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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Bob Geldof” , ”बॉब गेल्डॉफ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

बॉब गेल्डॉफ

Bob Geldof

 

आयुरलैंड : मानवता-प्रेमी, समाज-सेवी

जन्म : 1954

 

बॉब भी 20वीं सदी के महान मानवता-प्रेमी, समाज-सेवी विश्व-रत्नों का उल्लेख होगा, तब बॉब गेल्डॉफ का नाम अवश्य लिया जाएगा, क्योंकि उन्होंने दम तोड़ती मानवता के सहायतार्थ जो प्रयत्न किया वह आज के युवकों के लिए प्रेरणादायक है।

बॉब का जन्म काफी विवादास्पद है। फिर भी 5 अक्टूबर, 1954 को उनकी जन्म-तिथि माना जाता है। आयुरलैंड में जन्मे बॉब के पिता कपड़े की फेरी लगाते थे और मां काफी पहले ही चल बसी थी। पढ़ाई-लिखाई में बॉब की ज्यादा रुचि नहीं थी। इसलिए 17 वर्ष की अवस्था में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। तब उन्हें कई छोटी-छोटी नौकरियां करनी पड़ी। वह कनाडा की एक पत्रिका में संगीत सम्पादक भी रहे। बाद में उन्होंने एक बैंड की स्थापना की, जिसका नाम ‘बूम-टाउन रेटस’ रखा। इसका पहला रेकॉर्ड ‘द बूम टाउन रैटस’ निकाला गया। उनका एक और रेकॉर्ड ‘डू दे नो इट्स क्रिसमस’ भी काफी चला। उनके प्रसिद्ध गीतों में रेट ट्रेप’, ‘आई डोंट लाइक मंडेज’ आदि बहुत लोकप्रिय हुए। अक्टूबर, 1984 में अपनी पत्नी पॉउला के साथ टी.वी. में वह इथियोपियाई-दुर्भिक्ष का हृदय विदारक दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए। अगले दिन उन्होंने अश्वेतों की सहायता करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने प्रख्यात रॉक गायकों की मदद से एक रेकॉर्ड निकाला तथा ‘बैंड एड’ नामक ट्रस्ट की स्थापना की। ‘बैंड एड’ द्वारा ही सन् 1985 में ‘लाइव एड’ प्रोग्राम लंदन और फिलाडेल्फिया में एक साथ आयोजित किया गया, जिसमें चोटी के गायकों ने हिस्सा लिया। इसे देखने वालों की संख्या करोड़ों में रही। इससे अर्जित 10 करोड़ डॉलर की रिकॉर्ड राशि से चिकित्सा व खाद्य सामग्री खरीदकर अफ्रीका के अकाल ग्रस्त लोग को भेजी गई।

‘लाइव एड’ के बाद बॉब गेल्डॉफ ने ‘स्पोर्ट एड’ का आयोजन किया, तो लगा कि जैसे सारी दुनिया अफ्रीका के अश्वेतों की सहायता के लिए दौड़ पड़ी हो। भारत में भी ‘स्पोर्ट एड’ का आयोजन मई, 1986 में हुआ था। उसमें भारत के प्रमुख खिलाड़ियों व कलाकारों सहित कई प्रसिद्ध व्यक्तियों ने भाग लिया। इससे पूर्व 13 जुलाई, 1985 में आयोजित ‘लाइव एड’ से भारतीय काफी प्रभावित हुए थे।

बॉब गेल्डॉफ आज अश्वेत एवं अकालग्रस्त अफ्रीकियों के लिए जिस निस्स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं, उस कारण वह एक ‘संत’ घोषित किए जा चुके हैं। उनकी सेवा-भावना निश्चय ही युवाओं में पीड़ितों के प्रति कुछ करने की ललक उत्पन्न करेगी।

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