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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Ikkisvi Sadi ka Bharat”, “इक्कीसवीं सदी का भारत” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

इक्कीसवीं सदी का भारत

Ikkisvi Sadi ka Bharat

निबंध नंबर : 01 

                इक्कीसवीं सदी की कल्पना अत्यंत जिज्ञासापूर्ण एवं आह्लादकारी है। हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर गए हैं। नई सदी में प्रवेश की तैयारी में इतना उत्साह पहले कभी दिखाई नहीं दिया। हमारे प्रधानमंत्री ने इक्कीसवीं सदी में भारत को प्रविष्ट कराने की तैयारी बड़ी धूमधाम से की है। प्रधानमंत्री की कल्पना पर जाएँ तो मन में अत्यंत प्रसन्नता होती है।

                इक्कीसवीं सदी भारत के लिए उपलब्धियों से भरी होगी। इस सदी में कंम्पयूटर के प्रयोग का बाहुल्य होगा। कंप्यूटर मशीनी मस्तिष्क का स्थान लेगा। कंम्यूटर चुनाव-विश्लेषण, राजनैतिक सूचनाओं का एकत्रीकरण एवं विश्लेषण एवं सरकारी कार्यालयों का काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा। कई आलोचकों ने यह संभावना व्यक्त की है कि इससे बेरोजगारी की समस्या और भी विकराल रूप धारण कर लेगी। सरकार की योजना यह है कि मानव-शक्ति का उपयोग दूसरे क्षेत्रों में किया जाएगा, अतः यह आंशका निर्मूल सिद्ध होगी। इक्कीसवीं सदी मंे भारत मंे संचार क्रांति अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाएगी।

                भारत इस समय गरीबी की समस्या से उलझा हुआ है। वह गत 50-55 वर्ष से इस समस्या से मुक्त होने का प्रयास कर रहा है। आर्थिक स्वतंत्रता पाना भारत का एक लक्ष्य रहा है। भारत सरकार एक सुनियोजित ढंग से अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है। आशा की जाती है कि 21वीं शताब्दी के कुछ दशकों मे गरीबी का अभिशाप हमसे विदा ले चुका होगा। प्रत्येक देशवासी को रोजगार, वस्त्र, भोजन एंव आवास जुटाने का लक्ष्य पूरा होते ही गरीबी छूमंतर हो जाएगी। इक्कीसवीं सदी में सभी भारतवासियों के सुखी जीवन की कल्पना की जा रही है।

                भारत में आद्यौगिक विकास की दर अभी तक कम है। इस दिशा में प्रयत्न जारी है। इक्कीसवीं सदी के आगमन के साथ हमारे उद्योग पूरी गति के साथ उत्पादन कर सकेंगे। उद्योगों की नई इकाईयाँ स्थापित की जा रही है। आशा की जाती है कि इक्कीसवीं सदी में उद्योगों का जाल बिछा जाएगा और हम विश्व-बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिक सकेंगे।

                यद्यपि कृषि की दशा अब भी संतोषजनक है, फिर भी जनसंख्या वृद्धि की दर को देखते हुए और इक्कीसवीं सदी की कल्पना करते हुए कृषि को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करना नितांत आवश्यक है। दालों का उत्पादन बढ़ाया जाना आवश्यक है। इक्कीसवीं सदी में हम अन्न संकट से पूरी तरह उबर सकेंगे। खाद, सिंचाई एंव उत्तम बीजों की सहायता से इस पर काबू पाया जा सकेगा।

                इक्कीसवीं सदी की कल्पना का भारत अपनी संास्कृतिक धरोहर की रक्षा करने मंे पूर्णतः स्मर्थ होगा। हमारी संस्कृति अत्यंत प्राचीन होने के साथ-साथ महान है। आज पाश्चात्य प्रभाव ने हमें अपनी संस्कृति से थोड़ा अलग-थलग कर दिया है, पर देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अभियान योजनाबद्ध ढंग से चलाया जा रहा है। देश में सात सांस्कृतिक केंद्रो की स्थापना इसी दिशा में सफल प्रयास है। विदेशांे में भी ’भारत-उत्सव’ आयोजिक किए गए हैं। इनसे विश्व में भारत की छवि निखरी है। इस क्षेत्र में इक्कीसवीं सदी निश्चय ही सुखद होगी। भारत एक बार पुनः अपना खोया गौरव प्राप्त कर लेगा।

