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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Deepawali Deepo ka Tyohar”, “दीपावली दीपों का त्यौहार” Complete Essay for Class 9, 10, 12 Students.

दीपावली दीपों का त्यौहार

Deepawali Deepo ka Tyohar

भारत त्यौहारों का देश है, यहाँ समय-समय पर विभिन्न जातियों समुदायों द्वारा अपने-अपने त्यौहार मनाये जाते हैं सभी त्यौहारों में दीपावली सर्वाधिक प्रिय है। दीपों का त्यौहार दीपावली, दीवाली जैसे अनेक नामों से पुकारा जाने वाला आनन्द और प्रकाश का त्यौहार है। यह त्यौहार भारतीय सभ्यता-संस्कृति का एक सर्वप्रमुख त्यौहार है। यह ऋतु परिवर्तन का सूचक है। इसके साथ अनेक धार्मिक मान्यताएँ भी जुड़ी हैं यह उत्साह, उल्लास, भाईचारे, साफ-सफाई तथा पूजा-अर्चना का त्यौहार है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।

दीपावली का त्यौहार मनाने की परंपरा कब और क्यों आरंभ हई कहते हैं- इस दिन अयोध्या के राजा रामचंद्र लंका के अत्याचारी राजा रावण का नाश कर और चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लोटे थे। उनकी विजय और आगमन की खुशी के प्रतीक रूप में अयोध्यावासियों ने नगर को घी के दीपों से प्रकाशित किया था। प्रसन्नता के सूचक पटाखे और आतिशबाजी का प्रदर्शन कर परस्पर मिठाईयां बांटी थी। उसी दिन का स्मरण करने तथा अज्ञान-अंधकार एवं अन्याय-अत्याचार के विरूद्ध हमेशा संघर्ष करते रहने की चेतना उजागर किए रहने के लिए ही उस दिन से प्रत्येक वर्ष भारतवासी इस दिन दीप जलाकर हार्दिक हर्षोउल्लास प्रकट करते और मिठाईया खिलाकर अपनी प्रसन्नता का आदान प्रदान करते हैं।

इस दिन जैन तीर्थकर भगवान महावीर ने जैतन्य की प्राण प्रतिष्ठा करते हए महानिर्वाण प्राप्त किया था। स्वामी दयानंद ने भी इस दिन निर्वाण प्राप्त किया था। सिख संप्रदाय के छठे गुरू हरगोविंदजी को बंदीग्रह से छोड़ा गया था इसलिए लोगों ने दीपमाला सजाई थी।

दीपावली आने तक ऋतु के प्रभाव से वर्षा ऋतु प्राय: समाप्त हो चुकी होती है। मौसम में गुलाबी ठंडक घुलने लगती है आकाश पर खंजन पक्षियों की पंक्तिबद्ध टोलिया उडकर उसकी नील नीरवता को चार चांद लगा दिया करती हैं। राजहंस मानसरोवर में लोट आते हैं नदियों-सरोवरों का जल इस समय तक स्वच्छ और निर्मल हो चुका होता है। प्रकृति में नया निखार और खुमार आने लगता है। इन सबसे प्रेरणा लेकर लोग-बाग भी अपने-अपने घर साफ बनाकर रंग-रोगन करवाने लगते हैं इस प्रकार प्रकृति और मानव समाज दोनों ही जैसे गंदगी के अंधकार को दूर भगा प्रकाश का पर्व दीपावली मनाने की तैयारी करने लगते हैं यह तैयारी दुकानों-बाजारों की सजावट और रौनक दिखाई देने लगती है।

दीपावली को धूम-धाम से मनाने के लिए हफ्तों पहले तैयारी आरंभ हो जाती है। पांच-छ: दिन पहले फल-मेवों और मिठाइयों की दुकाने सज-धज कर खरीददारों का आकर्षण बन जाती है। मिट्टी के खिलौने, दीपक अन्य प्रकार की मूर्तियाँ, चित्र बनाने वाले बाजारों में आ जाते हैं। पटाखे, आतिशबाजी के स्टालों पर खरीददारों की भीड़ लग जाती है। खील, बताशे, खिलौने मिठाईयां बनाई व खरीदी जाती हैं इन्हें बेचने के लिए बाजारों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है।

दीपावली की रात दीपकों और बिजली के छोटे-बडे बल्बों से घरों-दुकानों का वातावरण पूरी तरह से जगमगा उठता है। दीपावली के लिए नए-नए कपडे सिलाए जाते हैं, मिठाई, पकवान बनते हैं घर-घर में लक्ष्मी का पूजन शुभ कामनाओं का आदान-प्रदान और मुंह मीठा किया कराया जाता है। व्यापारी लक्ष्मी पूजन के साथ नए बही खाते आरम्भ करते हैं इस प्रकार दीपावली प्रसन्नता और प्रकाश का त्यौहार है।

जुआ खेलना, शराब पीना जैसी कुछ करीतियाँ भी स्वार्थी लोगों ने इस पवित्र त्यौहार के साथ जोड रखी हैं उनमें होने वाले दीवाले से सजग सावधान ही त्यौहार को आनंदपूर्ण बना सकते हैं।

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