Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Kamkaji Nari aur Uski Samasya” , “कामकाजी नारी और उसकी समस्याएँ” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
कामकाजी नारी और उसकी समस्याएँ
Kamkaji Nari aur Uski Samasya
कामकाजी नारी यानि दोहरा कार्यभार–कामकाजी नारी का अर्थ है-धनोपार्जन में लगी नारी। ऐसी नारी दगने संकट झेलती है। उस पर दुगुने दायित्व होते हैं। उसे घर और बाहर-दोनों के बीच संतुलन बैठाना पड़ता है। उसे रसोई, चूल्हा-चौका, सफाई, साज-सज्जा का काम तो करना ही होता है। उसके परिवार के सदस्य यह सहन नहीं कर पाते कि वह नौकरी करके पुरुषों की तरह शेष कामों से मुक्त रहे। अविवाहित कन्या के माता-पिता फिर भी अपनी बेटी के कार्यभार को बँटा लेते हैं किन्तु ससराल में वह को घर-गृहस्थी का पूरा झंझट निभाना पड़ता है। परिणामस्वरूप वह दुगुना काम करने को विवश हो जाती है। घर में काम से बचे तो सास नाराज़, कार्यालय में कामचोरी करे तो बॉस नाराज़। वह दुधारी तलवार की दोनों धारों पर चलती रहती है।
मातृत्व–काल के संकट–कामकाजी नारी को सबसे बड़ा संकट तब झेलना पड़ता है, जब वह माँ बनती है। इस महत्त्वपूर्ण दायित्व के लिए उसे केवल चार छ: महीने की छुट्टियाँ मिलती हैं जबकि बच्चे के लालन-पालन के लिए उसे अनेक वर्षों को आवश्यकता होती है। सच मायनों में नवजात शिशु और कामकाजी माँ-दोनों नौकरी के पहिए के नीचे कुचले जाते हैं। दोनों को एक-दूसरे की सख्त जरूरत होती है। परंतु नौकरी के चलते उन्हें अनचाहे समझौते करने पड़ते हैं। बच्चे को शिशु-गृहों में रखना पड़ता है। उसे माँ के दूध की बजाय बाजारू दूध पिलाना पड़ता है। नारी के कामकाज की सबसे बड़ी कीमत बच्चे को चुकानी पड़ती है और स्वयं नारी को भी।
कार्यालय में आने वाली बाधाएँ–नारी माँ बनते ही घर-गृहस्थी और बाल-बच्चों को प्राथमिकता देने लगती है। परिणामस्वरूप उसका ध्यान अपने कामकाज, व्यवसाय और नौकरी से हटने लगता है। यह बात नियोक्ता के गले नहीं उतरती। परिणामस्वरूप कामकाजी नारी को रोज-रोज अपने कार्यालय की सख्ती सहन करनी पड़ती है। प्राइवेट नौकरी पर लगी नारियाँ तो इस दौरान हटा दी जाती हैं।
कामकाजी नारी को कार्य के दौरान अनेक लज्जाजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। उसे लोक-संपर्क के कामों में चाहे-अनचाहे लोगों से मिलना पड़ता है। यदि वह किसी एकांत-स्थल पर कार्य करती हो और उसे किसी परुष अधिकारी के अधीन काम करना पड़ता हो तो उसका जीवन आशंका से ग्रस्त रहता है। अनेक विवश नारियों को नौकरी के दबाव में अनचाहे समझौते करने पड़ते हैं।
समाज का असुरक्षित वातावरण–हमारे समाज का असुरक्षित वातावरण भी कामकाजी नारी की समस्याओं को बढ़ावा देता है। कामकाजी नारी को नौकरी के काम से कभी-कभी देर-सवेर हो जाती है। तब एकांत-स्थान, अँधेरा और घर की दूरी-तीनों मिलकर उसकी घड़कनें बढा देते हैं। ऐसी स्थिति में उसके साथ कुछ भी अपमानजनक घट सकता है।
परिवार का असहयोग–कामकाजी नारी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके परिवार-जन उससे नौकरी तो करवाना चाहते हैं किंतु उसके बदले उसे सुविधा या सहयोग नहीं देना चाहते। उसके पतिदेव घर के कामों में हाथ बँटाना अपना अपमान समझते हैं। सास-ननद उसके साथ रुखाई से पेश आती हैं। बच्चे माँ पर पूरा अधिकार रखकर हर काम पूरा होता देखना चाहते हैं। उधर समाज के सदस्य भी नारी की नौकरी को ईर्ष्या और उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। इस कारण उसके पग-पग पर अनेक संकट खड़े दिखाई देते हैं।