Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Nari Shiksha”, ”नारी शिक्षा” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
नारी शिक्षा
पुरुष हो या नारी, शिक्षा पाना सभी का समान अधिकार तो है ही सही, सभी के लिए आवश्यक भी है। शिक्षा आदमी के मन-मस्तिष्क के विकास का सभी उचित अवसर प्रदान करती है। शिक्षा आदमी की आँख के समान कही जानी चाहिए। जिस प्रकार सही आँख वाला व्यक्ति हर वस्तु को ठीक प्रकार से देख कर पहचान सकता है, उसी प्रकार शिक्षित स्त्री-पुरुष जीवन समाज की प्रत्येक वस्तु को, अच्छे-बुरे रूप को, उसके पड़ने वाले प्रभाव को, जान-पहचान कर उसके ग्रहण या त्याग की उचित सलाह दे सकता है। इसी लिए शिक्षा का महत्त्व सृष्टि के आरम्भ और विकास-काल से ही स्वीकार किया जाता रहा है।
एक बालक-फिर चाहे वह नारी हो या नर, सबसे पहले एक माँ के रूप में नारी के संपर्क में ही आया करता है। उसे जन्म देने वाली भी नारी होती है। उस का पालन-पोषण करके उसे उठना-बैठना, बोलना, चलना-फिरना सभी कुछ नारी ही सिखाया करती है। वही अच्छे-बुरे सभी तरह के औरम्भिक संस्कार बालकों को प्रदान कर उस जमीन पर खडा कर दिया करती है कि उनके अनुसार ही आगे वह जीवन-यात्रा और विकास की राह पर चल कर अपने अच्छे-बुरे रूप में कुछ बना करते हैं। कहा जा सकता है कि कल के नागरिक बनने वाले आज के बालकों की बनियाद नारी के संस्कार और व्यवहार पर ही आधारित हुआ करती है। इस कारण उसका पढ़ी-लिखी और शिक्षित होना और भी आवश्यक है। एक पढ़ी-लिखी और शिक्षा पाई नारी ही अपने बालकों को वे सारे संस्कार प्रदान कर सकती है कि जो उस के अपने, अपने घर-परिवार की उन्नति और विकास के लिए तो आवश्यक हुआ ही करते हैं: जीवन और समाज, देश और राष्ट्र के विकास के लिए भी आवश्यक होते हैं। इस से नारी के लिए शिक्षा पाने का अर्थ और महत्त्व है, यह बात एक दम स्पष्ट हो जाती है।
भारतवासी नारी के लिए शिक्षा का क्या महत्त्व है. इस बात को शुरू से जानते थे. यही कारण है कि यहाँ की आश्रमों की शिक्षा प्रणाली में जहाँ पुरुषों को शिक्षा देने की व्यवस्था रहा करती थी, वहाँ नारी-शिक्षा के लिए भी सब तरह की व्यवस्था की जाती थी। महर्षि वाल्मीकि, महर्षि कण्व, भारद्वाज आदि के आश्रमों में काम करने वाले छात्रों उल्लेख मिलता है, वहाँ छात्राओं का भी शिक्षा पाने, आश्रमों की हर तरह की गति विधि में भाग लेने का वर्णन मिलता है। फिर इस बात के सबूत भी मिलते हैं कि और मंत्रों की रचना करने वाले केवल पुरुष ही नहीं थे; बल्कि अनेक नारियाँ भी थीं। इस से स्पष्ट है कि तब शिक्षा का कितना महत्त्व था और यहाँ कि नारियाँ हर प्रकार से सशिक्षित हुआ करती थीं। हाँ, मध्यकाल में भारत में जब लगातार विदेशी आक्रमण होने लगे, उन आक्रमणकारियों का नारी जाति के प्रति व्यवहार भी सभ्यतापूर्ण नहीं रह गया, तब अवश्य ही भारत की नारी को घर की चारदीवारी में बन्द होकर रह जाना पड़ा। इससे उसके शिक्षा पाने में भी बाधा पड़ी और वह प्रायः अशिक्षित ही रहने लगी।
भारत पर अंग्रेजी राज की स्थापना, उसके विरूद्ध चलने वाले स्वतंत्रता-संघर्षों के फलस्वरूप भारत की नारी में जागृति आई। नारी-जागरण के लिए देश की कई संस्थाओं ने कई तरह के आन्दोलन भी चलाए। उनके पढ़ने-लिखने और शिक्षा पाने की कई प्रकार की व्यवस्थाएँ कीं। फलस्वरूप वह एक बार फिर शिक्षा के क्षेत्र में तो महत्त्वपूर्ण स्थान पाने ही लगीं. अपनी शिक्षा के बल पर जीवन-समाज के निर्माण में भी सहयोग करने लगी। नारी क्योंकि जीवन-समाज का आधा अंग है, यदि आधा अंग ही बेकार हो, अनपढ़ तथा गंवार हो. तो समाज वास्तविक उन्नति तथा विकास कदापि नहीं कर सकता। यही साच कर नारी-शिक्षा पर बराबर बल दिया जाता रहा। उनके लिए पहले अलग से शिक्षा की व्यवस्था की जाती रही. आन वह अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षा पाने के क्षेत्र में भी पूरी तरह से स्वतंत्र है। वह केवल नारी-संस्थाओं में जाकर शिक्षा पा सकती है और पुरुषों के लिए खुले स्कूलों-कॉलेजों में उन के साथ मिलकर भी पढ़-लिख सकती है। दोनों जगह वह बराबर शिक्षा पा रही है।
आज के युग में नारी-शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। आज का युग एक तो प्रतियोगिता का है, दूसरे बड़ा महँगा है। तीसरे यह भी माँग करता है कि आज नारी भी आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बने। उस को अपने अस्तित्व और व्यक्तित्व की, स्वाभिमान की रक्षा के लिए भी शिक्षा पाना आवश्यक है। यही सोच कर आज नारी शिक्षा के ऊँचे-से ऊँचे शिखर तक सफलतापूर्वक पहुँच रही है, यह सभी जानते और समझते हैं।