Hindi Essay, Paragraph, Speech on “New Education Policy India”, ”नई शिक्षा प्रणाली: 10 + 2 + 3” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
नई शिक्षा प्रणाली: 10 + 2 + 3
लार्ड मैकाले ने हमारे देश के लिए एक ऐसी शिक्षा-प्रणाली प्रस्तुत की थी जिसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक ऐसे क्लर्क तैयार करना था जो कम वेतन लेकर प्रशासनिक कार्य सम्भाल सकें। वह शिक्षा-प्रणाली पश्चिमी ढंग पर तैयार की गई थी जिसमे अंग्रेजी भाषा और संस्कृति पर आधारित शिक्षा दी जाती थी। अतः भारत की पद्धति स्वाधीन भारतीय समाज में हमारा आवश्यकताआ की पूर्ती कर पाने में अक्षम है। स्थान-स्थान पर पढ़े-लिखे बेरोजगारों की भीड़ दिखाई देती है। देश इतनी सारी नौकरियां उपलब्ध करने में असमर्थ है जिससे की बेरोजगारी का मुकाबला किया जा सके।
यही कारण है कि हमारे देश भारत को शिक्षा की एक नई प्रणाली की आवयकता महसूस हुई और उसके निर्माण के लिए एक नया शिक्षा आयोग गठित किया गया। उस आयोग ने भारत सरकार को परामर्श दिया कि शिक्षा की सम्पर्ण पद्धति ही दोषपर्ण है। साथ ही यह सुझाव भी दिया कि विद्यार्थियों को विद्यालय में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी देना चाहिये ताकि अपनी स्कूली पढ़ाई समाप्त करने के बाद वे अपने स्वयं के उद्योग-धन्धे अथवा व्यवसाय प्रारम्भ करने योग्य हो सकें। शिक्षा की इस नयी प्रणाली को 10 +2+3 का नाम दिया गया। इस प्रणाली को केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं के परामर्श पर स्वीकार किया गया था, जो देश में विद्यार्थियों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं अतः सन 1975 में देश के कई राज्यों में यह शिक्षा पद्धति लागू कर दी गई और सुचारु रूप से चल रही है।
इस प्रणाली के अनुसार एक विद्यार्थी चौदह वर्ष के स्थान पर पन्द्रह वर्षों में स्नातक डिग्री हासिल कर सकेगा। इसमें शिक्षा के व्यावसायिक पक्ष पर विशेष बल दिया गया है। जो विद्यार्थी अच्छे परिणाम लाने में असमर्थ हैं वे आगे का अपना अध्ययन रोक कर स्वयं अपने छोटे-छोटे उद्योग या व्यवसाय प्रारम्भ कर सकते हैं।
इस प्रणाली के अनुसार प्रत्येक विद्यालय में एक घण्टे का व्यावसायिक प्रशिक्षण अनिवार्य है, किन्तु हस्तकलाओं के अध्यापक चालीस विद्यार्थियों वाली कक्षा को यह प्रशिक्षण केवल एक घण्टा ही दे सकते हैं।
यह शिक्षा-प्रणाली दिल्ली तथा कई राज्यों में लागू की जा चुकी है, किन्तु इसे सफल बनाने में अनेकानेक कठिनाइयां सामने हैं। पूरे साज-सामान से युक्त स्कूली प्रयोगशालाओं के लिए एक ओर जहां अधिकाधिक धन की आवश्यकता है वहीं दूसरी ओर अनुभवी और प्रशिक्षित शिक्षकों की भी आवश्यकता है। किन्तु वास्तविकता यह है कि हजारों की तादाद में ऐसे विद्यालय हैं जिनका संचालन गैर-सरकारी प्रबन्ध समितियां करती हैं। वे अपनी संस्थाओं का सुचारु रूप से संचालन नहीं कर सकती हैं। उनके लिए अपने विद्यालयों में इतनी महंगी शिक्षा पद्धति लागू कर पाना सम्भव नहीं।
इसके अतिरिक्त विभिन्न व्यवसायों अथवा नौकरियों के लिये उपयोगी विषयों का चुनाव भी भ्रामक है तथा सभी विषयों के शिक्षण का बोझ अत्यन्त बढ़ जाता है। वैसे ही विद्यार्थियों को बहुत सारी पाठ्य-पुस्तकों में सिर खपाना पड़ता है। ऊपर से व्यावसायिक प्रशिक्षण का बोझ। परिणाम यह होता है कि वे हिम्मत हार बैठते हैं। और फिर, इतने कम समय में इतना सारा कुछ पचा पाने की आशा भी उनसे नहीं की जा सकती। ऐसी हालत में आशातीत परिणामों की अपेक्षा हम नहीं कर सकते क्योंकि अधिकांश विद्यार्थियों के लिये ज्ञान पचा पाना सम्भव नहीं दीखता। साथ ही कोई शिक्षक भी सम्भवतः इतना समय नहीं दे सकता कि एक विद्यार्थी को ऐसी प्रयोगशालाओं में पर्याप्त अनुभव प्राप्त करा सके।
इन्हीं सब बाधाओं और अड़चनों के परिणामस्वरूप अनेकानेक शिक्षाविदों ने भी इस प्रणाली को शंका की दृष्टि से देखा है और समाप्त करने की सलाह दी है। देश के भूतपूर्व (दिवंगत) प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने भी अपने एक वक्तव्य में कहा था कि यह नई शिक्षा-पद्धति विद्यार्थियों के लिये एक अतिरिक्त बोझ सिद्ध होगी और वे जितना सीखेंगे उससे अधिक खोयेंगे। उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी कि शिक्षा विशेषज्ञ सम्पूर्ण समस्या पर एक बार पुनः चिन्तन करें और इसी सबका परिणाम है कि उपर्युक्त सम्पूर्ण शिक्षा-प्रणाली का अभी भी सर्वेक्षण चल रहा है और निकट भविष्य में उसमें कुछ सीमा तक परिवर्तन की सम्भावना है।
इस प्रणाली का एकमात्र धनात्मक पक्ष यह है कि विद्यार्थी अपनी रुचि की कलाओं में प्रशिक्षित हो सकते हैं और केवल प्रखर-बुद्धि छात्र ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय क्षति को रोका जा सकता है। हमारे देश को टैक्नोलॉजी में निपुण लोगों की आवश्यकता है और इस शिक्षा-पद्धति द्वारा काफी बड़ी संख्या में | ऐसे लोग उपलब्ध हो सकेंगे जो अन्ततः देश को सुख और समृद्धि की ओर ले जाएंगे। कई विद्यालयों में बीमा कोर्स, इलैक्ट्रॉनिक्स, ट्रेवल और टूरिज्म तथा स्टेनोग्राफी आदि कोर्स प्रारम्भ किए गए हैं। परन्तु उनके लिए प्रशिक्षित अध्यापक नहीं भेजे जाते हैं। इसलिए इन कोरों में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थी निराश होकर निर्धारित अवधि के बीच में ही इन्हें छोड़ देते हैं।