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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Doordarshan ki Upyogita”, “दूरदर्शन की उपयोगिता” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

दूरदर्शन की उपयोगिता

Doordarshan ki Upyogita

प्रस्तावना : दूरदर्शन यंत्र पूर्णतया  बीसवीं शताब्दी की देन है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी इस प्रकार के यंत्रों का उल्लेख मिलता है। महाभारत युग में भी संजय के पास दूरदर्शन सरीखा कोई यंत्र रहा होगा, जिस के माध्यम से वे महाराज धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध की सम्पूर्ण गाथा सुनाते रहे थेयदि इस बात को सत्य स्वीकार कर लिया जाए, तो यह भी सत्य है।  कि महाभारत के बाद दूरदर्शन जैसा कोई यंत्र हमारे देश में नहीं रहा था और यह पश्चिमी विज्ञान की ही देन है।

दूरदर्शन का परिचय : इसके आविष्कार का श्रेय प्रसिद्ध वैज्ञानिक जॉन बेयर्ड को जाता है। साधारणत: यह यंत्र रेडियो की भाँति होता है। इस यंत्र में चित्रपट के समान उसके साइज के अनुसार एक पर्दा लगा रहता है। उसके पास ही प्लग लगे रहते है।  जिनमें से एक प्रकाश किरणों से और दूसरा ध्वनि से सम्बंधित होता है। यह रंगीन, और सफेद-काला दो प्रकार का होता है। आजकल रंगीन दूरदर्शन का प्रचलन अधिक हो गया है। 

दूरदर्शन की प्रक्रिया : इसकी प्रक्रिया बहुत कुछ रेडियो से मिलती-जुलती है। रेडियो की भाँति इसके भी कार्यक्रम संचालन के विभिन्न केन्द्र होते है।  जहाँ से प्रसारित प्रोग्राम ही इस पर देखे व सुने जा सकते है। इन केन्द्रों पर किए जाने वाले कार्यक्रमों की विद्युत् लहरें दूरदर्शन यंत्र तक लाती है। , जहाँ पर वह प्रकाश की किरणों की मदद से देखा तथा वाणी किरणों के माध्यम से सुना जा सकता है। 

दूरदर्शन से लाभ : इससे अनेक लाभ है। आज के व्यस्त जीवन में इसकी महत्ता बहुत अधिक है। इसके माध्यम से घर बैठे ही दुर के कार्यों और बातों को भी आसानी से देखा-सुना जा सकता है। यह मनोविनोद का बढ़िया और सस्ता साधन है। इसके द्वारा पिक्चर, नाटक, हास्य-व्यंग्य, संगीत, कवि-सम्मेलन, महाभारत, रामायण, विश्वामित्र और श्री गणेश जी आदि अनेक प्रकार के ऐतिहासिक व सामाजिक सीरियल आदि देखकर मनोरंजन कर सकते है। सामाजिक रीति-रिवाज़ व सामयिक विषयों पर भी इसमें चर्चा होती है। इसमें विज्ञापनों को देकर व्यापारी वर्ग लाभ उठा सकता है। इसकी मदद से इतिहास, भूगोल, भाषा, समाजशास्त्र और विज्ञान आदि विषय छात्रों को पढ़ाये जाते है। इसके द्वारा शिक्षा प्राप्ति में विद्यार्थियों की दर्शनेन्द्रियाँ और श्रवणेन्द्रियाँ दोनों ही एक साथ काम करती है। फलतः एक ओर जहाँ शिक्षा कार्य सरल, प्रभावशाली और यथार्थपरक होता है।  वहीं मनोरंजक भी हो जाता है। इस प्रकार यह शिक्षा के अंग में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। 

दूरदर्शन में कमियाँ : इस में कमियाँ भी दृष्टिगत होती है। यह यंत्र महँगा होने के कारण जनसाधारण की पहुँच से बाहर है। दूसरे इसके द्वारा सैद्धान्तिक शिक्षा सरलता से नहीं दी जा सकती है।  क्योंकि इसमें शिक्षा का एक ही पक्ष सक्रिय रहता है।  और दूसरा पक्ष निष्क्रिय रह जाता है। इस निष्क्रिय पक्ष को शंका समाधान या एक बात को पुनः पूछने का अवसर नहीं मिल पाता है। इसके माध्यम से कोई भी विषय पूर्ण रूप से नहीं पढ़ाया जा सकता है। 

उपसंहार : ये कमियाँ थोड़े से प्रयास से दूर की जा सकती है। और फिर शिक्षा के क्षेत्र में भी यह उपयोगी सिद्ध हो सकता है। अमेरिका, रूस, जर्मनी, चीन, जापान और भारत आदि देशों में इसके प्रयोग सफलता के चरण को छू गए है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है  कि दूरदर्शन आधुनिक विज्ञान का बहुत ही उपयोगी यंत्र है। और दिन-प्रतिदिन यह विकास-पथ पर अग्रसर होकर जन-जन की सेवा में रत रहेगा।

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commentscomments

  1. Nandini says:

    Essay are short not long

    • Riddhi says:

      Not so girly !! .its is enough long. This much length of the easy is good for senior section students as well as junior section kids .

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