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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Samachar Patra aur Rashtrahit”, ”समाचार-पत्र और राष्ट्र-हित” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

समाचार-पत्र और राष्ट्र-हित

किसी भी राष्ट्र के जीवन में समाचार-पत्रों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रेस को राष्ट्र की चौथी सम्पत्ति माना जाता है। एक प्रजातांत्रिक देश में समाचार-पत्र देशवासियों के हितों के संरक्षक होते हैं। वे जनता पर ढाए गए अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाते हैं।

विश्व में घटित होने वाली सभी महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विज्ञापन समाचार-पत्रों द्वारा ही होता है। सामयिक समाचार और सूचनाएं भी समाचार-पत्र के ही माध्यम से मिल पाती हैं और इस प्रकार लोगों के ज्ञानवर्द्धन में समाचार-पत्र एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विशिष्ट घटनाओं पर टिप्पणियां और आंकड़े प्रकाशित करते हैं। वे ही लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए विभिन्न मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चाएं भी आयोजित करते हैं।

समाचार-पत्रों में रोचक, मनोरंजक लेख, कविता आदि भी प्रकाशित किए जाते हैं। लोकरुचि के विभिन्न क्षेत्रों की आधुनिकतम गतिविधियों से परिचित कराने के साथ-साथ खेल-कूद, नाटक, सिनेमा, संगीत आदि अभिरुचियों पर उपयोगी और जनरुचि की सामग्री भी प्रकाशित की जाती है। इस प्रकार ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ समाचार-पत्र मनोरंजन करने में भी पीछे नहीं रहते।

समाचार-पत्रों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के सामयिक पत्र, जैसे कि साप्ताहिक, मासिक आदि भी होते हैं जो विशिष्ट पाठक वर्ग की रुचियों को ध्यान में रखकर ही सामग्री का चुनाव करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य किसी-न-किसी प्रकार पाठकों का मनोरंजन करना होता है, अतः इनमें व्यंग्य-प्रधान लेखों, चुटकुलों और चित्रों को प्रमुखता दी जाती है, ताकि पाठकों का मनोरजन हो सके।

समाचार-पत्रों में विज्ञापन भी छपते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रतिष्ठानों की व्यावसायिक भावनाएं निखारने में भी समाचार-पत्रों की भूमिका रहती है। अखबारों की अधिकांश आय के स्रोत इस प्रकार के विज्ञापन ही होते हैं। एक ओर जहां लोगों के बौद्धिक विकास में समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं का योगदान होता है, वहीं दूसरी ओर हजारों कर्मचारियों को वे रोजगार भी प्रदान करते हैं। साथ ही रोजगार, विवाह आदि से संबंधित विज्ञापन भी समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते हैं । अतः लोगों को गहस्थी बसाने और जीविका जुटाने में भी ये सहायक होते हैं।

सरकार और जनता के बीच एक महत्त्वपूर्ण सूत्र का निर्माण भी समाचार-पत्र ही करते हैं। कोई भी सरकार जनता की सहायता के बिना सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकती। जनता और सरकार के बीच का सम्पर्क-सूत्र समाचार-पत्र ही उपलब्ध कराते हैं। सरकारों को अपनी नीतियों के सन्दर्भ में जन-समर्थन और जनता को अपनी कठिनाइयों और समस्याओं की अभिव्यक्ति समाचार-पत्रों द्वारा ही मिलती है। इस दष्टि से समाचार-पत्रों का बहुत अधिक महत्त्व है।

सरकार के किसी कार्यक्रम पर जन-सामान्य की क्या राय है, यह समाचार-पत्रों द्वारा ही स्पष्ट रूप से ज्ञात हो पाता है। एक ओर वे जन-सामान्य के विचारों का प्रकाशन करते हैं, दूसरी और जनता की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के हल के बारे में सरकार को सुझाव देते हैं।

अब आइए, जरा हम इस बात पर गौर करें कि आधुनिक विश्व की गतिविधियों में समाचार-पत्रों की क्या भूमिका है और क्या महत्त्व है। भूतपूर्व सोवियत संघ की क्रांति की सफलता का अधिकांश श्रेय समाचार-पत्रों को दिया जाना चाहिये। कोई भी आन्दोलन, जिसके पीछे समाचार-पत्रों का समर्थन नहीं होता, सफल नहीं हो सकता। एक ओर यदि समाचार-पत्र जनता के बीच व्याप्त विभिन्न विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं तो दूसरी ओर सरकारी पक्ष की सफाइयां भी जनता को वही देते हैं। यही कारण है कि समाचार-पत्रों की राय और सुझावों की उपेक्षा कोई भी सरकार नहीं कर सकती।

आज समाचार-पत्रों ने देश में एक लाभ वाले उद्योग का रूप ले लिया है। अंग्रेजी के साथ-साथ सभी प्रमुख भाषाओं में देश में समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं। हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, मलयालम तथा बंगला भाषाओं के समाचार-पत्र देश के विशिष्ट क्षेत्रों व राज्यों में पढ़े जाते हैं।

एक स्वतन्त्र प्रेस एक राष्ट्र की बेहतर सेवा कर सकता है। समाचार-पत्रों को पूरी तरह निष्पक्ष रुख अपनाना चाहिये और समाचार-पत्रों की नीतियों में किसी प्रकार का पक्षपात नहीं होना चाहिये। जिम्मेदारी भी समाचार-पत्रों की एक आवश्यक शर्त है। जिम्मेदार समाचार-पत्र राष्ट्र की सेवा बेहतर तरीकों से कर सकते हैं, इसलिये निष्पक्ष और उत्तरदायी संचार-साधन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस समय देश में स्वतन्त्र और नियंत्रण-मुक्त समाचार एजेन्सियां हैं। वे बिना किसी प्रकार के सरकारी हस्तक्षेप के अपना कार्य कर रही हैं।

किसी भी देश में लोकतन्त्र का कोई रूप क्यों न हो, जनता और सरकार के बीच परस्पर सहयोग आवश्यक होता है। एक स्वतन्त्र राष्ट्र में समाचार-पत्रों और प्रेस की स्वतन्त्रता भी आवश्यक होती है।

समाचार-पत्र जनता के लिये खूबरों और सूचनाओं के स्रोत होते हैं। इसलिये प्रेस और अखबारों पर किसी प्रकार का नियन्त्रण या प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिये। अगर प्रेस सरकार के हाथों में एक खिलौना बनकर रह जाता है तो उस देश की आजादी कभी अक्षुण्ण नहीं रह सकती है। जिस प्रकार जर्मनी में हुआ, जहां प्रेस का अस्तित्व सरकार के हाथों के खिलौने से अधिक नहीं था। इसी कारण सारे जर्मनी पर नाजी हुकूमत का शिकंजा जकड़ गया था और वहां के लोगों की आजादी खत्म हो गई थी।

अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि सभी लोकतांत्रिक सरकारें प्रेस को पूरी आजादी दें। प्रेस एक राष्ट्र की सेवा तभी भली-भांति कर सकता है जब वह सर्वथा नियन्त्रण मुक्त हो।

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