Hindi Essay, Paragraph on “Illiteracy Problem in India”, “भारत में निरक्षरता की समस्या” 400 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Examination.
भारत में निरक्षरता की समस्या
Illiteracy Problem in India
शिक्षा के बिना मनुष्य पशु है। दुनिया में भारत सबसे बड़ा प्रजातंत्र है। परंतु दुर्भाग्य से इसमें सबसे अधिक अशिक्षित लोगों का प्रतिशत है। सन् 2001 में भारत की साक्षरता 65 प्रतिशत से अधिक थी। भारत में केवल हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को साक्षर माना जाता है। हमारे देश में लगभग 40 करोड़ से अधिक लोग निरक्षर है। 15-35 आयु समूह का एक बड़ा भाग निरक्षर हैं। परिणाम यह कि इन निरक्षर लोगों का महाजनों, मिल-मालिकों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा योजना किया जा रहा है।
निरक्षरता की महान् समस्या हमारे देश के सामने भी एक चुनौती है। क्योंकि इसके दुष्परिणाम स्वरूप देश में कई तरह के अपराध बढ़ रहे हैं। अतः इस पर काबू पाने के लिए सभी को प्रयास करना पडेगा। जनता को तीन कर्मों में बांटा गया हैं-
पहले वर्ग में, ऐसे बालक-बालिकाओं को जिन्होंने, विद्यालयों को बीच में ही छोड़ दिया है, या जो कभी विद्यालय गए ही नहीं है, औपचारिक शिक्षा देने का प्रावधान है। औपचारिक शिक्षा केंद्रों पर ऐसे छात्रों को शिक्षित कर पांचवीं और आठवीं कक्षा की परीक्षा में बैठाया जाता है। ऐसे शिक्षा केंद्र शिक्षा विभाग के अंतर्गत चलाए जाते हैं।
दूसरे वर्ग में, 15 से 35 वर्ष आयु वाले लोग आते हैं। इनके लिए कार्यक्रम समाज कल्याण विभाग द्वारा चलाए जाते हैं। ऐसी रजिस्टर्ड संस्थाएं, जो इस प्रकार के केंद्र चलाती हैं, उन्हें केंद्रीय सरकार से सहयोग राशि मिलती है।
35 से 50 वर्ष आयु वाले व्यक्तियों की शिक्षा का उत्तरदायित्व विश्वविद्यालयों को सौंपा गया है। वे निरक्षर व्यक्तियों की शिक्षा के लिए साहित्य का प्रकाशन भी करते हैं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में सन् 1949 में प्रौढ़-शिक्षा के लिए एक योजना बनी थी। जामिया मिलिया, दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली जनता पुस्तकालय ने प्रौढ़शिक्षा कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में काफी रुचि दिखाई थीं। इसके पश्चात् 5 दिसंबर, 1969 को प्रौढ़ शिक्षा-समिति की स्थापना की गई थी, जिसने प्रौढ़ शिक्षा के प्रसार के लिए अच्छा प्रयास किया।
हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा के लिए एक बड़ा बजट दिया जाता है। निरक्षरता को दूर करने पर भी एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाता है।
सरकारी प्रयास के बाद भी इसमें बड़ी प्रगति नहीं देखी गई है। इन कमजोरियों के कारण है-
- अध्ययन के लिए कोई निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं है।
- धन और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है।
- हमारे शासकीय कार्यालय और नेता लोग इस कार्यक्रम के प्रति उदासीन है।
परंतु हमें इन कठिनाइयों से निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। यदि सारी जनता भी जागरूकतापूर्वक प्रयास करे तो एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी।