Hindi Essay, Paragraph on “Mulya Vridhi ki Samasya”, “मूल्य वृद्धि की समस्या” 800 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Examination.
मूल्य वृद्धि की समस्या
Mulya Vridhi ki Samasya
किसी भी देश में मूल्य-वृद्धि एक आर्थिक घटन है। किसी भी देश में चाहे, वह धनवान, प्रगतिशील या निर्धन हो, मूल्य वृद्धि होती ही रहती है, परंतु वह सदैव धीमी गति से होती है। भारत में इस समस्या से हम भयंकर रूप से ग्रस्त हैं, क्योंकि मूल्य वृद्धि दिन-दूनी रात-चौगूनी हो रही है। मध्यम और निम्न वर्ग के लोग इससे त्रस्त है और उनके लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है। दिनोंदिन उपयोगी वस्तुएं जैसे-गेहूं, चावल, दाल, शाक-भाजी, शक्कर, चाय, दूध, तेल, साबुन, ईंधन आदि इतने महंगे हो गए हैं कि समाज का निम्न वर्ग इन्हें खरीदने में कठिनाई का अनुभव कर रहा है। कपड़े, बच्चों की शिक्षा, मकान किराया, आवागमन, मेहमान आदि इस समस्या को और जटिल बना देते हैं।
मूल्य-वृद्धि सारी दुनिया की समस्या है। परंतु यह वृद्धि अमेरिका जैसे संपन्न देश में ऐशो-आराम की वस्तुओं पर हैं। भारत में बड़े किसान तो संपन्न हो गए, परंतु मजदूर वर्ग जो निर्धनता की रेखा के नीचे जी रहा है, परेशान है।
भारत में तीव्र गति से मूल्य-वृद्धि के कई कारण हैं। जनसंख्या विस्फोट और उपभोक्ता वस्तुओं की कमी इसका मुख्य कारण है। हमारी आबादी 2001 में एक अरब से अधिक हो गई, जो 1950 में 50 करोड़ थी। हमारी जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो रहा है। इससे मूल्य वृद्धि हो रही है।
इसके साथ ही शासन कर्मचारियों का वेतन महंगाई को बढ़ा रहा है। परिणामस्वरूप शासन घाटे का बजट बनाता है। इस कमी की पूर्ति के लिए झूठी कागज की मुद्रा छापता है जिसस कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता।
बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों के पास बहुत-सा काला धन है। शासकीय अधिकारियों ने भी घूस और अन्य भ्रष्टाचार के साधनों से बहुत धन इकट्ठा कर लिया है। ये लोग मुद्रा की कीमत नहीं जानते हैं। वे तड़क-भड़क और अनाप-शनाप खर्च करते हैं। इससे कीमतें बढ़ती हैं और इसके विपरीत मध्यम, निम्न-वर्ग के लोग जिनकी आय सीमित है, अपनी कमजोर आर्थिक दशा के कारण कष्ट उठाते हैं। परिणामस्वरूप वे अधिक वेतन और महंगाई भत्ते की मांग करते हैं। वे हड़ताल कर बैठते हैं। शासन तंत्र ठप्प हो जाता है। काम रुक जाता है। इस पर शासन तथा उद्योगपति वेतन और महंगाई भत्ता बढ़ा देते हैं। इसके साथ ही महाजन वर्ग कीमतें बढ़ा देते हैं। उन पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इस प्रकार यह चक्र चलता ही रहता है।
अर्थशास्त्रियों के मतानुसार, मूल्य वृद्धि के कारण हैं-कृषि-उपज में गिरावट, व्यापार, कुप्रबंध, घोर की अर्थव्यवस्था, उद्योगों की कमी, धन का असमान वितरण और जनसंख्या वृद्धि आदि। लगातार मूल्य वृद्धि के परिणाम बहुत अधिक होते हैं। इससे अशांति, चोरी, बैकों की लूट आदि अपराधों में वृद्धि, मिलावट, तस्करी, गबरी इत्यादि असामाजिक कार्य बढ़ते हैं। क्योंकि गरीबी और भुखमरी अपराधों की जननी है।
किसी कवि ने कहा है कि-
आज भुखमरी से तंग आदमी
इस कदर मजबूर है कि
अपनी भूख मिटाने के वास्ते
कर सकता है
कोई भी अपराध।
और यह भी कि
आज भूख के आगे
झुक गया है समूचा इंसान।
इस भयंकर मूल्य वृद्धि के कारण कभी देश का प्रजातंत्र खतरे में पड़ जाता है। यह निरंकुश लोगों के हाथ में पड़ सकता है और हमारी स्वतंत्रता गिर सकती है।
अतः स्थिति और भयावह हो, हमारे हाथ से बाहर निकल जाए कुछ कारगर उपाय करना आवश्यक है। किंतु शासन इस समस्या के प्रति उदासीन और गैर-जिम्मेदार है और जो इससे लाभ उठा रहे हैं, प्रसन्न हैं।
बिना गंभीर विचार के वेतन और महंगाई भत्ते की बढ़ोत्तरी से कुछ लाभ नहीं होगा। इसके स्थान पर उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिए ताकि इससे मांग की पूर्ति की जा सके और कृत्रिम अभाव की पूर्ति की जा सके। उचित मूल्य की दुकानें और संस्थाएं प्रारंभ की जानी चाहिए जिससे उपभोक्ता वस्तुएं जैसेअन्न, घासलेट, शक्कर, कपड़ा, लिखने-पढ़ने की सामग्री, पाठ्य-पुस्तकें आदि की पूर्ति हो सके। इससे चतुर व्यापारियों की संग्रह-वृत्ति पर रोक लगेगी।
दूसरे उपाय के रूप में जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास करने होंगे। कई औषधियां एवं कृत्रिम तरीकों का आविष्कार हो चुका है जिनसे जन्मदर कम की जा सकती है। युवक और संतानोत्पादन में सक्षम युवक-युवतियों को परिवार नियोजन का महत्त्व समझाया जाना चाहिए।
नये उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए। गृह उद्योग भी बढ़ाए जाने चाहिए। इससे बेरोजगारी की समस्या के समाधान के साथ-साथ उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन भी बढ़ेगा। इससे मूल्य-वृद्धि पर नियंत्रण किया जा सकेगा। उत्पादन वृद्धि को सुलभ बनाने के लिए कच्चे माल की पूर्ति की जाती रहनी चाहिए।
बैंकों को चाहिए कि वे ब्याज की दर बढ़ाएं। शासन भी जनता से ऋण ले सकता है। इससे पूंजी में वृद्धि होगी और उससे पंचवर्षीय योजना में सहायता मिलेगी। लाइसेंस-प्रणाली को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
इन उपायों से देश में संपन्नता बढ़ेगी। रहन-सहन का स्तर बढ़ेगा। उद्योग क्षेत्र शांति और सहयोग बढ़ेगा। धनवान और गरीब लोगों में अनावश्यक ऊंच-नीच की भावना कम होगी। इससे मूल्य-वृद्धि अपने आप कम हो जाएगी।
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