Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Pakshi ki Atmakatha”, ”पक्षी की आत्मकथा” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
पक्षी की आत्मकथा
Pakshi ki Atmakatha
निबंध नंबर:- 01
संसार में अनगिनत प्राणी निवास करते है। उन्हें जलचर, थलचर और नभचर प्राणी जैसे तीन भागों में बाँटा जाता है। जलचर यानि पानी में रहने वाले। थलचर यानि धरती पर चलने-फिरने और रहने वाले मनुष्य और कई तरह के पशु. कीड़े-मकोडे, सौंप-बिच्छ आदि। नभचर यानि आकाश के खुलेपन में उड़ पाने में समर्थ पक्षी जाति के प्राणी। इन के पंख होते है. जिन के बल पर ये उड़ पाने में समर्थ हुआ करते हैं। स्पष्ट है कि मैं पक्षी यानि नभचर श्रेणी का प्राणी हूँ। मेरा अधिवास या घर-घोंसला आदि जो कुछ भी कहो, वह वृक्षों की शाखाओं पर ही अधिकतर हुआ करता है-यद्यपि मेरे कुछ भाई पेडों के तनों में खोल बना कर, घरों के रोशनदानों, छतों, पहाडी गारों या जहाँ कहीं भी थोडी-सी जगह मिल जाए. वहीं अपना नन्हा-सा नीड (घोंसला) बना कर रह लिया करते हैं। हाँ, टिपीहर (Land Bird) जैसे मेरे कुछ जाति भाई धरती के ऊपर या भीतर कहीं खोल बना कर भी रह लेते हैं।
अपने सम्बन्ध में और कुछ बताने से पहले मैं अपनी उत्पत्ति के बारे में भी बता दूं तो अच्छा रहेगा। संसार में पक्षी, पशु और मनुष्य आदि जितने भी प्राणी हैं, उन्हें क्रमशः अण्डज, उद्भिज, पिण्डज और स्वदेज चार प्रकार के माना गया है। जो प्राणी अण्डे से जन्म लेते हैं, उन्हें अण्डज कहा जाता है। जो बीज आदि बोने से जन्म लिया करते हैं, उन्हें उद्भिज कहा और माना जाता है। जो शरीर से सीधे उत्पन्न हुआ करते हैं, उन्हें पिण्डज कहा गया है। इसी प्रकार जिन प्राणियों का जन्म स्वेद अर्थात् पसीने से हुआ करता है. उन्हें स्वदेज कहा जाता है। धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य और तरह-तरह के पशु पिण्डज प्राणी माने गए हैं। जिन्हें नभचर कहा-माना जाता है, अर्थात् आकाश के खुले वातावरण में विचरण करने या उड़ सकने वाले प्राणी अण्डज हुआ करते हैं। दनस्पतियों आदि उदभिज कहलाती हैं और जलचर जीव प्रायः स्वदेज होते हैं। स्पष्ट है कि हम पक्षी अण्डज जाति के प्राणी हैं।
तो मैं पक्षी हूँ-हजारों लाखों जातियों में से एक जाति का पक्षी, जो आपके घरों के आस-पास के वन-उपवनों में, पेड़-पौधो में पाया जाता है। भगवान् ने मेरे पंखों को चित्र-विचित्र रंगों वाला बनाया है। हम सभी पक्षियों की बुनियादी बनावट तो प्रायः समान ही हुआ करती है; हाँ आकार-प्रकार में कुछ अन्तर अवश्य हो जाता है। आकार-प्रकार के समान ही रंग-रूप भी प्रायः हर जाति के पक्षी का कुछ भिन्न और अलग ही हुआ करता है। दो पैर, दो आँखें, एक लम्बी या छोटी चोंच, शरीर पर छोटे-बड़े पंख और राम. कद या आकार-प्रकार के अनुरूप छोटे या बड़े-बड़े मजबूत डैने जिन के कारण हम पक्षी उड़ पाने में समर्थ हआ करते हैं, सभी के ही रहा ही करते हैं। हम पक्षियों की बोली भी प्रायः अलग-अलग हुआ करती है। किसी की बोली बहुत मधुर-मनहर, किसी की कठोर-कर्कश और किसी की सामान्य हुआ करती है। इसी कारण मधुर-मनहर बोली को गाना और कठोर-कर्कश को काँव काँव करना या कड़वी कहा जाता है। हम पक्षियों की बोली को आम तौर पर एक शब्द में ‘चहचहाना आप आदमियों को बड़ा ही अच्छा लगा करता है। आप लोग उसे सुन कर प्रायः ‘प्रकृति का संगीत, जैसे नाम देकर मनोमुग्ध होकर रह जाया करते हैं। है न ऐसी ही बात।