                हमंे आशावादी दृष्टिकोण ही अपनाना चाहिए। लुभावनी कल्पना मन को सुनहले स्वप्नांे की दुनिया में ले जाती है। स्वप्न देखना कोई बुरी बात नहीं है। स्वप्न भी हमें दिशा ज्ञान देते हैं। इक्कीसवीं सदी की सुखद कल्पना पूरी हो सकती है, यदि हम अभी से पूरे मन से उसकी तैयारी में जुट जाएँ। कठोर परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। इक्कीसवीं सदी निश्चय ही भारत भाग्य विधाता सिद्ध होगी।

 

निबंध नंबर : 02

 

इक्कीसवीं सदी का भारत

Ikkisvi Sadi ka Bharat

आजकल हम इक्कीसवीं शताब्दी के में जी रहे हैं। समय बड़ी तेजी से अगली शताब्दी का स्पर्श करना चाहता है। भारत में बड़ी उत्सुकता से आने वाली सदी की प्रतीक्षा हो रही है। कैसा होगा आने वाली सदी का भारत अच्छा या फिर आज से भी बदतर? दोनों प्रकार के अनुमान लगाए जा रहे कहावत है कि Coming events cast their shadows before, इसी को हिन्दी में कहा जाता है कि होनहार बिरवान के होत चिकने-पात। इस कहावत के अनुसार भी इक्कीसवीं सदी में भारत की दशा के दो एकदम परस्पर विरोधी चित्र ही हमारे सामने उभर कर आ पाते हैं। दोनो चित्रों का आधार आज की बन- बिगड़ रही स्थितियाँ ही हैं।

पहले अच्छा चित्र ! आज भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में निरन्तर नए प्रयोग करते हुए नए-नए उद्योग-धन्धे, कल-कारखाने स्थापित कर, व्यवहारपरक खुली नीतियाँ अपना कर जिस प्रकार विश्व में एक नई शक्ति के रूप में उभर रहा है। उस से लगता है कि अगली सदी में प्रवेश करने तक यह वास्तव में एक महाशक्ति बन जाएगा। अच्छी, व्यवहार पूरक और प्रगतिशील नीतियाँ अपना कर तब तक अपनी वर्तमान सभी समस्याओं का हल खोज लेगा। जनसंख्या की वृद्धि रुक कर वह सन्तुलित हो जाएगी। उसी के अनुपात से रोटी, कपड़ा, मकान जैसी समस्याओं के समाधान भी खोज लिए जाएँगे। उद्योग-धन्धों का निरन्तर विकास कर बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर भी काबू पा लिया जाएगा। भ्रष्टाचार जड़-मूल से समाप्त कर शासन-प्रशासन को हर स्तर पर साफ सुथरा बना लिया जाएगा। हमारी धरती. हमारे सागर और आकाश आदि सभी पूर्ण मुक्त और अपने होंगे। वहाँ सभी जगह हमारे अपने यान और वाहन उचित और आवश्यक मात्रा में गतिशील होंगे। सभी का हर सुविधा उपलब्ध होगी। अभाव का कहीं नाम तक नहीं रहेगा।

