Hindi Essay-Paragraph on “Vriksharopan” “वृक्षारोपण” 700 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.
वृक्षारोपण
Vriksharopan
वृक्ष मानव-मित्र हैं। वे मानव को दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ और आज का विज्ञान दोनों वृक्षों की महिमा का भरपूर गुणगान करते हैं। हमारे धर्मग्रंथ तो वृक्षों को देवतुल्य समझते हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- “मैं पीपल हूं।” यह भी ज्ञातव्य है कि पीपल वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। आज का विज्ञान भी यह साबित कर चुका है कि सबसे अधिक प्राणवायु (ऑक्सीजन) पीपल वृक्ष से ही मिलता है। इसीलिए हमारे देश पीपल की पूजा की जाती है। तुलसी के मूल में तो भगवान विष्णु का वास माना जाता है। तुलसी प्रत्येक हिंदुओं के घरों में पाया जाता है। इसी प्रकार अशोक की छाल एवं पत्तियों से अनेक प्रकार की औषधियां बनती है। अपने नाम के अनुरूप हमारे शोकों का शमन करता है।
नीम के बारे में कहना ही क्या? इसकी उपयोगिता अवर्णनीय है। इसका रस, गोंद, पत्ती, फल, बीज एवं तना सभी के सभी उपयोगी हैं। नीम के संबंध में एक कहानी सुनी जाती है। युनान देश के एक वैद्य ने भारतीय वैद्य की परीक्षा लेनी चाही। युनानी वैद्य ने भारतीय वैद्य के पास अपने एक दूत को भेजा। पत्र में लिखा था- ‘श्रीमान् मैं एक कुष्ठ रोगी को भेज रहा हूं। आप इसे ठीक कर वापस भेज दें।’ भारतीय वैद्य ने प्रत्युत्तर के साथ इसको वापस भेज दिया। दूत को यह हिदायत दी गई कि रास्ते में तुम्हें जहां-जहां नीम का वृक्ष मिले उसी की छाया में विश्राम करना। उसी की पत्ती एवं छाल को औटाकर पीना और नीम के जल से ही स्नान करना। प्रत्युत्तर के साथ दूत युनानी वैद्य के समक्ष खड़ा था। प्रत्युत्तर में भारतीय वैद्य ने लिखा था- ‘मैं एक स्वस्थ व्यक्ति को भेज रहा हूं।’ सचमुच युनानी वैद्य के सम्मुख
एक स्वस्थ व्यक्ति खड़ा था। इसलिए नीम के बारे में कहा गया है– ‘सर्वरोग हरो बिंबः।‘
इसी प्रकार कमोवेश सभी वन-संपदा से मानव को लाभ ही लाभ है। फलदार वृक्ष तो मानव के लिए वर व्रत है। शाकाहारी भोजन फलों के बिना अधूरा माना जाता है। आम, अमरूद, केले, लीची, अंगूर की पौष्टिकता और स्वाद से कौन परिचित नहीं है। वृक्षों से अच्छी वर्षा होती है। यह भूक्षरण और वायु प्रदूषण को रोकता है।
वृक्षों को बहुतेरे लोग नहीं जानते ।
करके विशुद्ध पर्यावरण को ये सदैव
प्राणियों में करते हैं शक्ति प्राणदायिनी
और वायुमंडल को करके सरस, सहज
उच्चतम पर्वतों पर वर्षा कराते हैं।
काटों न पेड़ और पाटों न झील-तीर,
इससे तुम्हारा ही मिटता अस्तित्व है।
इतना ही नहीं लाह और रेशम के कीड़े वृक्षों पर ही मिलते हैं। कागज का निर्माण चीड़ और बांस से होता है। इसके अलावा भवन निर्माण, कुर्सी, टेबल, रेल के डिब्बे और अन्य फर्नीचर के निर्माण में लकड़ी की उपयोगिता सर्वविदित है। वृक्ष हमें नैतिकता एवं परोपकार का भी संदेश देते हैं।
वृक्ष कबहु नहि पल भंखें, नवीन सिंचै नीर।
पर काज हित साधु धरा सरीर ॥
आज का भौतिकवादी मानव अपनी सुख-सुविधा के लिए वृक्षों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है। इससे पृथ्वी पर वनक्षेत्र के प्रतिशत में कमी आई है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का आधा भाग वन क्षेत्र होना चाहिए। वृक्षों की कमी, मानव जनसंख्या में वृद्धि, कल-कारखाने एवं वाहनों से निकले धुएं हमारे पर्यावरण को दिन-प्रतिदिन बिगाड़ते जा रहे हैं। फलस्वरूप वर्षा में लगातार कमी और अग्नि बढ़ हो गई है। मनुष्य की आयु घट रही है, पृथ्वी का तापक्रम बढ़ रहा है। पृथ्वी विनाश की कगार पर पहुंच रही है।
इस संकट से निजात पाने के लिए एक ही उपाय है कि शीघ्र ही वनों को लगाया जाए। सड़क के दोनों ओर खाली जगहों पर वृक्षारोपण को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। वृक्ष लगाने के लिए किसानों को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हरे वृक्षों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए। सरकार ने इस ओर आवश्यक कदम भी उठाए हैं। अब वृक्षारोपण के बीस सूत्री कार्यक्रम में भी शामिल कर लिया गया है। इस योजना को जन-जन तक पहुंचाकर आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिए। लोगों को चाहिए कि वे जीवन के विशेष अवसरों पर पेड़ लगाएं। सुंदर और हरा-भरा वातावरण एक सुंदर समाज की रचना करेगा। ‘देश बचाओ, पेड़ लगाओ’ को सफलता देकर ही हम सुखी हो सकेंगे। इस ओर सुंदरलाल बहुश्रुणा का ‘चिपको आंदोलन’ अनुकरणीय कदम है।
अस्तु, आओ, पेड़ों की रक्षा का व्रत लें
ये पेड़ ही तो वस्तुतः हमारे पूर्वज हैं।