Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bharat South Africa Sambandh”, ”भारत-दक्षिण अफ्रीका सम्बन्ध” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
भारत-दक्षिण अफ्रीका सम्बन्ध
Bharat South Africa Sambandh
राष्ट्रों में परस्पर हितों का ध्यान तो रखना ही पड़ता है, राष्ट्र-हितों का ध्यान उस से भी पहले रखा जाता है। वस्तु सत्य तो यह है कि दो राष्ट्रों में प्रगाढ सम्बन्धों का ने राष्ट्र का हित ही हुआ करता है, पारस्परिक हितों की बात उसके आ पाती है। अफ्रीका युगों तक गोरी संस्कृति के अधीन रहा है। वहाँ के मूल निवासी इसी कारण घृणा के पात्र बनकर अनवरत दुःख कष्ट और परतंत्रता का जीवन भोगते रहे कि उन का रंग काला और नस्ल एंग्लो-अमेरिकन गोरे व्यापारियों से भिन्न है। नस्लवाद के कारण अपने मूल स्वभाव और बुनियादी तौर पर ही नस्लवाद के विरुद्ध रहा है, सो वहां के पीड़ित-शोषित वर्ग हमेशा से भारत के स्नेह-सहानुभूति के अधिकारी रहे हैं। भारत-अफरीकी-सम्बन्धों का मूलाधार इस स्नेह-सहानुभूति को ही कहा एवं माना जा सकता है।
अफ्रीका, विशेषतः दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत का सम्बन्ध स्वर्गीय महात्मा गान्धी और उनके कार्यों के माध्यम से ही स्थापित हो सका। एक भारतीय व्यापारी का मुकद्दमा लड़ने के लिए नवयुवक वकील गान्धी को दक्षिण अफ्रीका जाने का पहला अवसर मिल पाया था। वहाँ काले-गोरे यानि नस्लवाद का भेद तो चरम सीमा पर था ही भारतीयों का भी बड़ी कठिन एवं अपमानजनक स्थितियों में निवास करना पड़ रहा था। स्वयं गान्धी जा का कई बार कई तरह से अपमानित किया गया। मानसिक के साथ शारीरिक चोट पान के प्रयास भी हुए। अहं को ठेस पहुँचने पर गान्धी जी की अस्मिता जाग उठी। वहाँ ‘नेशनल इण्डियन काँग्रेस’ की स्थापना कर गान्धी जी ने सत्याग्रह की नींव भी डाली। सत्याग्रह में पहली जीत भी वहीं प्राप्त की। फलतः युगों से नस्ल और रंग-भेद के कारण कष्ट भोग रहे मूल अफ्रीका-निवासियों को भी अस्तित्व बोध हुआ, उन का अहं जागा। अधिकार पाने की चेतना जागी। उन्होंने भी स्वत्वाधिकार पाने के लिए भारत की तरह ही अहिंसक आन्दोलन एवं सत्याग्रह का रास्ता अपनाया। भारत उस की नैतिक और आर्थिक सहायता ही कर सकता था, वही करता रहा। इस प्रकार वहाँ के स्वतंत्रता संघर्ष ने वहाँ के नेतृत्त्व को नैतिक एवं आन्तरिक स्तर पर भारत के साथ जोड़ दिया।
भारत से ही प्रेरणा पाकर दक्षिण अफ्रीका को नेलसन मण्डेला जैसा दृढ संकल्प, सच्चरित्र और संघर्षशील नेता प्राप्त हो सका, जिसे ‘दक्षिण अफ्रीका का गान्धी’ ही कहा और समझा जाता है। उसके नेतृत्व में सारा दक्षिण अफ्रीका, उसके आस-पास के अन्य छोटे-बडे देश अस्तित्व बोध पाकर, स्वतंत्र अस्तित्व बनाने और उसकी रक्षा करने की दिशा में अहिंसक पर सुदृढ आन्दोलन करने लगे। आन्दोलन का प्रभाव इतना व्यापक और गहरा था कि गोरी सरकार की चूलें हिलती नजर आई। फलस्वरूप नेलसन मण्डेला को बन्दी बना कर आजीवन जेल में बन्द कर दिया गया। पीछे उन की पत्नी बिन्नी मण्डेला तथा अन्य नेता आन्दोलन चलाते रहे। जैसे भारत के आन्दोलनकारियों ने अन्ततोगत्वा ब्रिटिश सरकार को यहाँ से बिस्तर गोल कर जाने को विवश कर दिया था, वैसे ही लगातार बीस वर्षों तक जेल में बन्द नेलसन मण्डेला की आत्म-प्रेरणा के संघर्ष के बाद वहाँ की गोरी सरकार भी वहाँ के मूल निवासियों को सत्ता हस्तान्तरित कर देने के लिए तैयार हो गई। नेलसन मण्डेला जेल से रिहा हुए। चुनाव में भारी बहुमत से विजय पाकर आज वे सत्तारूद हैं।
भारत दक्षिण अफ्रीका के भावात्मक सम्बन्ध अब राजनयिक सम्बन्धों में भी बदल चुके हैं। उनमें कितनी गहराई है, मात्र दो बातों से इसका सहज अनुमान किया जा सकता है। एक तो यह कि नेलसन मण्डेला के सत्ता में आते ही सब से पहले भारत ने ही उन की सरकार को मान्यता प्रदान की। बदले में सब से पहली विदेश यात्रा भी नेलसन मण्डेला । ने भारत की ही की। यहाँ उनका भव्य हार्दिक स्वागत किया गया। दूसरे बीस वर्षों से बायकाट भोग रही दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम को यद्यपि पाकिस्तान आदि अन्य देशों से भी पहला मैच खेलने के आमंत्रण मिले; पर वहाँ की टीम, क्रिकेट बोर्ड और सरकार ने भावनात्मक स्तर पर अपने से जुड़े भारत में ही पहला मैच खेलने का निश्चय प्रकट किया। यहाँ आकर मैच खेला और जीता भी। सो दोनों देशों में सहज सुखद सम्बन्धों की बात निस्संकोच कही जा सकती है।
दक्षिण अफ्रीका के अपनत्व और स्वतंत्रता के युग का अभी आरम्भ ही हुआ है। भारत के साथ भावनात्मक सम्बन्ध तो पुराने हैं; पर आज के निहित स्वार्थों वाले युग में उतना ही काफी नहीं हुआ करता। अभी दोनों देशों में राजनयिक सम्बन्धों का नया युग आरम्भ हुआ है। देखना है कि दोनों देश उन्हें कैसे आगे बढ़ाते हैं। कहाँ दोनों के राष्ट्र-हित टकराते और कहाँ मिलते हैं, अभी सभी कुछ ठहर कर देखना होगा। प्रतीक्षा करनी होगी।। आशा यही करनी चाहिए कि जैसे अतीत काल से दोनों देशों के भावनात्मक सम्बन्ध परवान चढते आए हैं, वैसे ही राजनयिक सम्बन्ध भी परवान चढ़ कर किन्हीं नव-क्षितिजो का उदघाटन कर सकेंगे। जहाँ अच्छाई की चाह हो, राह बन ही जाया करती है।