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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Berojgari ki Samasya”, “बेरोजगारी की समस्या” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

बेरोजगारी की समस्या

Berojgari ki Samasya

                आधुनिक युग में विज्ञान की प्रगति ने मानव-जीवन को प्रत्येक क्षेत्र में सुखद, समृद्ध तथा समुन्नत बनाया है। नित नयी वैज्ञानिक खोजों तथा आविष्कारों ने महान उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। परन्तु उस विज्ञान ने कुछ ऐसी समस्याएँ भी उत्पन्न कर दी हैं जो समस्त विश्व के सामने सुरसा के मुँह की भाँति बढ़ती जा रही है। इन समस्याओं में प्रमुख हैं- महँगाई, बढ़ती जनसंख्या तथा बेरोजगारी। बेरोजगारी की समस्या इन सबमें प्रमुख है और दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, जिसका हल भी दिखाई नही्र देता। बेरोजगारी से अभिप्राय बेकारी की समस्या से है। यदि बेकार शब्द के अर्थ पर दृष्टिपात करें तो बेकार का अर्थ है ‘उपयोग के अयोग्य’, परन्तु व्यक्ति के संदर्भ में किसी व्यक्ति की क्षमता तथा योग्यता का समाज उपयोग नहीं कर पाता। एक व्यक्ति को उसकी रूचि, योग्यता-क्षमता के अनुसार कार्य नहीं मिल पाता तो वह व्यक्ति बेकार की श्रेणी में आ जाएगा। हमारे देश मंे बेकारी की समस्या भयंकर रूप से व्याप्त है। हम बेकार व्यक्ति को निम्न श्रेणी में वर्गीकृत कर सकते हैं-

  1. शिक्षित तथा प्रशिक्षित बेरोजगार
  2. अशिक्षित तथा अप्रशिक्षित बेरोजगार
  3. अर्धबेरोजगार, जो कभी काम पर लग जाते हैं तथा कभी बेकार हो जाते हैं।
  4. वे व्यक्ति जो अपनी योग्यता, क्षमता एवं रूचि के अनुकूल कार्य प्राप्त नहीं कर पाते तथा विवशतावश अरूचिपूर्ण कार्य में संलग्न हैं तथा असंतुष्ट हैं।

                यदि बेरोजगारी की समस्या के कारणों पर विचार करें तो सर्वप्रथम इस समस्या के लिए परतंत्र भारत में अंग्रेजी सरकार जिम्मेदार थी। अंग्रेजी शिक्षा नीति ने देश के नवयुवकों में परिश्रम के प्रति घृणा का बीजारोपण करके सफेदपोशी का प्रचार कर दिया। हाथ से काम करना हेय तथा त्याज्य हो गया। लोग नौकरी के दीवाने हो गए। आज भी वही शिक्षा-प्रणाली प्रचलित है। पं. जवाहर लाल नेहरू के शब्द हमारी शिक्षा व्यवस्था की त्रुटियों को इंगित करते हैं। बहुत पहले उन्होंने कहा था- ‘‘प्रतिवर्ष नौ लाख पढ़े-लिखे लोग नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं जबकि हमारे पास नौकरियाँ शतांश के लिए भी नहीं हैं। हमें बी.ए. नहीं चाहिए, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विशेषज्ञ चहिए।’’

   अंधाधुंध औद्योगीकरण भी बेरोजगारी की समसया की वृद्धि मंे आग में घी का काम कर रहा है। अंग्रेजों ने धनार्जन तथा अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए हमारे देश की दस्तकारियों को बंद कराया था। कारीगरों और कुशल कारीगरों के हाथ तक कटवा दिए थे, ताकि उनकी मशीनों की बनी वस्तु की खपत तथा प्रचलन बढ़े। इससे हमारी आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई तथा हम परमुखापेक्षी बनकर रह गए। स्वतंत्रता के पश्चात् यद्यपि सरकार ने उद्योगों के प्रचार-प्रसार का ढिंढोरा तो खूब पीटा परन्तु बड़े-बड़े उद्योगों के सामने वह टिक नहीं पाते। वर्तमान काल में अति आधुनिक स्वचालित मशीनों तथा कंप्यूटर ने तो बेकारी की वृद्धि में पहिए लगा दिए हैं तथा हमारी सरकार देश की समस्याओं को न समझकर पश्चिमी देशों की अंधाधुंध नकल कर रही है, क्योेंकि पश्चिमी देशों में जनसंख्या कम है अतः उनके लिए मशीनें उपयुक्त हैं परन्तु अपने देश में मानव शक्ति प्रचुर मात्रा में है अतः हमंे स्वचालित मशीनों तथा कम्प्यूटर का प्रयोग समित तथा सोच-समझकर ही करना चाहिए।

                जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि बेरोजगारी की समस्या को दिन दूनी, रात चैगुनी की गति से बढ़ा रही है। जनसंख्या जिस तीव्र वृद्धि से बढ़ रही है उस अनुपात में न तो उत्पादन हो रहा है न उद्योग-धंधों का विकास। सन् 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी जो 2001 में बढ़कर एक सौ तीन करोड़ पहुँच गई है। यह जनसंख्या वृद्धि बेरोजगारी की समस्या के समाधान में भयंकर विघ्न उत्पन्न कर रही हे। यद्यपि सरकार जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण का भरसक प्रयत्न कर रही है परंतु हमारे देश की अधिकतम जनता अशिक्षित तथा धार्मिक रूढ़िवादिता से ग्रस्त है। संतानोत्पत्ति को ईश्वरीय देन समझा जाता है। दुर्भाग्य से हमारे नेता ‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ की कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। वे भाषण देकर जनसंख्या वृद्धि में रोकथाम करने की सलाह तो जनता को देते हैं परंतु स्वयं आदर्श बनकर उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते। अतः समस्त सरकारी प्रचार केवल कागजी कार्यवाही बनकर रह जाता है।

                शिक्षित तथा प्रशिक्षित बेकारी का मुख्य कारण विभिन्न सरकारी विभागों मंे तालमेल का आभाव है। कहने को सरकारी योजना आयोग है किंतु आगामी वर्षों में किस व्यवसाय में कितने प्रतिशत व्यक्तियों की आवश्यकता होगी ? कितने मेडिकल काॅलेज, कितने इंजीनियरिंग काॅलेज अथवा कितने अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाएँ खोली जाएँ ? शायद योजना आयोग इसे अपनी खोज का विषय नहीं मानता। फलस्वरूप कभी डाॅक्टर बेकार घूमने लगते हैं तो कभी इंजीनियर और कभी किसी भी श्रेणी के प्रशिक्षित व्यक्ति का अकाल पड़ जाता है।

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