मैं पक्षी हूँ-भोला-भाला। आप मनुष्यों के पिजरों में बन्द होकर भी अपनी वाणी से चहचहाकर मस्त रहने और सभी को मस्त कर देने वाला। सिखाने और मैं आप मनष्यों की बोली, बातें और कई प्रकार के व्यवहार भी सीख लिया करता हूँ | मैं तो शुद्ध शाकाहारी जाति का पक्षी हूँ। फल, कई सब्जियाँ और दाना-दुनका जो कुछ भी मिल जाए खा कर और दो-चार बूंद स्वच्छ पानी पीकर मस्त रहा करता हूँ। लेकिन अन्य जातियों के कुछ पंक्षी माँसाहारी भी हुआ करते हैं। चील, गिद्ध, बाज जाति के पक्षी माँसाहार ही किया करते हैं। कुछ पक्षी कीड़े-मकौड़े खा कर भी जीवित रहते हैं कुछ विष्टा तक खा जाते है। भई, मनुष्यों में भी भिन्न आहार-विहार वाले लोग होते हैं न। उसी प्रकार हम पक्षियों में भी हैं।
मुझ पक्षी को स्वतंत्रतापूर्वक किसी वृक्ष की डाली पर घोंसला बना कर रहना, मुक्त आकाश में मुक्त भाव से चहचहाते हुए इच्छापूर्वक दूर-दूर तक उड़ना ही स्वाभाविक रूप से अच्छा लगता है। जैसे आप मनुष्यों को कई बार परतंत्र जीवन बिताना पड़ जाता है अनिच्छा से, वैसे ही कई बार मुझे भी आप मनुष्यों के बन्धन में, पिंजरे में बन्द होकर रहना पड़ जाया करता है। इस तरह की परतंत्रता सभी सुख-सामग्रियाँ सुलभ रहने पर भी अच्छी नहीं लगा करतीं । स्वतंत्र रहकर रोज सुबह दूर-दराज़ तक उड़, दाना दुनका चुग कर साँझ ढले चहचहाते हुए वापिस घोंसले में लौट आना-इस प्रकार परिश्रम से भरा स्वावलम्बी जीवन की चाहत है हम पक्षियों की नहीं, सोने का पिंजरा भी मुझे सच्चा सुख नहीं दे सकता, अतः कभी भूल कर भी इस तरह की परतंत्र रहने की बात न कहना-करना। आप मनुष्यों के समान हमें भी ऐसी बात पसन्द नहीं-हम उड़ने वाले पक्षियों को कतई नहीं।
पक्षी जीवन
Pakshi Jeevan
निबंध नंबर:- 02
विश्व में अनगिनत प्राणी निवास करते हैं। उन्हें जलचर, थलचर, और नभकर पानी जैसे तीनों भागों में बाँटा जाता है। जलचर यानि पानी में रहने वाले मनुष्य और कई तरह के पशु, कीडे-मकौड़े, साँप बिच्छू आदि। नभचर यदि आकाश के खुलेपन में उड़ने वाले पक्षी जाति के प्राणी। इनके पंख होते हैं जिनके बल पर ये उड़ पाने में समर्थ हुआ करते हैं। स्पष्ट है कि मैं पक्षी यानि नभचर श्रेणी का प्राणी हूँ। मेरा अधिवास या घर-घोंसला जो भी कहो, वह वृक्षों की शाखाओं पर ही अधिकतर हुआ करता है। यद्यपि मेरे कुछ भाई पेड़ो के तनों में खोल बनाकर घरों के रोशनदानों, छतों या जहाँ कहीं भी थोड़ी सी जगह मिल जाए, वहीं अपना नन्हा-सी नीड यादि घोंसला बनाकर रह लिया करते हैं। हाँ टिटीहरी जैसी मेरे कुछ पक्षी भाई धरती के ऊपर या भीतर कहीं खोल बनाकर भी रह लेते हैं।
अपने संबंध में और कुछ बताने से पहले मैं अपनी उत्पत्ति के विषय में भी बता दूँ, तो अच्छा रहेगा। विश्व में पक्षी, पशु और मनुष्य आदि जितने भी प्राणी हैं उन्हें क्रमशः अंडज उद्भिज, पिंडज और स्वदेश चार प्रकार के माने गए है। जो प्राणी अंडे से जन्म लेते हैं -उन्हें अंडज कहा जाता है। जो बीज आदि के बोने से जन्म लिया करते हैं -उन्हें उभिज कहा और माना जाता है। जो शरीर से सीधे उत्पन्न हुआ करते हैं -उन्हें पिंडज कहा गया है। इसी प्रकार जिन प्राणियों का जन्म स्वेद अर्थात पसीने से हुआ करता है, उन्हें स्वदेज़ कहा जाता है। धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य और तरह-तरह के पशु पिंडज प्राणी माने गए हैं। जिन्हें नभचर कहा-माना जाता है, वे प्राणी अंडज हुआ करते हैं। वनस्पतियाँ आदि उद्भिज कहलाती है और जलचर जीव प्रायः स्वदोज होते हैं। स्पष्ट है कि हम पक्षी अंडज जाति के प्राणी हैं।