महानगर, गाँव, कस्बे आदि सभी साफ-सुथरे और हर प्रकार के प्रदूषण से रहित हाग? आज की तरह ग्रामीणों को नगरों की तरफ नहीं भागना पड़ेगा। घर के आस-पास हा उन्हें ऐच्छिक रोजगार सलभ होने लगेंगे। चारों तरफ हरियाली छाई रहा करेगी। वन, वृक्षों का अन्धाधुन्ध कटाई रुक जाएगी। नदियाँ स्वच्छ जल से भर कर बहा करेगी। पर्वत नंगे नहीं बल्कि फल-फलों और वनस्पतियों आदि से भर कर हरे-भरे होंगे। समाज दहेज तथा इस प्रकार की अन्य सभी मानवता विरोधी करीतियों से साफ होगा। हिंसा, आपा-धापी. साम्प्रदायिकता, अराजकता आदि का कहीं नाम तक नहीं रह जाएगा। सभी लोग एक-दूसरे की मानसिकता, आवश्यकता और स्थिति का ध्यान रख कर प्रेम और भाईचार से निवास करने वाले होंगे। आज की कई तरह के गन्दे कटरों, झोपडपट्टियों का जाल बिछा हुआ दिखाई देता है, लोगों की गन्दगी और मैल-कुचैलापन है बेईमानी और बदनीयती, ऐसा कुछ भी नहीं रह जाएगा। इस प्रकार इक्कीसवीं सदी का भारत वास्तव में जीनेयोग्य, संसार के सामने एक प्रकार का आदर्श और उदाहरण होगा।

अब तनिक दूसरा चित्र भी देख लें। इक्कीसवीं सदी तक पहुँचते भारत की अदाय गति से बढ़ रही जनसंख्या दुगुनी नहीं तो डेढ गुनी अवश्य हो जाएगी। इस अनपान से रोटी, कपडा और आवास के साधन कतई बढ़ नहीं पाएँगे। औद्योगीकरण की बदली प्रवृत्ति के कारण आवास और खाद्य उपजाने के स्थान कहीं कम हो जाएँगे। जल के स्रोत भी आज की तरह ही निरन्तर घटते जाएँगे। ईंधन और ऊर्जा के सारे स्रोत घटते जाकर आधे रह जाएँगे। फलस्वरूप जन-जीवन हर स्तर पर कठिन एवं दूभर हो जाएगा। अभावग्रस्त होकर कीड़े-मकौड़ों की तरह रेंगते अस्वस्थ, अविकसित मनुष्य अपना अभाव भरने की चिन्ता में दूसरों को कच्चा चबा जाने से भी बाज नहीं आएँगे। जीवन एक कबूतरखाना या पशुशाला जैसा बन जाएगा। मनुष्यों का आपसी व्यवहार भी लगभग उन्हीं जैसा हो जाएगा। आवास की समस्या हल करने के प्रयास में मकान मुर्गियों के दडबे जैसे हो जाएँगे। कुरीतियों और भ्रष्टाचार का बोल-बाला होकर आम आदमी को कहीं का न रहने देगा।

ज्ञान-विज्ञान की प्रगति और औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण मानव मात्र एक यंत्र बन कर रह जाएगा। धरती छोटी पड़ जाएगी। वाहन कीड़ों-मकोड़ों की तरह भागते, एक-दूसरे को कुचलते-तोड़ते, आगे बढ़ते दिखाई देंगे। कल-कारखानों, उद्योग-धन्धों का विस्तार पाँव टिका देने जितनी धरती बाकी नहीं रहने देगा। वातावरण और वायुमण्डल इस सीमा तक प्रदूषित हो जाएगा कि सांस तक लेते हुए कठिनाई होगी। वर्षा, बाढ, सर्दी-गर्मी आदि सभी ऋतुएँ अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर जाएँगी। इससे भी मानव-जीवन संत्रस्त एवं पीड़ित होकर रह जाएगा। जीवन का सारा आनन्द जाता रहेगा।

इस प्रकार आज भारत में जिस प्रकार का विषम वातावरण और परिस्थितियाँ चारों ओर सक्रिय हैं, उन पर यदि किसी प्रकार नियंत्रण पाकर वातावरण को स्वस्थ, सुन्दर बनाया जा सका; तब तो इक्कीसवीं सदी में पहुँचते-पहुँचते ऊपर पहले चित्र में वर्णित स्थितियाँ उजागर हो सकती है; अन्यथा जो दूसरा चित्र प्रस्तुत किया गया है, स्थितियाँ उससे भी कहीं भयानक हो सकती हैं। अधिक सम्भावना इस दूसरे चित्र के बन कर उजागर होने की ही प्रतीत होती है। समझदारों और वैज्ञानिकों का मानना यही है।

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