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Hindi Essay-Paragraph on “Shikshak Divas – 5 September” “शिक्षक दिवस” 600 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.

शिक्षक दिवस

Shikshak Divas – 5 September 

प्राख्यात विद्वान महान् दार्शनिक एक आदर्श शिक्षक और भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन को कौन नहीं जानता। इन्होंने अपना सामाजिक जीवन एक शिक्षक के रूप में प्रारंभ किया था। इन्होंने अपना सामाजिक जीवन एक शिक्षक के रूप में प्रारंभ किया था। इसके बाद वे धीरे-धीरे अपनी क्षमता एवं कार्य कुशलता से अन्य उच्चपदों को सुशोभित करते हुए भारत के राष्ट्रपति पद तक जा पहुंचे, उनके मन में शिक्षकों के प्रति काफी आदर भाव था। वे सदा शिक्षकों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक उत्थान के बारे में सोचा करते थे। क्योंकि वे सत्य को भलीभांति समझते थे कि शिक्षक ही राष्ट्र के निर्माता हैं। बिना शिक्षकों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक उत्थान के राष्ट्र का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। एक भूखे एवं हीनभावना से ग्रस्त शिक्षक से राष्ट्र निर्माण की बात सोचना व्यर्थ है। इसलिए इन्होंने अपना जन्म दिवस शिक्षकों के नाम पर न्योछावर कर दिया। ऐसा करके डॉ. राधाकृष्णन ने कबीर दास की भांति शिक्षकों की महिमा को मंडित किया है। यही कारण है कि संपूर्ण भारत में 5 सिंतबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

लेकिन जिस धरती पर संत कबीर ने गुरु और गोविंद की महिमा को गोविंद से बढ़कर मंडित किया है। उसी धरती पर आज यह महिमा खंडित हो रही है। इसके लिए शिक्षक, छात्र और सरकार सभी दोषी हैं। आजादी के वर्षों बाद भी सरकार द्वारा शिक्षा के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। अब भी भारत में वित्त रहित शिक्षण-व्यवस्था जारी है। वित्त रहित शिक्षण-संस्थाओं में भी शिक्षकों को पूर्ण एवं नियमित वेतन नहीं मिल पा रहा है।

छात्रों के आचरण में भी गिरावट आई है। इन दिनों शिक्षक सिर्फ विद्यालय जाने की औपचारिकता निभाते हैं। यह कहना गलत होगा कि आज के शिक्षक विद्यालय के द्वारपाल की तरह कक्षपाल होकर रह गए हैं।

ऐसे माहौल में शिक्षक दिवस मनाने का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। शिक्षक दिवस मनाने से कम से कम एक दिन तो समूचा राष्ट्र शिक्षकों के बारे में सोचता है एवं उनके विकास की बातें करता है। इस दिन शिक्षक दिवस संबंधित टिकट बेचकर प्राप्त राशि को शिक्षक कल्याण कोष में जमा किया जाता है। इस कोष का उपयोग शिक्षकों के किसी आकस्मिक गंभीर बीमारी के इलाज में, शिक्षक पुत्र-पुत्रियों की उच्च शिक्षा में एवं उनके अन्य कल्याणकारी कार्यों में होता है।

शिक्षक समाज के आदर्श होते हैं। उनके नैतिक मूल्य और आदर्शों से बच्चों के मानसिक विकास को आधार प्रदान करते हैं। अतः इस दिन कुछ चुने हुए शिक्षकों को उनके विशिष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जाता

लेकिन आज जिस ढंग से शिक्षक दिवस मनाया जाता है, लगता है, सिर्फ एक रस्म की अदायगी की जा रही है। अभी तक इतने वर्षों के बाद भी लोग इससे भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाए हैं। शिक्षक दिवस मनाने का उददेश्य, तो तभी पूर्ण होगा जब इसे आंदोलन का स्वरूप दिया जाएगा। रेडक्रॉस की भांति शिक्षक दिवस को भी जब तक प्रशासन की छत्र-छाया प्राप्त नहीं होगी तब तक इसकी सफलता संदिग्ध बनी रहेगी। अतः जनता एवं सरकार दोनों को शिक्षक दिवस पर खुले हाथों दान कर शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधारने में योगदान करना चाहिए। शिक्षकों को भी चाहिए कि वे कोई ऐसा काम न करें कि जिससे समाज में उनका सिर नीचा हो। उन्हें छात्रों के प्रति, समाज के प्रति तथा राष्ट्र के प्रति अपने फर्ज को गंभीरता से अदा करना चाहिए। सिर्फ पैसों के लिए काम करने वाले शिक्षकों को समाज एवं राष्ट्र सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेगा।

संक्षेप में, शिक्षक दिवस छात्र, जनता, शिक्षक एवं सरकार सभी के लिए संकल्प लेने का अवसर हैं। छात्र और अभिभावक शिक्षकों के प्रति सम्मान भाव रखे। शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह जिम्मेदारीपूर्वक करें। सरकार को भी शिक्षा का वेतन और अन्य सुविधा प्रदान करे। तभी इसकी सार्थकता है।

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