Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Aatankwad ka Aatank ”, “आतंकवाद का आतंक” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
आतंकवाद का आतंक
Aatankwad ka Aatank
प्रस्तावना : मानव को अपने सहजात या स्वाभाविक गुण-कर्म एवं प्रकृति से शान्त, अहिंसक एवं सहकारिता और प्रेम-भाईचारा जैसी भावनाओं से आप्लावित होकर रहने-जीने वाला प्राणी माना गया है। फिर भी कई बार कई प्रकार की विषम या विरोधी प्रवृत्तियाँ उसके भीतर दुबके बैठे हिंसक प्राणी को उसी प्रकार उकसाती रहा करती हैं, जैसे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार कि बार-बार नाखून काटते रहने पर भी वे पुन: पुन: उगते रहते हैं। वास्तव में कटे नाखूनों का फिर से उग आना यानि कि सहज मानव के भीतर सोए पड़े पशु का कारणवश जाग उठना या जगाया जाना ही हिंसा का कारण बना करता है। उग्रवाद या आतंकवाद उस जाग्रत हिंसक मनोवृत्तियों का सर्वाधिक भयावह, नाशकारी और मानवता विरोधी स्वरूप है। इसी कारण इसे अधिक आतंकित किए रहने वाला भीषणतम तत्त्व माना गया है ।
आतंकवाद : अभिप्राय : कुछ विवेकहीन सिरफिरों की जाग्रत जघन्यतम हिंसक वृत्तियों, उनके क्रियात्मक हिंसक एवं प्राणहारक रूपों को सामान्यतया आतंकवाद कहा और माना जाता है। इस प्रकार के आतंक से आज भारतवर्ष के कुछ भाग ही नहीं, बल्कि अधिकांश विश्व के देश कम या अधिक, किसी-न-किसी रूप में आतंकित तो हैं ही, प्रपीडित भी हैं। सामान्यतया ऐसा माना जाता है कि मनुष्य एक समझदार प्राणी है। किसी प्रकार की आपसी समस्या उत्पन्न होने पर वह आपसी बातचीत करके सुलझा लिया करता या फिर सुलझा सकता है; किन्तु कुछ अकारण द्रोही, विवेक शुन्य एवं हिंसक मनोवृत्तियों वाले ऐसे लोग भी हुआ करते हैं जो मानव की, स्वयं अपनी विवेकशील वैचारिकता पर विश्वास नहीं रखा करते। ऐसे लोग हर प्रश्न और समस्या का समाधान एकमात्र शस्त्रास्त्र या हिंसक उपायों को ही माना करते हैं। आतंकवाद से अभिप्राय ऐसे ही हिंसक वृत्तियों वालों के क्रियाकलापों से है। सो इस प्रकार की हिंसक वृत्तियों, क्रिया-प्रतिक्रियाओं का आश्रय लेकर अपनी बात मनवाने की चेष्टा करने वालों को ही आतंकवादी कहा जाता है।
उत्पत्ति के कारण : आतंकवाद की उत्पत्ति का मूल कारण मुख्य रूप से किसी तरह के असन्तोष को ही माना जाता है। वह असन्तोष महज प्रतिक्रियावादी, किसी प्रकार के बदले की भावना से उत्पन्न या फिर लोभ-लालच एवं उकसावे का परिणाम भी हो सकता है। जहाँ तक भारत के विभिन्न भागों में जारी आतंकवादी गतिविधियों की उत्पत्ति का कारण है, एक सीमा तक स्थानीय कारणों या फिर केन्द्रीय सरकार की उपेक्षा के कारण भी उसमें विद्यमान हैं; पर अधिकतर उसे प्रतिक्रियावादी उकसावे, बदले की भावना से लालच देकर प्रायोजित आतंकवाद ही कहा जा सकता है। नक्सली आतंकवाद सामन्ती मनोवृत्तियों से उत्पन्न असन्तोषजन्य तो था ही, माओवाद से भी प्रेरित एवं एक