Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Rajbhasha Hindi”, “राजभाषा हिन्दी” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
राजभाषा हिन्दी
Rajbhasha Hindi
ऐसा कहा जाता है कि मानव सृष्टि की श्रेष्ठतम कृति है। जो कि सत्य भी है। प्रकृति ने उसे तोफे में वाणी का अनुपम वरदान देकर उसके प्रति अपने प्रेम को प्रगट किया है। भाषा ही वह एकमात्र साधन है जिसके माध्यम से मानव अपने विचारों, भावों आदिको प्रगट कर सकता है।
भाषा के अभाव में सामाजिकता, राष्ट्रीयता किसी का महत्व नहीं रह जाता। किसी भी दो व्यक्ति, राष्ट्र, राज्य या देश जो भी हो अपने आपसी प्रेम, व्यवहार व भावों की अभिव्यक्ति प्रगट करने के लिए एक ऐसी भाषा का होना अनिवार्य होता है। जिसे वह दोनों ही आसानी से समझ व बोल सकें।
गांधी जी ने तो अपनी पुस्तक मेरे सपनों का भारत में लिखा है कि – हमें भारत की स्वाधीनता के साथ साथ राजभाषा, राष्ट्रभाषा अथवा संपर्क भाषा के रूप में किसी भी भारतीय भाषाको प्रतिष्ठित करना होगा। पूरे देश के दौरे के पश्चात् गांधी जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा हो सकती है जिसे हम राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित कर सकते हैं। साथ # हमारे देश के संविधान में इसके लिए तो अनुच्छेद 343 (1) में यहाँ तक लिखा है कि – संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी हैं।
मनुष्य, प्रकृति का एकलौता ऐसा प्राणी है जो कुछ भी कर सकता है, प्रकृति ने उसे दिमाग रूपी वरदान दिया है जिसके बदौलत वह सोचने, समझने लगा और प्रकृति को ही अचंबे में डालने लगा।
मनुष्य चाहे जितनी भी भाषाएँ सीख ले, पर सत्य तो यह है कि जब तक वह अपनी मातृभाषा में बात कर नहीं करलेता उसकी आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती। वह जितनी आसानी से अपनी मन की बात अपनी मातृभाषा में प्रगट कर सकता है उतना वह अन्य सीखी भाषाओं में नहीं कर सकता।
आजादी आंदोलन के पश्चात् देश तो स्वतंत्र हो गया पर स्वतंत्र देश वह भी भारत जैसे देश में जहाँ सर्वधर्म समभव अर्थात् भांति-भांति के लोग (हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई), भाषाएँ (हिन्दी, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, कन्नड़ आदि) आदि का मिश्रण हो वहाँ यह स्वभाविक है कि राष्ट्रभाषा चुनने में कठिनाई आ ही जाए।
जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत एक ऐसा विशाल देश है जहाँ प्रत्येक प्रांत में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं, अतः हिन्दी के राष्ट्रीय स्तर के प्रचार-प्रसार में कोई न कोई विरोध होते रहते हैं। इसी कारण अपने ही देश में अपने ही देशवासियों की उपेक्षा से हिन्दी बार बार आहत होती रही है। रही हुई कसर हमारी अंग्रेजी की मानसिकता ने पूरी कर डाली।
आज हमारे देशवासियों के पास सबसे चुनौतीपूर्ण प्रश्न यह है कि हम कैसे हमारी राजभाषा हिन्दी को उसके गौरवशाली सिंहासन पर बैठाएँ।
आज कल देखा जा रहा है कि कुछ राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए भाषा के मुद्दे को उठाते हैं। हाल ही में हमने अखबारों में इस संदर्भ में मुम्बई के ठाकरे परिवार के बारे में पड़ा। आजकल तो हर क्षेत्रीय लोग अपने क्षेत्रीय भाषा के साथ साथ अंग्रेजी पर बल दे रहे हैं क्योंकि अंग्रेजी के बदौलत उन्हें रोटी मिल रही है। वहीं पर हिन्दी गौण विषय है। कई वर्ष पहले ही अंग्रेज हमें छोड़ आजाद कर गए पर हम भारतीय आजाद होने तैयार ही नहीं अभी भी उन्हीं की भाषा को पकड़े हैं। क्योंकि वे अपनी मानसिकता बना चुके हैं कि अंग्रेजी उन्नति में सहायक है और अंग्रेजी एक अंतर्राष्ट्रीय जन संपर्क की भाषा के रूप में अपनी पहचान रखती है।
कुछ हद तक भारत की शिक्षा नीति भी हिन्दी के प्रति अपना रूख़ापन जाहिर करती है। क्योंकि यह सच्चाई हम नहीं झूठला सकते हैं कि आज भी हम अंग्रेजों की ही शिक्षा नीति पर चल रहे हैं।
हिन्दी पूर्णतया एक वैज्ञानिक भाषा है। इसकी लिपि भी पूरी तरह से वैज्ञानिक ही है। अध्ययन से पता चला है कि संसार की सभी प्रमुख भाषाएँ इसी लिपि का प्रयोग करती हैं।
संसार भी अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी करते हुए हर सरकारी विभागों में हिन्दी निदेशालय की स्थापना भी करी है। जिसमें विभिन्न तरह से हिन्दी के प्रयोग पर बल दिया जाता है। अहिन्दी भाषी कर्मचारियों को उत्साहवर्धन के लिए हिन्दी की परीक्षाएँ लिखवाई जाती हैं, जिसमें उत्तीर्ण होने पर उसकी मासिक आय में भी वृद्धि – की जाती है।
14 सितंबर हिन्दी दिवस के नाम से जाना जाता है। इसी दिन कई कर्मचारिगण यह शपथ लेते हैं कि वे हिन्दी में अधिक से अधिक कार्य करेंगे। साथ ही सरकार ने ‘कोई परेशानी न आए इसलिए द्विभाषी नीति को अपना रखा है।