Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Bharatiya Sanskriti”, “भारतीय संस्कृति” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भारतीय संस्कृति
Bharatiya Sanskriti
निबंध # 01
विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों की अगर हम बात करें तो भारत का पहला स्थान आता है। भारत संसार का एक प्राचीनतम विशाल देश है। इस भाँति इसको संस्कृति भी उदार, प्राचीन और गौरवशालिनी है। संस्कृति का संबंध मानवों की आत्मा और मन से होता है किन्तु सभ्यता का संबंध उसकी बाहरी वेश-भूषा, खानपान और उठने-बैठने से होता है।
भारत संसार का महान् देश है। यहाँ की सिर्फ संस्कृति ही विश्व पर अपनी छाप नहीं छोड़ती बल्कि यहाँ के ऋषि-मुनि जो वनों, नदी-तटों और रमणीय पर्वतों की कन्दराओं में बैठे ज्ञान की खोज करते रहते हैं उन्हीं की इस खोज ने भारतीय संस्कृति का मार्ग प्रकाशित किया है। आज भी भारतीय संस्कृति का मूल आदर्श आत्मा का ज्ञान ही है। इसमें संसार के भौतिक तत्त्वों के प्रति कोई मोह नहीं है।
पहले संत-महापुरुषों के सत्संग केवल भारत में ही हुआ करते थे पर भारतीय संस्कृति का चस्का विदेशियों को ऐसा लगा कि वह विशेष तौर से हमारे संतोंमहात्माओं को अपने देश में बुलवा कर सत्संग करवाने लगे हैं।
समय-समय पर देश में होने वाले धार्मिक आंदोलनों ने ही संस्कृति को और उदार बनाया है। बौद्ध, जैन, शैव, शाक्त तथा वैष्णव मत-प्रचारकों ने ही भारतीय संस्कृति में अनेक तत्त्व जोड़े हैं जिनमें मुख्यतः सहनशीलता, अहिंसा, परोपकार आदि गुणों का नाम भी उल्लेखनीय है।
भारतीय संस्कृति की विशेषता जो हमें कहीं और किसी देश में देखने को नहीं मिलती है कि यहाँ भारत देश में सब धर्मों एवं सम्प्रदायों की शिक्षा को एक साथ लेकर चलना और सामूहिक रूप से देश को एक मानना। तभी तो भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में रामायण, पुराण आदि ग्रंथ पूजे जाते हैं।
संस्कृति के तत्त्व के संबंध में अगर कहा जाए तो हम पाएंगे कि भारतीय संस्कृति चार तत्त्व में विद्यमान है, वह है- चरित्र, विज्ञान, साहित्य और धर्म।
भारतीय संस्कृति में प्रेय और श्रेय के दोनों रूप स्वीकृत हैं। प्रेय से तात्पर्य है लोक में कर्म करते हुए अभ्युदय को प्राप्त करना और श्रेय से तात्पर्य है आत्मिक उन्नति को प्राप्त करना।
भारतीय संस्कृति, साहित्य के माध्यम से विदेशों में भी प्रचारित हो चुकी है। यही कारण है कि आज विदेशी विश्वविद्यालयों में भी भारतीय दर्शन पर पठन-पाठन हो रहा है।
भारतीय संस्कृति की कई विशेषताएँ हैं। पहली विशेषता तो यही है कि यहाँ सभी समान भाव से आचरण करते हैं साथ ही सभी की विचारधाराओं का सम्मान किया जाता है। दूसरी विशेषता उदारता से संबंधित है। भारतीय जीवन की शक्ति ही उदारता है। सबके प्रति खुले मन से व्यवहार करना यहाँ के जनजीवन का मूलभूत गुण है। साहिष्णुता के गुण से भारतीय संस्कृति का महत्त्व लोक-प्रसिद्धि पा चुका है। तीसरी विशेषता है यहाँ कि शान्ति की जो आज विश्व में कहीं पर भी नहीं है, यही कारण है कि उसी शान्ति की खोज में कई विदेशी लोग भारत आते हैं।
आज विश्व के सभी देश दूसरे देशों में सांस्कृतिक संगठनों की स्थापना करने में लगे हैं। हमारी भारत सरकार ने भी कदम बढ़ाते हुए विदेशों में अपने सांस्कृतिक प्रतिनिधि नियुक्त किए हैं, जो समय-समय पर विदेशों में भारतीय संस्कृति पर व्याख्या करते हैं। इस पद्धति से अन्य देशों के साथ हमारे सांस्कृतिक संबंध मधुर होते जा रहे हैं।
एक बात तो हम दावे से कह सकते हैं कि संसार का कोई भी देश संस्कृति के | बिना जीवित रह ही नहीं सकता, अगर हम संस्कृति को देश की आत्मा कहें तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा।
निबंध # 02
भारतीय संस्कृति
Bharatiya Sanskriti
संकेत बिंदु
संस्कृति क्या है? –भारतीय संस्कृति की विशिष्टता –अनेकता में एकता, विविध पर्व, लोकनृत्य, लोकसंगीत
संस्कृति सामाजिक संस्कारों का दूसरा नाम है जिसे कोई समाज विरासत के रूप में प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में संस्कृति एक विशिष्ट जीवन-शैली है, जो एक ऐसी सामाजिक विरासत है जिसके पीछे एक लंबी परंपरा होती है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तया महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों में से एक है। भारतीय संस्कृति के मूल रूप का परिचय हमें वेदों में मिलता है। भारतीय संस्कृति ने अपने विकास की प्रक्रिया में उन सभी अच्छे गुणों को अपना लिया जो समाजोपयोगी थे। विविध संस्कृतियों को पचाकर उन्हें एक सामासिक रूप में देना ही भारतीय संस्कृति के कालजयी होने का कारण है। ‘अनेकता में एकता’ भारतीय संस्कृति की विशिष्टता रही है। गुरुवर रविन्दरनाथ ठाकुर ने भारत को ‘महामानवता का सागर’ कहा है। भारत में अनेक जातियाँ, धर्म, भाषा, साहित्य, कला-कौशल विद्यमान है। भारतीय संस्कृति में इन सभी का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। भारतीय संस्कृति में सत्य और अहिंसा को आधारभूत सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया गया है। यह अनेकरूपता भारतीय संस्कृति की जीवंतता, संपन्नता तथा समृद्धि की द्योतक है। हमारे विविध पर्वों एवं त्योहारों तथा लोकनृत्य एवं लोकसंगीत ने भारतीय संस्कृति को जीवंत रूप प्रदान किया है तभी तो हमारी संस्कृति निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। उसके पीछे हमारे ऋषि-मुनियों और मनीषियों का चिंतन है।