Hindi Essay, Paragraph on “Police Samaj ke Rakshak”, “पुलिस समाज के रक्षक” 600 words Complete Essay for Students of Class 10,12 and Competitive Examination.
पुलिस समाज के रक्षक
Police Samaj ke Rakshak
अप्रतिम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के परिवेश में तीव्र गति से हो रहे सामाजिक परिवर्तन ने व्यवस्था-संबंधी अनेकानेक चुनौतियां पुलिस बल के समक्ष प्रस्तुत कर दी है। आज का पुलिस बल नित नयी-नयी समस्याओं से जूझ रहा है। नित नयी-नयी चुनौतियां का सामना करना पुलिस जन अपने विवेक और दृढ़ संकल्प से हर समस्या पर विजय पाता हुआ, विजयी का वरण पथ-पथ पर करता हुआ लोक कल्याण में लगा है। समाज के सुख-दुःख से उसके अनिष्ट सरोकार हैं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। आदि काल से ही मनुष्य समाज में रह रहा है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है कि जो अपनी आजादी पर अंकुश नहीं चाहता। उसके इसी स्वच्छेद व्यवहार को दृष्टिगत करते हुए एक व्यवस्था का आविर्भाव हुआ है। यह व्यवस्था उसके द्वारा किए जाने वाले गलत कार्यों पर अंकुश लगाने का कार्य करे। चूंकि यह संसार परिवर्तनशील है। आदिकाल से अब तक हमारे समाज, राष्ट्र व राजनीति में बहुत ही ज्यादा परिवर्तन हुए हैं व हो रहे हैं। जिसके फलस्वरूप इस व्यवस्था का ढांचा बदला व आज इसका नाम पुलिस पड़ा, जिसका उद्देश्य भी समयानुसार विस्तृत हो गया है, पर प्रमुख है समाज में सामाजिक प्रगति, समाज में न्याय की स्थापना करना। यही व्यवस्था ही हमें हमारे कर्तव्यों का बोध कराती है।
पुलिस समाज में से चुने गए उन व्यक्तियों का एक समाज है जो प्रतिज्ञा करता है कि वो समाज में फैली बुराइयों का अंत करेगा, व अपने सौहार्दपूर्ण कार्यों से जनता जनार्दन का विश्वास हासिल करेगा। पुलिसकर्मी जन-जीवन से सीधे जुड़ा हुआ व्यक्ति है। भारतीय गणतंत्र एवं समाज के बदलते हुए परिवेश में पुलिस के कर्म क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुए हैं।
पुलिस को अपने सद्व्यवहारों से जनता में यह विश्वास जागृत करने का प्रयास करना चाहिए कि वे हमें जानें, हमसे डरे नहीं, बल्कि हमें सहयोग दें। वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। समाज हमें जानें इसके लिए हमें अपने लक्ष्य को सदैव आगे रखना चाहिए।
पुलिस जन ऐसा व्यवहार रखना चाहिए कि यदि हम लोगों के जीवन पथ पर पुष्प नहीं बिखेर सकते तो कम से कम उस पर हम मुस्कान तो बिखेर ही सकते हैं। मुस्कानें तब बिखरेंगी, जब हम अपने धायित्वों को भली भांति वहन करें। हमें अपना ऐसा उज्ज्वल रूप जनता के समक्ष रखना है कि वो हमारी विरोधी न होकर सहयोगी सिद्ध हो। हमें कथनी-करनी एक करनी होगी।
पुलिस जन का यह कर्तव्य है कि वह समाज व देश की धड़कन को पहचाने व अपनी दूरदर्शिता का ही परिचय देते हुए समाज व यहां के बाशिंदों का ठीक उसी प्रकार पालन पोषण करे, जिस प्रकार घर का मुखिया करता है।
समाज में हमें अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए जनता का विश्वास हासिल करना एक आवश्यक अर्हता है। हमें गर्व है कि हम इस विभाग में हैं, इस विभाग का अपना शानी नहीं है। यह विभाग विश्व में अपना पहला स्थान रखता है। पुलिस की अपनी एक गौरवशाली परंपरा रही है, जिसका इतिहास साक्षी है।।
पुलिस समाज का मेरुदंड है। यह उतना ही सर्वभौमिक सत्य है, जितना कि सूर्य का पूरब से उदय होना। समाज की समस्या व्यवस्था को सुचारू रूप से संपन्न कराने का उत्तरदायित्व पुलिस का ही है। न हमारे हक का कोई हनन करे, न हम किसी के हक का हनन करे। पुलिस जनता व न्यायमूर्ति के बीच की वो कड़ी सदैव ही सत्य को प्रकाश में लाती है व कभी भी अपने उत्तरदायित्व से विमुख नहीं होती है, बल्कि समाज सेवा करते हुए स्वयं को होम कर देती है। जिस प्रकार हमारे इस शरीर को सुचारुपूर्वक कार्य करने के लिए शरीर में मेरुदंड का विशेष स्थान है, उसी प्रकार समाज में सामाजिक, न्यायिक एवं राजनीतिक, इन सारी व्यवस्थाओं को चलाने में पुलिस एक मेरुदंड है। अपने दायित्व का निर्वाह करना, कर्म से पुलिस बड़े उत्साह से करता है।
हमें गर्व है कि हम इस समाज की सहायता करते हैं। हमें समाज में ऐसे रहना है-
तुलसी संत सुअंब तरू, फूलि परहिं परहेतु।
इतने ये पाहव हतें, उतने वे फल देव ॥