Hindi Essay-Paragraph on “Paropkar hi Jeevan hai”, “परोपकार ही जीवन है” 350 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Examination.
परोपकार ही जीवन है
Paropkar hi Jeevan hai
विद्वानों का कहना है कि परोपकार के लिए वृक्ष फलते हैं, नदियाँ बहती हैं, गऊमाता दूध देती हैं और सज्जन पुरुषों का ऐश्वर्य दूसरों के हित में रहता है। इसी प्रकार सूर्य-चन्द्रमा भी दूसरों की भलाई में रत हैं। इसी हेतु धरा सभी प्राणियों के भार को सहन करती है। मेघ बरस-बरस कर सबके लिए अन्न पैदा करते हैं। इससे स्पष्ट है कि सारी-की-सारी प्रकृति हमें परोपकार की शिक्षा देती है। परोपकार करने के कितने ही ढंग हैं हम धन से दूसरों का हित कर सकते हैं। भूखे को रोटी दे सकते हैं। नंगे को वस्त्र दे सकते है। अनपढ़ों के लिए शिक्षा का प्रबंध कर सकते हैं, कुएं खुदवा सकते हैं और धर्मशालाएँ बनवा सकते हैं, यदि हम भगवान की कृपा से धन से वंचित हैं तो तन और मन से भी दूसरों की भलाई कर सकते हैं। अशिक्षितों को शिक्षा का दान कर सकते हैं। वास्तव में देखा जाए तो यही सच्चा दान है। इसके द्वारा मनुष्य अपने तथा परिवार के लिए सुख और शांति को पा सकता है। इसके द्वारा अर्जित धन से अपना तथा बच्चों का पेट पाल सकते हैं। लेकिन आज का मानव यह सब करने से कोसो दूर भाग रहा है। उसका हृदय स्वार्थ से परिपूर्ण हो गया है। उसे हर समय अपने ही सुख की सूझती रहती है। इस कारण से उसका हृदय परोपकार की भावानाओं से पूर्णतया खाली होता जा रहा है हमें मानव के मन को पूर्ण रूप से सुधारना होगा, उसको इस कुवृत्ति को परिष्कृत करना होगा और मानव हित के लोभों को समझकर उनकी सदवृतियों को इस कार्य में पुनः लगाना पड़ेगा, क्योंकि इसके द्वारा हम दूसरों के दुख को दूर करके आंनद की प्राप्ति कर सकते हैं। हम जानते हैं कि भारतीय इतिहास परोपकारी महात्माओं की कथाओं से भरा पड़ा है। वास्तव में मानव जीवन की सार्थकता परोपकार की पवित्र भावना में ही निहित है। यदि हम में इसका अभाव है तो हम पशुओं से भी बदत्तर हैं। परोपकार के द्वारा सुख, शांति, स्नेह, सच्चा त्याग, सहानुभूत्ति, सहनशीलता आदि गुणों से मानवी जीवन परिपूर्ण हो सकता है। अतः हमें परोपकार यश पाने के उद्देश्य से नहीं अपितु कर्तव्य समझकर करना चाहिए।
(350 शब्द )