Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Mahatma Gautam Budha”, “महात्मा गौतम बुद्ध” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
महात्मा गौतम बुद्ध
Mahatma Gautam Budha
माना जाता है महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म ई.पू. 623 में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोधन की महारानी माया के गर्भ से लुंबिनी नामक जगह में हुआ था। कहा जाता है कि तब वैशाख माह की पूर्णिमा थी। दुःख की बात है कि महात्मा गौतम बुद्ध के जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता जी का देहांत हो गया था। फलतः महात्मा गौतम बुद्ध जी का लालन-पालन उनकी सौतेली माँ ने किया। जिसका नाम प्रजावती था। हालांकि ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि महात्मा गौतम बुद्ध मानवजाति का सांसारिक या आध्यात्मिक अर्थ दोनों में ही सक्षम होंगे।
महात्मा गौतम बुद्ध का बचपन का प्रचलित नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ ने संसार की विचित्रता को गंभीरतापूर्ण देखना शुरू कर दिया। सिद्धार्थ की संसार की विचित्रता के प्रति बढ़ती हुई चिंता को देख उनके पिता राजा शुद्धोधन ने अत्यन्त सुन्दर मनमोहिनी कन्या यशोधरा से उनका विवाह कर दिया ताकि वह मोह-माया में पड़ अपनी जिम्मेवारी निभा सकें। पर प्रभु को कुछ और ही मंजूर था। महात्मा गौतम बुद्ध को बार-बार यही सोचने और चिन्ता करने लगे कि क्या जीवन का उद्देश्य केवल सुख-भोगना है और कुछ भी नहीं।
एक दिन महात्मा गौतम बुद्ध ने रथ पर सवार होकर भ्रमण करते हुए एक वृद्ध व्यक्ति को देखा। उन्होंने सारथि से पूछा- क्या हम सबका भी यही हाल होगा? सारथि ने कहा- हाँ! जिसे सुन महात्मा गौतम बुद्ध चिंतित हो उठे।।
दूसरे दिन भ्रमण पर निकले तो- एक अस्वस्थ व्यक्ति को देखा। देख चिंतित हो उठे और उनके मन में विरक्ति का भाव और बढ़ गया। वे उदास होकर महल लौटे। लौटते समय उन्होंने एक अर्थी देखी फिर क्या उनके मन में विचार आया- क्या यही जीवन है? जैसे वृद्ध होना ही पड़ता है, उसी तरह रोगों से भी छुटकारा नहीं मिल सकता है और मृत्यु भी सत्य है, यही जीवन का अंत है, क्या?
महात्मा गौतम बुद्ध महल आकर इन्हीं बातों पर सोच रहे थे फिर उन्होंने इस रहस्य का पता लगाने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
फिर एक रात को महात्मा गौतम बुद्ध धीरे से उठ बैठे। एक बार बड़े ध्यान से उन्होंने सोते हुए अपने पुत्र और स्त्री को देखा। फिर सारथि को लेकर रथ पर राजमहल से बहुत दूर निकल गए। सुबह होने तक वे एक नदी के किनारे पहुँच गए। वहीं पर उन्होंने अपने बालों को काट दिया। अपने राजसी ठाट-बाट का त्याग कर सत्य की खोज पर निकल पड़े। । महात्मा गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज में भटकते हुए गुरु की तलाश की। कहा जाता है उनके प्रथम गुरु अराड थे। उनके साथ वे कई ग्रंथों-दर्शनों का अध्ययन-मनन किया। फिर भी उन्हें सत्य का प्रकाश नहीं मिला। वे सत्य की खोज में भटकते हुए जंगलों में जाकर तप करने लगे। जिससे उनका शरीर शक्तिहीन हो गया। इसी समय सुजाता नाम की औरत अपने पुत्र-रत्न की प्राप्ति के लिए वहाँ पर देवता को प्रसाद चढ़ाने आयी।महात्मा गौतम बुद्ध को सामने देख वह उसके पास गई। उसने उसे प्रसाद चढ़ाया जिसे देख उसके बाकी साथियों ने उसकी निंदा शुरू कर दी। जिसकी परवाह न करते हुए महात्मा गौतम बुद्ध ने समाधि लगा ली।।
महात्मा गौतम बुद्ध ने सात वर्षों के कठोर समाधि में लीन रहे। समाधि भंग होने पर स्वयं से प्रश्न कर रहे थे कि क्या संसारी उपदेश देना चाहिए आदि प्रश्न गूंज रहे थे।
कहा जाता है कि देवताओं ने प्रकट होकर महात्मा गौतम बुद्ध से निवेदन किया कि वे उपदेश करें।
महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेशों से हमें सीख मिलती है कि हमें सत्य का अनुसरण करना चाहिए। अहिंसा को अपनाना चाहिए। नृत्य, श्रृंगार आदि उत्तेजक दृश्यों को नहीं देखना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। जो हमें मिला है, बस उसी में संतोषकर ग्रहण करना चाहिए।
जिसका व्यापक प्रभाव श्रोताओं पर पड़ा।
माना जाता है कि 80 वर्ष की उम्र में वे गोरखपुर जिले के कुशीनगर के पास उपदेश देने के दौरान बीमार पड़े, जहाँ पर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
महात्मा गौतम बुद्ध रहें न रहें। याद आते हैं उनके उपदेश, उनकी सीख . बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने बुद्ध धर्म को स्वीकार किया। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके आदेशों का पालन चलता रहा। बौद्ध भिक्षुओं ने इस उपदेश को दूर-दूर तक फैलाया। आज भी इस धर्म के अनुयायी हमें हर जगह पर मिलते हैं।