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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Roti Ki Atmakatha”, “रोटी की आत्मकथा” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

रोटी की आत्मकथा

Roti Ki Atmakatha

निबंध नंबर :- 01

मैं रोटी हूँ। देखने व सुनने में ही मैं कितनी सुन्दर लगती हूँ। प्रायः मुझे पाने के लिए हर कोई उत्सुक होता है। चाहे कोई कितना भी धनवान, बलवान, शौर्य वीर ही क्यों न हो, पर मेरे सेवन बिना कोई नहीं रह सकता। मानव या फिर कोई भी जीव ही क्यों न हो, पेट भरने के लिए मेरा प्रयोग ही करता है।

मुझे गर्व है कि लोग मुझे पाने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाते हैं, आज के रावण के वंशज यानि भ्रष्टाचार, काला बजारी आदि लोग मुझे पाने के लिए ही तो करते हैं। हाँ, आज मैं आप सबको मेरी जीवन यात्रा के बारे में बताती हैं कि मैं इस रूप में कैसे आई। शायद यह सुन आप मेरे बलिदान से कुछ सीख सकें।

जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि मेरा जन्म खेतों में हुआ। धरती मेरी माँ है। अपनी धरती माँ की गोद में मेरा पालन-पोषण होता है। हवा जो कि मेरे मामा हैं, मुझे पालने में झुलाते हैं। पक्षियाँ जो मेरी मौसी हैं, मुझे लोरियाँ सुनाती हैं। मैं पौधों की बालियों में इन सब को देख मस्ती से झूमती रहती हूँ। मेरे साथ आगे इस संसार में होने वाले छल-कपट से बेखबर हो बढ़ती जाती हैं। वर्षा का पानी पीती हूं, चाँदनी का आनंद लेती हूँ।

यौवन की दहलीज पर पहुँची तो मेरे साथ छल होना शुरु हो गया। मेरी खुशी किसी से देखी नहीं गई और मुझे काटने के लिए वह तैयार हो गए।

मुझे किसान ने अपने कूर हाथों से काट कर मुझे अपने परिवार से अलग कर दिया। यह देख मेरा दिल ही बैठ गया। मैं सदमें से अभी उभर ही रही थी कि अत्याचारों का मुझ पर पहाड़ ही टूट पड़ा। मुझे और मेरे (मुझ जैसे कुछ) साथियों को बैलों से कुचलवाया गया। मैं अपने साथियों के साथ उनके पैरो के नीचे दब गई। मैंने खूब विलाप किया, पर किसी ने मेरी परवाह नहीं की।

फिर मानव ने अपनी फितरतनुसार मुझसे सहानुभूति दिखाई जो कि उसके षड्यंत्र का एक हिस्सा मात्र था, मुझे साफ-सुथरा कर एक जगह रखा गया। मैं बेचारी उनकी चाल में फंस अपने दानों को ऐसे चमकाने लगी जैसे कोई सोने के कण हों। जिसे देख मानव की आंखें चौंधिया गई और फिर मुझे बोरों में कैद कर दिया गया। दोपहर की तेज धूप जिसके साथ मैं खेली थी अब उसके लिए मेरे नयन तरसने लगे।

फिर मुझे नीलाम कर दिया गया। बोली लगाने वाले मुझे कैसी कैसी निगाहों से परखने लगे, मुझे बड़ा कष्ट हुआ। मेरी बोली लगाई गई। मैं उस एक दिन की मानो बेताज रानी थी। फिर मुझे मेरे नए घर भेज दिया गया। जहाँ फिर कुछ समय के बाद मेरा प्रदर्शन होने लगा। वही तो वह जगह है जहाँ से तुम मुझे खरीद लाए हो। फिर मेरा घर दोबारा बदला। आगे तो तुम जानते ही हो कि मुझे वहाँ से लाने के बाद मुझे अच्छे से नहलाया गया। मुझे साफ-सुथरा कर चक्की में पिसने के लिए भेज दिया गया जहाँ मेरे रूप को बदल दिया गया। पिसने के लिए मुझे दो पाटों के बीच में डालकर मेरे ऊपर हथौड़े, छुरी-कांटे चलाए गए। मैं इन सब से डरकर अपने रूप में बदलाव लाते हुए अपने आप को आटे के रूप में बदल डाला।

