Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Deshatan”, “देशाटन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
देशाटन
Deshatan
देशाटन और पर्यटन- जैसा कि स्पष्ट है दोनों ही शब्द भ्रमण से संबंध रखते हैं। विभिन्न देशों और देश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण देशाटन और पर्यटन कहलाता है। मानव की जिज्ञासा, महत्त्वाकांक्षा, सौंदर्यप्रियता और ज्ञान की प्रवृत्तियाँ उसमें देशाटन और पर्यटन की रूचि जागृत करती हैं। अपने आसपास के भौगोलिक सौंदर्य और पर्यावरण को नित्य प्रति देखते और परखते हुए उसमें नए-नए स्थानांे के प्रति उत्सुकता स्वाभाविक है जो उसे देशाटन की ओर प्रवृत्त करती है।
शैक्षिक दृष्टि से भी देशाटन और पर्यटन का अपना महत्त्व है। केवल पुस्तक से हम सर्वांगीण और स्थायी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते, यही कारण है कि आज पाश्चात्य देशों में छात्रों को अधिक-से-अधिक स्थानों की सैर कराते हूए उन स्थानों के ऐतिहासिक गौरव और विशिष्टता का परिचय देने पर जोर दिया जाता हैं यह परिभ्रमण भूगोल और इतिहास के छात्रों के लिए विशेष उपयोगी होता है।
पर्यटन और देशाटन का उल्लेख हमारे प्राचीन धर्म-ग्रंथों में मिलता है। वेदों में तो चरैवेति, चरैवेति कहकर चलते रहने की शिक्षा दी गई है। महाभारत से ज्ञात होता है कि विभिन्न विषयों के ज्ञानार्जन हेतु अर्जुन ने गंधर्व-लोक तक छान डाला था। विश्वविख्यात भू-पर्यटक फाह्यान, ह्वेनसांग और इब्नबतूता इत्यादि का भी ज्ञान संचय के निमित्त देशाटन और पर्यटन करते हुए भारत में आगमन हुआ था। इन सबके मूल में प्राचीन काल में भी देशाटन और पर्यटन का महत्त्व दृष्टिगोचर होता है।
वस्तुतः देशाटन और पर्यटन की उपयोगिता हमें बाध्य करती है कि हम उसके महत्त्व को स्वीकार करंे। उपयोगिता का उल्लेख हम इस प्रकार कर सकते हैं-
ज्ञानार्जन की दृष्टि से देशाटन और पर्यटन बहुत उपयोगी है। विशेष रूप से इनके द्वारा भौगोलिक ज्ञान का स्थायित्व मिलता है।
ज्ञान-प्राप्ति के साथ-साथ पर्यटन द्वारा हमें सरस और रूचिपूर्ण मनोरंजन भी प्राप्त होता है। विभिन्न स्थानों, वनों, पहाड़ों, नदी-तालाबों और सागर की उत्ताल तरंगांे का अवलोकरन कर पर्यटक झूम उठते हैं। पर्यटन हमें नयनाभिराम दृश्यों का अवसर देता है। पर्यटन हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हितकर है। जलवायु-परिवर्तन से चित्त में सरसता और उत्साह का संचार होता है जिससे हम प्रसन्न मनःस्थिति में रहते हैं, जो हमारे उत्तम स्वास्थ्य की अनिवार्य शर्त है। ज्ञान वृद्धि के साथ पर्यटन अथवा देशाटन के दौरान हमें अनेक कष्टों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब हम उन्हें सुलझाने में सफल हो जाते हैं, तो हमें एक अद्भुत खुशी प्राप्त होती है। फलस्वरूप, हमारे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
पर्यटन और देशाटन ने हमारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को भी प्रभावित किया है। इससे विभिन्न राष्ट्रों में परस्पर निकटता बढ़ती है और व्यापारिक संबंध दृढ़ होते हैं। विकसित देशों के संपर्क ने विकासशील देशों की उन्नति को तीव्रगति प्रदान की है और अविकसित देशों के विकास में सहयोग देना आरंभ किया है। राष्ट्रों के पारस्परिक वैमनस्य और बैर को दूर करने में पर्यटन का योगदान महत्त्वपूर्ण हो सकता है। कुछ संस्थाओं ने इस कार्य में सहयोग देकर विश्वशांति के मार्ग को प्रशस्त किया है। अतः यह कहना गलत होगा कि देशाटन और पर्यटन के द्वारा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की भावना को बल मिलता है। देशाटन और पर्यटन के द्वारा हम न केवल विभिन्न स्थानों की सभ्यता, संस्कृति और रहन-सहन के तरीकां से अवगत होते हैं, बल्कि इन स्थानों के भ्रमण से हमें विभिन्न भाषाओं को सीखने का भी सुअवसर प्राप्त होता है।
इस प्रकार यह कहने में हमें कोई हिचक नहीं है कि ज्ञानार्जन की दृष्टि से, मनोरंजन की दृष्टि से, हमारे व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से या आत्मबल की दृढ़ता की दृष्टि से मानव जीवन में देशाटन और पर्यटन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज यातायात के साधनों को निरंतर विकसित किया जा रहा है। आवागमन की वर्तमान उन्नत अवस्था ने यात्रा को इतना सुविधाजनक बना दिया है कि हमें कोई भी स्थान बहुत दूर नहीं लगता। इन सुविधाओं के द्वारा आज देशाटन और पर्यटन के प्रति लोगों के रूचि दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। अपने व्यस्त जीवन से प्राप्त अवकाश के क्षणांे में हम देशाटन और पर्यटन के कार्यक्रम को सर्वाधिक महत्त्व देने लगे हैं। देशाटन और पर्यटन की उपयोगिता और रोचकता को ये पंक्तियाँ सफलतापूर्वक व्यक्त करती हैंः
सैर कर दुनिया की गाफिल ंिजंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी गर रही तो नौजवानी कहाँ।