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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bus Ki Yatra” , ”बस की यात्रा” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

बस की यात्रा

रेल तथा बस यातायात का आम साधन हैं। छोटे रास्तों के लिए बस ही इस्तेमाल की जाती है। बस, रेलों के मुकाबले आसानी से मिल जाती हैं। ये थोड़े-थोड़े समय के अंतराल लती रहती हैं। ऐसे कई स्थान हैं जहां रेलें नहीं जातीं। इसमें कोई शक नहीं कि बस द्वारा सफर आरामदेह नहीं होता तथा थका देने वाला होता है, किन्तु यह कई बार सस्ता भी होता है।

एक बार मुझे अगली सुबह ही दिल्ली पहुंचना था। उस समय रेल उपलब्ध नहीं थी। इसलिए मैंने जालंधर से सुबह 9 बजे बस पकड़ी। बस पूरी तरह भरी हुई थी। मेरे पास बैठने के लिए सीट नहीं थी। भगवान की दया से मेरे पास केवल एक बैग था तथा कोई भारी सामान नहीं था। मैंने उसे ऊपर टांग दिया तथा खुद को संभाले रखने के लिए रॉड को पकड लिया। कंडक्टर ने मुझे आश्वासन दिलाया कि लुधियाना पहुंच कर मुझे सीट मिल जाएगी। फिर बस चल पड़ी।

सभी यात्री आराम से बैठे थे। वे घरेलू बातचीत कर रहे थे। तभी एक यात्री ने सिगरेट पीनी शुरू कर दी। खिड़कियां बंद होने के कारण बस के अंदर का वातावरण घुटन भरा हो गया। मुझसे यह सब सहन नहीं हो रहा था, किन्तु मेरे पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था। कुछ ओर लोग भी खड़े थे। बस पूरी तेजी से चल रही थी। यात्री झपकियां लेने लगे। मुझे अब थकावट महसूस होने लगी।

जब लुधियाना पहुंच कर बस रुकी तो कुछ यात्री वहां उतर गए। कंडक्टर ने मुझे सीट दिलवाई। मुझे चैन की सांस आई। मैंने अपनी सीट के पास वाली खिड़की खोली। ताज़ी हवा चलने लगी। मैंने ठंडी हवा में सांस लेकर आराम महसूस किया। कुछ देर में बस फिर से चल पड़ी। मुझे पता ही न चला मैं कब गहरी नींद में चला गया। अचानक जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि हम दिल्ली में दाखिल हो चुके हैं। इस प्रकार यह सफर आरामदायक रहा। मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं अपनी मंज़िल तक सही सलामत पहुंच गया।

 

बस द्वारा यात्रा

मेरे चाचाजी हिमाचल में रहते हैं। वे मण्डी जिले में बैंक में काम करते हैं। वे वहाँ बैंक द्वारा दी गई जगह में रहते हैं। उन्होंने मुझे अपने साथ कुछ छुट्टियाँ मनाने के लिए बुलाया था। इसलिए मैंने उनके पास गर्मियों की छुट्टियों में जाने का निर्णय किया।

सुबह जल्दी उठा, अपना थैला उठाया और अन्तर्राजीय बस अड्डे, कश्मीरी गेट पर सुबह पांच बजे पहुँच गया। मैंने डी.टी.सी. की बस पकड़ी। मैंने टिकट बस में ही खरीदी। सुबह 5.30 बजे वह बस टर्मिनल से बाहर निकलनी शुरू हो गई।

जैसे ही वह दिल्ली की सीमा से बाहर निकली वह तेज़ हो गई। जल्दी ही वह पानीपत में से गुज़री और करनाल पार कर गई। शाहबाद में वह 15-20 मिनट तक रुकी। यात्री नीचे उतर गए और जलपान किया। कुछ शौच के लिए गए।

दुबारा यात्रा शुरू की। मैंने बस से बाहर देखा। हम खेतों और घरों को पार कर रहे थे। अम्बाला में कुछ यात्री ऊपर चढ़े और कुछ उतर बस ने गए। फिर यह चण्डीगढ़ पहुँच गई। वहाँ 10 मिनट तक रुकी। हमारा खाना खाने का अगला स्टॉप कीरतपुर साहिब में था। वहाँ मैंने अपना खाना खाया। दूसरे यात्रियों ने भी ऐसा ही किया। आधे घण्टे के बाद इसने फिर से यात्रा शुरू कर दी।

हम स्वरघाट को पार करके गए। यह काफी ऊँचाई पर है। हम पहाड़ों में पहुँच गए थे। बस 10 मिनट के लिए रुक गई। कुछ पुलिस वाले बस पर चढ़ गए सामान इत्यादि देख कर उतर गए।

आगे हम बिलासपुर पहुँचे। शाम के 2.30 बज गए थे। चालक ने गाड़ी पन्द्रह मिनट के लिए रोकी। मैंने कुछ पकोड़े खाए और चाय पी। हमारी यात्रा फिर 2.45 पर शुरु हो गई। मैंने ठण्डी हवा को अनुभव किया। मैंने पेड़ देखे पहाड़ियों के ऊपर बने घर देखे, खेत जहाँ पर खेती उगाई गई थी देखे। बाहर का दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था। नीचे मैंने सौम्यता से पानी बहता देखा। हमारा अगला पड़ाव सुन्दर नगर में था। बस ऊपर शहर में गई और कुछ यात्री नीचे उतर गए। कुछ स्थानीय लोग बस में सवार हुए।

चालक ने बस एक बार फिर चलाई। हम कई गाँवों में से गुजरे। हमारी बस व्यास नदी के किनारे चल रही थी। शाम के ठीक 5.30 बजे हमारी बस मण्डी बस स्टैण्ड पहुँची। सभी यात्री एक-एक करके नीचे उतरे। मेरे चाचा जी मुझे लेने आए हुए थे। वह एक अच्छी यात्रा थी।

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