मैं पक्षी हूँ-हजारों लाखों जातियों में से एक जाति का पक्षी, जो आपके घरों के आस-पास के वन-उपवनों में पेड़-पौधों में पाया जाता है। भगवान ने मेरे पक्षों को चित्र-विचित्र रंगों वाला बनाया है। हम सभी पक्षियों की बुनियादी बनावट तो प्रायः समान ही हुआ करते हैं; हाँ आकार-प्रकार में कुछ अंतर अवश्य हो जाता है। आकार प्रकार के समान रंग-रूप भी प्रायः हर जाति के पक्षी का कुछ भिन्न और अलग ही हुआ करता है। दो पैर, दो आँखें, एक लंबी या छोटी चोंच शरीर पर छोटे बड़े पंख और रोम, कद आकार प्रकार के अनुरूप छोटे या बड़े-बडे मजबूत डैने जिनके कारण हम पक्षी उड पाने में समर्थ हुआ करते हैं यह सभी के रहा करते हैं। हम पक्षियों की बोली भी प्रायः अलग-अलग हुआ करती है। किसी की बोली बहुत मधुर-मनहर, किसी की कठोर-कर्कश और किसी की सामान्य बोली को आम तौर पर एक शब्द में चहचहाना ही कहा करते हैं। किसी वन उपवन में हम पक्षियों को सम्मिलित चहचहाना आप मनुष्यों को बड़ा ही अच्छा लगता है। आप लोग उसे सुनकर प्रायः प्रकृति का संगीत, जैसे नाम देकर मनोमुग्ध होकर रह जाया करते हैं।
मैं पक्षी हूँ- भोला-भाला। आप मनुष्यों के पिंजरों में बंद होकर भी अपनी वाणी से चहचहा कर मस्त रहने और सभी मस्त कर देने वाला। सिखाने और आप मनुष्यों की बोली, बातें और कई प्रकार के व्यवहार भी सीख लिया करता हूँ। मैं तो शुद्ध शाकाहारी जाति का पक्षी हूँ। फल, कई सब्जियाँ और दाना-दुनका जो कुछ भी मिल जाए खाकर और दो-चार बूंद स्वच्छ पानी पीकर मस्त रहा करता हूँ। लेकिन अन्य जातियों के कुछ पक्षी मांसाहारी भी हुआ करते हैं। चील, गिद्ध, बाज़ जाति के पक्षी मांसाहार ही किया करते हैं। कुछ पक्षी कीड़े-मकोड़े खाकर भी जीवित रहते हैं। कुछ विष्ठा तक खा जाते हैं। भाई मनुष्यों में तो भिन्न आहार-विहार वाले लोग होते हैं न। उसी प्रकार हम पक्षियों में भी हैं।
मैं पक्षी तो स्वतन्त्रतापूर्वक किसी पेड़ की डाली पर घोंसला बनाकर रहना, मुक्त आकाश में मुक्त भाव से चहचहाते हुए इच्छापूर्वक दूर-दूर तक उड़ना ही स्वाभाविक रूप से अच्छा लगता है। जैसे आप मनुष्यों को कई बार परतंत्र जीवन बिताना पड़ जाता है अनिच्छा से, वैसे ही कई बार मुझे भी आप मनुष्यों के बंधन में, पिंजरे में बंद होकर रहना पड़ जाया करता है। इस प्रकार की परतंत्रता सभी सुख-सामग्रियाँ सुलभ रहने पर भी अच्छी नहीं लगा करती। स्वतंत्र रहकर रोज सुबह दूर-दराज तक उड़ दाना-दुनका चुराकर साँझ ढले चहचहाते हुए वापस घोंसले में लौट आना, इस प्रकार परिश्रम से भरा स्वावलंबी जीवन की चाहत है। हम पक्षियों की। सोने का पिंजरा भी मुझे सच्चा सुख नहीं दे सकता अत: कभी भूलकर भी इस प्रकार की परतंत्र रहने की बात न कहना-करना। आप मनुष्यों के समान हमें भी ऐसी बात पसंद नहीं हम उडने वाले पक्षियों को कतई नही।