सीमा तक प्रभावित था। काश्मीर का आतंकवादविशुद्ध रूप से विदेशी उकसावे, लालच देकर, सुनहले भविष्य के सपने दिखा और अलगाववादी प्रवृत्तियाँ उकसा कर निर्यात किया हुआ आतंकवाद है। उत्तर पूर्वी सीमांचल के राज्यों में जारी इस प्रकार की गतिविधियों में भी कुछ स्थानीय कारणों से उत्पन्न असन्तोष और कुछ। निहित स्वार्थी विदेशी उकसावा देने का काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं। भारत में अधिकांश आतंकवादी गतिविधियों का कारण भारत की सहायता से पाकिस्तान के एक भाग का अलग होकर बंगलादेश बनना है। सो अब पाकिस्तान इस आतंकवाद के माध्यम से भारत को तोड़ कर बदला चुकाना चाहता है।
सक्रिय रूप और प्रभाव : आतंकवाद जब अपनी समग्र हिंसा और क्रूरता के साथ सक्रिय हो उठा करता है, जैसा कभी पंजाब में था और आजकल विशेष रूप से जम्मू-काश्मीर घाटी में है, तब उसका प्रभाव आमतौर पर बेकसूर निरीह आम नागरिकों को ही भोगना पड़ता है। उनकी प्रत्येक साँस तक आतंक की घोर विषम छाया में आती-जाती है। उनका चैन से जी सकना तक दूभर हो जाता है। काम-धन्धे प्राय: चौपट हो जाते हैं। बेघर हो जाने की स्थितियों से भी दो-चार होना पड़ता है। पंजाब और काश्मीर से शरणार्थी बनकर आए-वह भी अपने देश से अपने ही देश में, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। यदि अपने घरों में रह कर लोग जीते भी हैं, तो हर प्रकार से अभाव अभियोग भरा जीवन जीते और किसी भी पल प्राण या मान-सम्मान लुट जाने का खटका लिए हुए।
आतंकवाद और आतंकवादी की अपनी कोई जाति, कोई धर्म-कर्म नहीं हुआ करता ; इस कारण वह उनके जातिधर्म की परवाह भी नहीं करता जिन पर उसका कहर बरपा करता है। इस प्रकार आतंकवादी को स्वयं तो सुरक्षा बलों के भय से आतंक की छाया में नारकीय जीवन जीना ही पड़ता है, उसके आस-पास रहने वाले भी हमेशा आतंकपूर्ण मानसिकता। में जिये जाने को बाध्य रहा करते हैं। ये जालिम आतंकवादी स्त्री, बच्चों और बूढ़ों किसी पर भी दया नहीं करते। स्त्रियों के सतीत्व के साथ खिलवाड़ करना इन हिंसक पशुओं का आम व्यवहार बन जाया। करता है। ये वैयक्तिक और सामूहिक सभी तरह की हत्याओं के व्यापारी बने घूमा करते हैं। शस्त्रास्त्र की प्राप्ति के लिए जन धन की। लूट-पाट एवं जोर-जबरदस्ती भी किया करते हैं। इस प्रकार आज घिनौनी सीमा तक हिंसक आतंकवाद का सक्रिय स्वरूप और प्रभाव बड़ा ही उग्र एवं लोमहर्षक कहा जा सकता है।
उपसंहार : आतंकवाद के स्वरूप, कारण, सक्रियता और प्रभाव आद का नियंत्रण करने के बाद इसे समाप्त करने के दो ही उपाय कह जा सकते हैं। यदि वह स्थानीय कारणों या केन्द्र सरकार के प्रति असन्तोष की उपज है, तब तो उसे उन कारणों को ढूंढ कर उन्हें दूर कर उसे सहज ही समाप्त किया जा सकता है। यदि वह दुर्भावनाओं से प्रेरित होकर आरोपित किया गया आतंकवाद है, तब तो अपनी समग्र शक्ति के साथ उसका सिर बेरहमी से कुचल कर ही उसे समाप्त किया जा सकता है।