Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Mahanagriya Jeevan”, “महानगरीय जीवन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
महानगरीय जीवन
Mahanagriya Jeevan
निबंध # 01
वर्तमान समय में भारत के अनेक प्रमुख नगर महानगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। एक नई महानगरीय सभ्यता पनपती जा रही है। महानगरों का जीवन जहाँ एक ओर आकर्षित करता है, वहीं वह अभिशाप से कम नहीं है। आधुमिकता की चमक-कदम इन महानगरों में दृष्गिोचर होती है। यह आकर्षक समान्य नगर-कस्बे एवं गाँवों के लोगों को महानगर की ओर खींचता है, पर यहाँ की समस्याएँ उन्हे ऐसे चक्र में उलझाकर रख देती हैं जिससे बाहर निकलना आसान नहीं होता । महानगरों का जीवन जहाँ वरदान है, वहीं अभिशाप भी है।
भारत में कोलकता, मुम्बई, चेन्नई और दिल्ली जैसे महानगर हैं। इन नगरों का अपना ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इनमें से तीन नगरों की जनसंख्या इक्कीसवीं सदी में प्रविष्ट होते समय एक करोड़ को पार कर गई है। इससे कम जनसंख्या वाले तो कई पूरे देश हैं। ये महानगर एक नवीन भारत की रचना में महत्पवूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हंै। दुनिया भर की आधुनिकतम सुविधाएँ इन महानगरों में उपलब्ध हैं। इनका नित्य नया रूप निखर रहा है। इन महानगरों की गगनचुम्बी इमारतें सामान्य जन के लिए कौतूहल का विषय हैं।
यह सत्य है कि महानगरीय जीवन सम्पन्न व्यक्तियों के लिए वरदान है। उन्हें उन नगरों में स्वर्ग जैसे सुख की अनुभूति होती है। उनका व्यवसाय इन्हीं नगरों में प्रश्रय पाता है। वे ही इन नगरों को सजाने-संवारने का करते हैं। सरकार भी इन्हें नए-नए रूपों में विकसित कर रही है। निश्चय ही धनिक वर्ग के लिए महानगरीय जीवन वरदान है।
म्हानगरों में सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी होती रहती हैं। इसमें रूचि रखने वालों को यहाँ का जीवन वरदान होता है। उन्हें बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है, पर महानगर के व्यस्त जीवन में अपने लिए स्थान बना पाना इतना सहज नहीं है। इसके लिए अथक परिश्रम और लग्न की आवश्यकता होती है।
अभिशाप-इसके साथ-साथ निम्न-मध्यवर्ग महानगरीय जीवन के दुष्चक्र में पिसकर रह गया है। बढ़ती जनसंख्या और सिकुड़ते सधनों ने उसका जीवन दूभर बना दिया है। महानगरों में अनेक समस्याओं से उन्हें जूझना पडता है। आवास की समस्या बडी़ विकराल होती जा रही है। झोपड़पट्टी नुमा बस्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। एक ओर विशाल अट्टालिकाएँ खडी़ हैं, जो दूसरी ओर झुग्गी बस्तियाँ जन्मती जा रही हैं। एक व्यक्ति बीस-बीस कमरों में रहता है और बीस-बीस व्यक्ति एक कमरे में रहते हैं। कितना बड़ा अंतर है, महानगरीय आवास व्यवस्था मंें।
शहरों में खाने-पीने की कठिनाई का भी समाना करना पड़ता है। न ता वहाँ शुद्ध जल मिल पाता है, न शुद्ध दूध। हर वस्तु प्रदूषित मिलती है। यही कारण है कि महानगरों में लोग प्रायः बीमार रहते हैं। न उन्हें खुली वायु साँस लेने के लिए उपलब्ध हो पाती है और न धूप। कुछ लोगों को छोड़कर अधिकाशं लोगों को पौष्टक भोजन भी उपलब्ध नहीं होता। हर ओर प्रदुषण ही प्रदुषण है।
महानगरों में शिक्षा की सुविधाएँ अवश्य उपलब्ध हैं किन्तु इस क्षेत्र में पर्याप्त भेदभाव है, धनिक वर्ग को पब्लिक स्कूलों की सुविधाएँ मिल जाती हैं, जबकि निम्न-मध्य वर्ग सामान्य सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढाने के लिए विवश है। वह पब्लिक स्कुलों की मंहगी शिक्षा झेल नही पाता है। उच्च शिक्षा की व्यवस्था महानगरों मंे एक वरदान के रूप मंे है। इसका लाभ निकटवर्ती क्षेत्रों के लोग भी उठाते हैं।
