास्त्री समाज की नई व्यवस्थाओं को, साहित्यकार आज के युग की नई रचनाओं और रचनाकारों को तथा सभी प्रकार के मनुष्य राजनीति में होने वाले रोजाना के उत्थान-पतन को जानना चाहते हैं। आज के युग मंे विश्व के रंगमंच पर नित्य नवीन घटनायें घट रही हैं। आज ऐसा कोई देश नहीं जहाँ की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक नीति में उलट-फेर न हो रहा हो। इसको जानने का मुख्य साधन समाचार-पत्र हैं। समाचार-पत्र ही एक ऐसा साधन है जिससे लोकतंत्रात्मक शासन-प्रणाली पल्लवित और पुष्पित होती हुई संसार को सौरभमय बना सकती है। समाचार-पत्र शासक और शासित में माध्यम अर्थात् दुभाषिए का काम करते हैं। इनकी वाणी जनता-जनार्दन की वाणी है। यह जनता के हाथों का महान् शस्त्र है। विभिन्न राष्ट्रों तथा जातियों के उत्थान एवं पतन में समाचार पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। सात समुद्र पार की घटनाओं को लोग प्रातः काल ही समाचार पत्रांे में पढ़ लेते हैं। समाचार-पत्र वास्तव में विश्वात्मैक्य की भावना को सफल बनाने का एक अमूल्य साधन है।
आज से लगभग तीन शताब्दी पहले लोगों को समाचार-पत्रों के विषय में कोई ज्ञान नहीं था। केवल संदेशवाहक के माध्यम से ही समाचार एक-दूसरे तक पहुँचते थे। समाचार-पत्रों का प्राथमिक उद्गम स्थान इटली है। इसका जन्म इटली के वेनिस नगर में 13वीं शताब्दी में हुआ और इसका प्रचार उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। जनता ने इसकी उपयोगिता का अनुभव किया। 17वी शताब्दी में इंग्लैंड में भी इसका प्रचार हुआ और दिन पर दिन समाचार-पत्रों की संख्या बढ़ने लगी। अठारहवीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भारतवर्ष में पदार्पण किया। जब उन्होंने देखा कि देश में कोई ऐसा साधन नहीं जिससे कि हम जनता तक अपनी बात पहुँचा सकंे तथा जनता की बात अपने तक ला सकें तब उन्होंने भारतवर्ष में भी समाचार-पत्रों का श्रीगणेश किया। ईसाई पादरियों ने भारत की भोली-भाली जनता के हृदय तक अपने धर्म की विशेषताओं को पहुँचाने के लिए ‘समाचार-दर्पण’ नामक पत्र निकाला था। उससे प्रभावित होकर तथा उन्हें मुँह-तोड़ जवाब देने के लिए ब्रह्म-समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने ‘कौमुदी’ नामक पत्र निकाला। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने ‘प्रभात’ नामक समाचार-पत्र का सफल संपादन किया। इसके बाद तो देश में समाचार-पत्रों की सर्वप्रियता बढ़ने लगी और देश के विभिन्न अंचलों से भिन्न-भिन्न भाषाओं में समाचार-पत्र निकलने लगे।
देशवासियों की वयापारिक उन्नति में समाचार-पत्र एक बहुत बड़ा सहायक साधन है। अपनी व्यावसायिक उन्नति के लिए हम किसी भी पत्र में अपना विज्ञापन प्रकाशित करा सकते हैं। अपनी तथा अपने यहाँ की बनी हुई वस्तुओं की विशेषता दूर-दूर तक की जनता के सामने रख सकते हैं। इस प्रकार ग्राहक संख्या बढ़ जाती है तथा घर बैठे ही बाहर से आॅर्डर मंगवाने का काम हो जाता है।
समाचार-पत्र जहाँ हमारी अपार सहायता करते हैं वहाँ अनेक बार उनसे जनहित और राष्ट्रहित दोनों को बड़े घातक परिणाम भी भोगने पड़ जाते हैं। कभी-कभी स्वार्थी और युयुत्सु प्रकृति के प्राणी अपनी दूषित और विशैली विचारधाराओं को समाचार-पत्रों में प्रकाशित करके दूसरी जाति या देश के साथ घृणा की भावना उत्पन्न कर देते हैं। इससे राष्ट्र में अराजकता फैल जाती है। साम्प्रदायिक उपद्रव होने लगते हैं और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को शत्रु की नजर से देखने लगता है। इसी को ‘पीत पत्रिकारिता’ कहते हैं। चारित्रिक दृष्टि से समाचार-पत्र कभी-कभी देश को पतन के गर्त में धकेल देते हैं। अश्लील विज्ञापनों तथा नग्न चित्रों द्वारा लोगों के विचार ही दूषित नहीं होते अपितु उनका आत्मिक और मानसिक पतन भी होता है। संवाददाताओं की निरंकुशता भी जनता को अखरने लगती है। झूठ को सच और सच को झूठ बनाने में ये लोग चतुर होते हैं।
आज स्वतंत्रता का युग है। जनता को अपने शासकों की आलोचना करने तथा उनके कार्य से असंतुष्ट होने पर उन्हें पदच्युत करने का अधिकार है। प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने विचारांे में स्वतंत्र है और उन्हें प्रकट करने का उसको जन्मजात अधिकार है। समाचार-पत्र उनके विचारों को वाणी प्रदान करते हैं। भारतवर्ष के स्वतंत्रता-संग्राम में समाचार-पत्रों ने अभूतपूर्व योगदान दिया था। आज युग की पुकार है कि इन्हें अधिक-से-अधिक स्वतंत्रता दी जाए।