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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Desh Bhakti”, “देश-भक्ति ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

देश-भक्ति 

Desh Bhakti

अथवा

स्वदेश प्रेम

Swadesh Prem

 

‘‘वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं’’

‘‘देशप्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल असीम त्याग से विलसित।

जिसकी दिव्य रश्मियाँ पाकर, मनुष्यता होती हैं विकसित।।’’

                देश-भक्ति पवित्रसलिला भागीरथी के समान है जिसमें स्नान करने से शरीर ही नहीं अपतिु मनुष्य का मन और अन्तरात्मा भी पवित्र हो जाती हैं स्वदेश की रक्षा और उसकी उन्नति के लिये अपना तन, मन, धन देश-चरणों में समर्पित कर देना ही देश-भक्ति है, देश-प्रेम हैं जन्मभूमि के प्रति निष्ठा रखना मनुष्य का नैसर्गिक गुण है। जिसकी धूलि में लेट-लेट कर हुए बडे़ हम, जिसने हमें रहनेे के लिये अपने अतुल अंक में आवास दिया, उसकी सेवा से विमुख होना कृतघ्नता है।

‘‘जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।

वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।’’

                वास्तव में माता और मातृभूमि के मोह से मनुष्य मृत्यु तक मुक्त नहीं होता। इन दोनों के इतने उपकार होते हैं कि मानव उनसे आजीवन उऋण नहीं हो पाता। मातृभूमि की मान-रक्षा के लिये अपने को बलिदान करने में जो परम आनन्द प्राप्त होता है, देशहित के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने में जो सुख और शांति मिलती है, उसका मूल्य कोई सच्चा देशभक्त ही जान सकता है। देश की उन्नति में ही देश-भक्त अपनी उन्नति समझता हैं देशसेवा और परोपकार ही उसका धर्म होता है। देशवासियों के सुख-दुःख में ही उसका सुख और दुःख निहित होता है। उसकी अन्तरात्मा स्वार्थरहित होती है।

                स्वदेश-प्रेम मानव-मात्र का एक स्वाभाविक गुण है। मनुष्य तो विचारवान और ज्ञानवान् प्राणी है। छोटे-छोटे अज्ञानपूर्ण पशु-पक्षी भी अपने जन्म-स्थान से अनंत स्नेह करते हैं। पक्षी दिन भर न जाने कहाँ-कहाँ उड़ते-फिरते हैं, परन्तु संध्या होते ही वे दूर-दूर दिशाओं से पंख फड़फड़ाते हुए अपने नीड़ों को लौट आते हैं। नगर से दूर निकल जाने वाली गाय शाम होते ही खूँटे को याद करके रम्भाने लगती है। खूँटे पर आकर ही उसे पूर्ण शांति और संतोष प्राप्त होता है। इसी प्रकार मनुष्य चाहे किसी कार्य विशेष से विदेश में रहता हो, परंतु उसके हृदय से जन्मभूमि की मधुर स्मृति कभी भी समाप्त नहीं होती। स्वदेश दर्शन की लालसा उसे सदैव बाध्य करती रहती है अपने घर लौट आने के लिये। वह जनमभूमि को संकटापन्न नहीं देख सकता। यही कारण था कि नेताजी सुभाष की ‘‘आजाद हिंद सेना’’ में वही भारतीय सैनिक थे, जो वर्मा, जापान आदि देशों में किसी कारण विशेष से जा बसे थे। उन्होंने परतन्त्र मातृ-भूमि को स्वतंत्र कराने की शपथ ली, यह देश-भक्ति का ही प्रताप था।

                देश के सर्वागींण उन्नति के लिये स्वदेश-प्रेम परम आवश्क हैं जिस देश के निवासी अपने देश के कल्याण में अपना कल्याण, अपने देश के अभ्युदय में अपना अभ्युदय, अपने देश के कष्टों में अपना कष्ट और अपने देश की समृद्धि मे ंअपनी सुख-समृद्धि समझते हैं वह देश उत्तरोत्तर उन्नतिशील होता है, अन्य देश के सामने गौरव से अपना मस्तक ऊँचा कर सकता है। देश की सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिये देशवासियों का देश-भक्त होना नितान्त आवश्यक है। जिन देशों के बालक, वृद्ध, स्त्रियाँ और युवक अपने राष्ट्र की बलिवेदी पर अपने स्वार्थों को चढ़कार उस पर तन, मन, धन न्योछावर कर देते हैं, वे देश संसार में महान् शक्तिशाली राष्ट्र समझे जाते हैं। जापान, जर्मनी, इंग्लैंड, रूस आदि के इतिहास में अनेक देश-भक्तों की कहानियाँ भरी पड़ी हैं। भारवर्ष में इस समय निःस्वार्थ देशभक्तों की बहुत कमी है, अपने-अपने स्वार्थ में सभी संलग्न हैं, देश के हित के लिये कोई थोड़ा सा भी त्याग सहन नहीं कर सकता। यही कारण है कि भारतवर्ष अब तक प्रशंसनीय उन्नति नहीं कर पाया है।

                आज भारतवर्ष स्वतंत्र है। देशभक्तों के लिये बहुत बड़ा कार्य-क्षेत्र पड़ा है। हमें किसान, मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधारनी चाहिये। अंगहीन, असहाय व्यक्तियांे के लिये भोजन, वस्त्र की व्यवस्था करनी चाहिये। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अनेक सुधार अभी बाकी हैं। पंचवर्षीय योजनाओं में हमंे पूर्ण सहयोग देना चाहिये जिससे सब प्रकार की भौतिक उन्नति कर सके। स्वदेश रक्षा के लिये हमें पूर्ण रूप से कटिबद्ध होना चाहिये, जिससे कोई भी शत्रु हमारे देश पर कुदृष्टि न डाल सके। देश के उत्थान के लिये ऐसे देशभक्तों की आवश्यकता है, जो अपना तन, मन, धन सब कुछ देश के चरणों पर चढ़ाने को उद्यत हों, स्वार्थी या अवसरवादी देशभक्तों की आवश्यकता नहीं। हमेें प्रान्तीयता की संकीर्ण विचारधारा से दूर रहना चाहिये। सबके सामने राष्ट्रीय एकता ही सर्वोपरि हो। हमें भारतवर्ष के उत्थान के लिये पूर्ण प्रयत्नशील होना चाहिये क्योंकि-

‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’

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