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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Durbhiksh”, “दुर्भिक्ष” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

दुर्भिक्ष

Durbhiksh

प्रस्तावना : ऐसा कहा और माना जाता है कि घटनाएँ ही घट कर जीवन को कर्ममय एवं गतिशील बनाया करती हैं। विशेष प्रकार की घटनाएँ घट कर ही व्यापक स्तर, मानव के अन्तरंग स्वभाव, गुण-कर्म और क्षमताओं को भी उजागर कर जाया करती हैं; क्योंकि सामान्यतया हर क्षण कुछ-न-कुछ घटित होता ही रहता है। इस कारण आमतौर पर आदमी उसे भूल भी जाया करता है; किन्तु कई बार कुछ ऐसा भी घटित हो जाया करता है कि जिसे मनुष्य चाह कर भी भुला नहीं पाता। हमारे उत्तर प्रदेश में घटित दुर्भिक्ष एक ऐसी ही विभीषिका है, जो स्मृतियों में उभर कर अक्सर आज भी मुझे आतंकित कर जाया करती है ।

दुभिक्ष : स्वरूप : दु र्भिक्ष यानि अकाल ! जब कहीं अधिक वर्षा या एकदम सूखा पड़ने के कारण खेती-बाड़ी बह जाती या सूख जाया करती है, तब वहाँ रहने वाले सभी प्राणधारियों-यहाँ तक कि पेड़-पौधों और वनस्पतियों तक के लिए प्राण धारण कर सकने में सहायक तत्त्वों का अभाव हो जाया करता है। उस अभाव को दूर कर पाने के सारे प्रयत्न कम या व्यर्थ प्रमाणित हो जाया करते हैं, उस अभाव की स्थिति को अकाल या दुर्भिक्ष कहा जाता है। दूसरे शब्दों में मनुष्यों, पशुओं आदि के लिए अन्न, चारे और पानी का नितान्त अभाव दुर्भिक्ष या  अकाल कहा जाता है।

दुर्भिक्ष : कारण : दुर्भिक्ष के कारण क्या और कौन-से हो। सकते हैं, उनमें से कुछ का ऊपर सांकेतिक उल्लेख किया जा चुका है। जैसे अत्यधिक या आवश्यकता से अधिक वर्षा का इस सीमा तक होते रहना कि फसलें बह जाएँ या खेतों में पानी भर जाने से गल-सड कर बेकार हो जाएँ तब उत्पन्न अन्न-चारे का अभाव अकाल का कारण बन जाया करता है। इसी प्रकार कई बार वर्षा का नितान्त अभाव रहने के कारण भी कुछ पैदा नहीं होता । तब अभाव की स्थितियाँ उभर कर दुर्भिक्ष का कारण बन जाया करती हैं। इन प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ कुछ मानव की भूखी नीयत और तृष्णाएँ भी अकाल की स्थितियाँ ला दिया करती हैं। निहित स्वार्थी और मुनाफाखोर व्यापारी सहज मानवीय भावों और संवेदनाओं को ताक में रख कर अनाजों और आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की। जमाखोरी कर दिया करते हैं। तब आम और अभावग्रस्त आदमी काला बाज़ार में कुछ खरीद नहीं पाता । फलस्वरूप वह स्वयं, उसका परिवार, आश्रित पशु तक भूखों मरना शुरू हो जाया करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले बंगाल में जो भयानक दुर्भिक्ष पड़ा था, वह विदेशी शासन की नीतियों और स्वार्थी व्यापारियों की अमानवीय । ओछी मिलीभगत का ही परिणाम था, ऐसा सभी जानकार मानते हैं।

