Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Dahej – Samaj Ka Abhishap”, “दहेज – समाज का अभिशाप” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
दहेज – समाज का अभिशाप
Dahej – Samaj Ka Abhishap
आज हमारे समाज में अनेक कुप्रथाएँ व्याप्त हैं। वर्तमान में जिस कुप्रथा ने हमारे समाज को अत्यधिक कलंकित किया है वह है दहेज-प्रथा। दहेज शब्द का जन्म वैसे अरबी भाषा के जहेज शब्द से हुआ ऐसा माना जाता है। जिसका अर्थ है भेट या सौगात।
भेंट का शाब्दिक अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को कोई कार्य हो जाने पर अपनी ओर से स्वेच्छा से कुछ देना। लेकिन आज इस शब्द की परिभाषा ही बिल्कुल बदल चुकी है। अगर हम भेंट या सौगात शब्द का अर्थ दहेज के संदर्भ में लें तो इसका अर्थ कुछ और ही होता है, जैसे कि वरपक्ष की ओर से कन्यापक्ष से मुंहमांगा दाम पाना (इच्छा हो या न हो, देना ही पड़ेगा।)
अब अगर इस को वाक्य के रूप में पढ़े तो कुछ इस तरह होगा- विवाह के बाद स्वेच्छा (का होना आवश्यक नहीं) से विदाई के समय दी जाने वाली भेंट को ही दहेज कहा जाता है।
प्राचीनकाल में भेंट की प्रथा तो थी पर दहेज नाम के दानव ने इसी युग में जन्म लिया है। हमारे धार्मिक ग्रंथ इसके साक्षी हैं, जैसे कि पार्वती विवाह के बाद विदाई के समय उनके पिता हिमवान ने अनेक सामग्रियाँ भेंटस्वरूप स्वेच्छा से दीं।
वर्तमान समय में दहेज का रूप अत्यंत विकृत हो गया है। जो एक व्यापार के रूप में बदल चुका है। आज हालात यह हो चुके हैं कि जिस किसी पिता के पास अगर देने को दहेज नहीं तो वह अपनी पुत्री के विवाह का सपना भी नहीं देख सकता। दहेज पिता के लिए सबसे बड़ा दण्ड साबित हो रहा है।
आजकल ऐसा हो रहा है कि लड़के का पिता अपने लड़के के पालन-पोषण पर विवाह के समय तक जितना भी खर्च करता है वह वो सूद समेत अपने समधी यानि लड़की के पिता से वसूल करना चाहता है।
जिस तरह बाजार में सामान बिका करते थे, आज के युग में दुल्हे बिक रहे हैं। जिस दुल्हन के पिता अत्याधिक दहेज देते हैं विवाह उसी की लड़की के साथ हो जाता है।
इन सब को देखते हुए कुछ लाचार पिता समय के सात समझौता कर अनमेल विवाह कर देते हैं या फिर
हालात से हार आत्महत्या कर लेते हैं। शायद इसी लिए लड़की का पिता बनना कोई नहीं चाहता। इसी पर कालिदास ने कहा है – कन्या का पिता होना ही कष्टकारक है।
विवाह के समय विदाई के बाद दे देने से ही दहेज नामक दानव शांत नहीं हो जाता साल भर, उम्र भर किसी किसी जगह वह मुँह उठाए वह खड़ा होता है।
कहीं कहीं तो लोभी और अकर्मण्यवरपक्ष अपनी वधू को पीहर से धन लाने के लिए प्रताड़ित करते रहते हैं। जिससे कई वधू तो समझौता कर लेती हैं पर कुछ बेचारी आत्महत्या की शरण तक ले लेती हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकार इसके खिलाफ़ कोई कदम नहीं उठाती। पर वह भी क्या करे जब कोई खुलकर सामने ही नहीं आता। वैसे आइए हम देखें आखिर इस दहेज प्रथा का मूल कारण क्या है?
अध्ययन से पता चला है कि अशिक्षा ही दहेज प्रथा का मूल कारण है। इसके निदान हेतु हमें हर बच्चे-बच्चियों को पढ़ाना-लिखाना होगा। साथ ही टी.वी., रेडियो, इंटरनेट आदि के माध्यम से दहेज प्रथा के कुप्रभावों का प्रचार समाज में करना होगा। इससे संबंधित साहित्य को प्रचारित करना होगा, जैसे प्रेमचंद ने किस प्रकार से अपने उपन्यास निर्मला में दहेज प्रथा पर चोट की है।
सरकार ने भी पहल करते हुए इसके लिए कानून बनाए हैं, जैसे कि जो भी दहेज लेगा या देगा उसे न्यूनतम 5 वर्ष की कैद साथ ही 5000 रुपए का जुर्माना भरना होगा। मगर किसी के सामने न आने से यह सिर्फ कागजी रूप में ही रह गए।
अक्सर देखा जाता है कि कई प्रतिष्ठित लोग मंच से तो यह कहते हैं कि – दहेज लेना अपराध है। पर जब स्वयं के परिवार की बात आती है तो वह कहने लगते हैं – दहेज लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
इस सामाजिक कुप्रथा को दूर करने के लिए हमें स्वयं ही सामने आना पड़ेगा और दहेज लोभी लड़को का बहिष्कार करना होगा, जिससे उनकी विचारधारा बदले और वो दहेज को परहेज में बदल दें।