महानगरों में यतायात की समस्या विकराल होती चली जा रही है। तरह-तरह के अंधाधुंध बढ़ते वाहनों के कारण जगह-जगह जाम लग जाना एक आप बात हो गई है। सामान्य लोगों के लिए अपने कार्यस्थल पर पहुँचना भी एक समस्या हो जाता है। धनी वर्ग के पास कारों की बहुतायत होने पर भी उन्हें सड़क का जाम तो झेलना ही पड़ता है।
महानगरों कंकरीट के जाल बनकर रह गए है। यहाँ के निवासियों की मानवीय संवेदना शून्य हो गई है। सभी अपने-अपने दायरों में सिमट कर रह गए हैं। यहाँ के लोगों के बारे में विजयदेव नारायण साही ने कहा है-
इस नगर में
लोग या तो पागलों की तरह
उत्तेजित होते हैं।
या दुबक कर गुमसुम हो जाते हैं।
जब वे गुमसुम होते हैं
तब अकेले होते हैं
लेकिन जब उत्तेजित होते हैं
तब और भी अकेले हो जाते हैं।
निबंध # 02
महानगरीय जीवन
Mahanagariya Jeevan
संकेत बिंदु –महानगरों का जीवन –उच्च वर्ग और मध्य वर्ग का जीवन –महानगरों की समस्याएँ –महानगरों में सुविधाए
वर्तमान समय में भारत के अनेक प्रमुख नगर महानगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। एक नई महानगरीय सभ्यता पनपती जा रही है। महानगरों का जीवन जहाँ एक ओर आकर्षित करता है, वहीं वह अभिशाप से कम नहीं है। आधुनिकता की चमक-दमक इन महानगरों में दृष्टिगोचर होती है। यही आकर्षण सामान्य नगर-कस्बे एवं गाँवों के लोगों को महानगर की ओर खींचता है, पर यहाँ की समस्याएँ उन्हें ऐसे चक्र में उलझाकर रख देती हैं जिससे बाहर निकलना आसान नहीं होता। महानगरों का जीवन जहाँ वरदान है, वहीं अभिशाप भी है। इसके साथ-साथ निम्न-मध्यवर्ग महानगरीय जीवन के दुष्चक्र में पिसकर रह गया है। बढ़ती जनसंख्या और सिकुड़ते साधनों ने उनका जीवन दूभर बना दिया है। महानगरों में अनेक समस्याओं से उन्हें जूझना पड़ता है। आवास की समस्या बड़ी विकराल होती जा रही है। झोपड़पट्टीनुमा बस्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। एक ओर विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं तो दूसरी ओर गंदी बस्तियाँ जन्मती जा रही हैं। महानगरों में खाने-पीने की कठिनाई का भी सामना करना पड़ता है। न तो वहाँ स्वच्छ जल मिल पाता है, न शुद्ध दूध। हर वस्तु प्रदूषित मिलती है। यही कारण है कि महानगरों में लोग प्रायः बीमार रहते हैं। न उन्हें खुली वायु साँस लेने के लिए उपलब्ध हो पाती है और न धूप। कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश लोगों को पौष्टिक भोजन भी उपलब्ध नहीं होता। महानगरों में शिक्षा की सुविधाएँ अवश्य उपलब्ध हैं पर इस क्षेत्र में भी पर्याप्त भेदभाव है, धनिक वर्ग को पब्लिक स्कूलों की सुविधाएँ मिल जाती हैं, जबकि निम्न-मध्य वर्ग सामान्य सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए विवश है। वह पब्लिक स्कूलों की महँगी शिक्षा झेल नहीं पाता। उच्च शिक्षा की व्यवस्था महानगरों में एक वरदान के रूप में है। इसका लाभ निकटवर्ती क्षेत्रों के लोग भी उठाते हैं। महानगरों में सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी होती रहती हैं। इसमें रुचि रखने वालों को यहाँ का जीवन वरदान से कम प्रतीत नहीं होता। उन्हें आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है. पर महानगर के व्यस्त जीवन में अपने लिए स्थान बना पाना इतना सहज नहीं है। उसके लिए अथक परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है।