उस आटे को फिर तुम अपने साथ लाकर डब्बों में भरकर अपने किचन की शान बढ़ाने लगे। रोज चुरक-चुरक कर थोड़ा-थोड़ा कर मुझे पानी के साथ मिलाकर मुझे बेलकर तुम मेरा वास्तविक रूप देने लगे। अपने इस रूप में आने के लिए तुमने सुन तो लिया कि मुझे कैसी-कैसी यातना झेलनी पड़ी। फिर तुम भी तो अपने साथ लाकर मेरे सारे शरीर को जला देते हो, मुझे तेज आँच में सेकते हो। पर तुम्हारी भूख शांत करके मैं अपने आप को धन्य समझती हूँ और अपनी खुशी दिखाते हुए गर्म-गर्म तवे पर भी खुशी से फूल जाती हूँ। यही है मेरी कहानी।

निबंध नंबर :- 02

रोटी की आत्म-कथा

Roti ki Atmakatha 

बहुत समय तक मैं पृथ्वी के आँचल में छिपा रहा। फिर मैंने अपना मुँह संसार वस्तुओं को देखने के लिए निकाला। मेरा वह रूप एक नन्हा-सा सुकुमार पौधा था। किसान ने मेरी बहुत सेवा की, मुझे शीतल जल से सींचा और अनेक प्रकार के आक्रमणों से मेरी रक्षा की। अन्त में जब मैं बढ़कर अपनी युवावस्था में आया तब तक मैं मस्ती की क्रीडा-स्थल पर खेलता रहा। कुछ दिनों के बाद लम्बी दाढी निकल आई और मेरा रंग अब कुछ पीला पड़ने लगा। लगभग 20-25 दिन के बाद मुझे तेज दरातियों से काटा गया। फिर मुझे बैलों के पैरों से रोंदवाया गया। इस प्रकार कष्ट भोगते-भोगते मेरा रूप बहुत सूक्ष्म हो गया। मेरे कपड़े मेरे तन से उतार लिए गये। कुछ समय बाद मुझे किसान अपनी गाड़ी में भरकर शहर ले गया। मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ कि शहर की नई-नई चीजे देखने को मिलेगी, परन्तु मेरी आशा निराशा में बदल गई और मुझे एक बड़ी मण्डी में लाकर रखा गया। वहाँ मेरा और मेरे साथियों का क्रय-विक्रय होने लगा।

वहाँ मैं एक प्रसिद्ध आढती द्वारा खरीद लिया गया। मुझे बार-बार इधर से उधर फेंका गया। मेरे हृदय को बहुत चोट लगी; परन्तु मैं बेबस था, कुछ कह नहीं सकता था। सातवें दिन मेरे सोते हुए भाग्य ने अंगडाई ली और मेरे ढेर में से एक श्रमिक ने बीस रुपये का अनाज लिया। मेरी गिनती श्रमिक के खरीदे हुए अनाज में थी। मेरा वजन आठ किलो था। श्रमिक ने मुझे निःसंकोच गठरी में बाँधकर सिर पर रख लिया। मैं सिर पर सवार होकर आराम से चलने लगा, परन्तु थोड़ी देर के बाद ही मुझे एक चक्की के पास रख दिया। चक्की की डरावनी आवाज मुझे कंपा रही थी। मुझे चक्की वाले ने बारीक नन्हें छलने में छाना। उस समय महात्मा कबीर की यह उक्ति मुझे याद आई:

चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय।

दो पाटन के बीच से बच के गया न कोय ।।

आज मेरी भी बारी आ गई थी, पर करता क्या ? मैं पराधीन था। मुझे चक्की के पाटों के बीच में डाला गया। चक्की के पाट बहुत भारी थे। उनके बीच लघु शरीर अब चूर-चूर हो गया। इन सब क्रियाओं के बाद वह श्रमिक मुझे अपने घर ले आया और उसकी पत्नी ने और भी बारीक छलनी में छाना और मुझे मांडा गया। मेरी नस-नस टूट चुकी थी। गूंथने के पश्चात् मुझे बेलकर आग पर सेका गया और तब से मेरा रूप गोल गुब्बारे की तरह हो गया और लोग मुझे रोटी कहकर पुकारने लगे। अब आप सोचिए, आपके जीवन में मेरा कितना महत्त्व है?

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