दुर्भिक्ष : भयानकता : कुछ वर्ष पहले हमारे उत्तर प्रदेश को भी एक भयावह अकाल के दौर से गुजरना पड़ा था। इधर सिंचाई के लिए नहरों और नलकूपों आदि का सर्वथा अभाव है। खेतों में ज्यों। थोड़ी बहुत पैदावा होती है, वह पूरी तरह प्रकृति की कृपा अर्थात् वर्षा पर आश्रित है। उस एक वर्ष ही नहीं, हमारे उत्तर प्रदेश में विगत लगातार कई वर्षों से वर्षा नाममात्र को भी नहीं हो रही थी, जबकि हमारे इलाके से पचीस-तीस मील इधर-उधर के इलाकों में हर वर्ष भरपुर वर्षा हो रही थी। सो वहाँ की सहायता से कुछ वर्ष किसी प्रकार लोगों का काम चलता रहा। वे ज्यों-त्यों कर के अपना तथा अपने पशुओं का निर्वाह करते रहे ; किन्तु इस बीच एक-एक कर पानी। के सभी जोहड़-ताब सूख कर पपड़ियाते गए।

यहाँ तक कि कुओं में भी पानी तल चाटता नजर आने लगा। उधर समाचार मिल रहे थे कि तीस-पैंतीस मीटर दूर के इलाकों में इतनी वर्षा हो रही है कि बाढ़ की-सी स्थिति उत्पन हो गई है। रास्ते टूट-फूट कर पानी से भर गए हैं। पानी भी इतना कि महीनों तक सूखने वाला नहीं । कितनी विषय स्थिति थी। एक तरफ सूखे के कारण अन्न, जल और चारे का नितान्त अभाव; दूसरी ओर इतनी वर्षा कि उसके प्रकोप को पार कर किसी प्रकार की सहायता आ पाना भी कतई संभव नहीं। उस पर इलाके के समर्थ लोगों ने या तो मात्र अपने घर-परिवार की चिन्ता से या फिर मुनाफा कमाने की वृत्ति जाग जाने के कारण सभी प्रकार की आवश्यक वस्तुएँ, खाद्य पदार्थ आदि दबा दिए।

फलस्वरूप कुछ ही दिनों में चारों ओर दुर्भिक्ष का नंगा नाच होने लगा। थोडा-थोड़ा वर के आम लोगों के पास जब अन्न-जल एकदम सूख गया, तब सर्भ त्राहि-त्राहि करने लगे। रोते-बिलखते बच्चे, बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते बूढे और विवश युवक सब को देख कर कलेजा मुँह को आने लगा। पालतू पशुओं की हालत यह कि उन्हें खुला छोड़ दिया गया। वे घास-पानी के भ्रम में सूखी मिट्टी और जमी काई तक चाटने को विवश हो धीरे-धीरे इधर-उधर गिर कर मरने लगे। जहाँ तहाँ मरे पड़े पशुओं के शवों पर गिद्ध, चील, गीदड और कुत्ते जैसे माँसाहारी जीव खुले में मण्डरा कर उनका माँस नोचने लगे। कहीं-कहीं तो अधमरे पशु तक को वो नोचे जा रहे थे। बड़ा ही वीभत्स दृश्य था। आदमियों की हालत भी पूरी तरह खस्ता और पतली होती जा रही थी।

पूरे परिवारों ने घर-बार खुले छोड़। इधर-उधर पलायन शुरू कर दिया था। भूख-प्यास से निढाल बच्चे-बूढे असमर्थ होकर राह में ही गिर पड़ने। विवश परिवार-जन अश्रु बोझिल नयनों से देख आगे बढ़ जाते। कई स्त्रियों को समर्थों के सामने अपनी इज्जत बेचते हुए भी देखा गया। अपने इलाकों से दूर पहुँच कई माताओं को अपने दुधमुँहे या नन्हें बच्चों को बेचते हुए भी देखा-सुना गया । इस प्रकार वस्तुत: दुमक्ष की अन्दरूनी कथा। इस बाह्य कथा से भी कहीं अधिक मार्मिक एवं उत्पीडक थी।

उपसंहार : दुर्भिक्ष की उस विषम स्थिति में मुझे भी अपना बहुत-कुछ, अपने कई प्रियजन भी गंवाने पड़े। इससे मन पर जो दाग लगा, इस जीवन में तो उसे भुला पाना कतई जंभव नहीं। हाँ, समये के साथ-साथ उसकी पीड़ा अवश्य ही कुछ थम गई है। मेरी यह हार्दिव कामना और भगवान् से प्रार्थना है कि वह इस प्रकार की स्थितियों इतनी भयावह विषमताएँ कभी किसी के भी जीवन में न लाए।

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