Hindi Essay-Paragraph on “Aryabhata – Bharat ka Pratham Upgrah” “आर्यभट्ट – भारत का प्रथम उपग्रह” 700 words Complete Essay for Students.
आर्यभट्ट – भारत का प्रथम उपग्रह
Aryabhata – Bharat ka Pratham Upgrah
आधुनिक युग विज्ञान का पर्याय बन चुका है। मनुष्य अपने वैज्ञानिक साधनों की सहायता से प्रकृति पर विजय प्राप्त करता हुआ निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। आदिम युग का मनुष्य प्रकृति और परिस्थिति का दास था। उसका जीवन प्रकृति के संकेत पर कठपुतली की तरह नाचता था। वह प्रकृति के सामने असहाय और विपन्न था। प्राकृतिक आपदाएं उसे नित अक्रांत किए रहती थी। गुफा मानव कितना निराश्रित था, आज हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रारंभ से ही मनुष्य प्रकृति को अपने हितों के लिए उपयोग करने की दिशा में सक्रिय रहा है। कभी वह पत्थरों को रगड़कर आग पैदा करता रहा था, कभी पेड़ों की छालों से अपना तन ढंकता था। इस प्रकार प्रकृति से संघर्ष करता, वैज्ञानिक उपलब्धियों से संपन्न होता वह आगे बढ़ता रहा। विज्ञान ने अनंत रहस्यों को उद्घाटित कर दिया है। आज मानव के चरण चंद्रलोक पर चिह्रित हो गए हैं। वह मंगल तथा अन्य ग्रहों के अदृश्य रहस्यों का अध्ययन करने की दिशा में निरंतर बढ़ता जा रहा है। वह दिन दूर नहीं जब वह ब्रह्मांड के रहस्य को खोजने में सफल हो जाएगा।
यद्यपि विज्ञान के क्षेत्र में मनुष्य को अभूतपूर्व सफलता मिली है, किंतु उसकी अन्वेषण वृत्ति और जिज्ञासु आकांक्षा इतने से ही तृप्त नहीं हुई है। वह नित्य नये-नये आविष्कार करता जा रहा है। विश्व के विकसित देश मुख्य रूप से रूस और अमेरिका विज्ञान की प्रतियोगिता में बहुत ही आगे बढ़ गए हैं। अंतरिक्ष के विषय में इन दोनों देश की प्रतियोगिता नये-नये रहस्य को उद्घाटित करती जा रही है। सीमित साधनों के बावजूद भारत ने इस क्षेत्र में अनेक सफलताएं प्राप्त की हैं। भारत को 18 मई, 1974 का दिन अविस्मरणीय रहेगा, जिस दिन शांतिपूर्ण कार्यों के लिए अणुबम का परीक्षण किया। इसके एक वर्ष बाद ही 1975 में भारत ने अपना प्रथम कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट छोड़ा। इस प्रकार भारत ने अपने अंतरिक्ष प्रवेश का प्रथम कदम रखा। भारत के लिए वह दिन स्वर्ण-दिवस के रूप में अविस्मरणीय रहेगा।
आर्यभट्ट का नामकरण पांचवीं सदी के प्रख्यात गणितज्ञ और ज्योतिर्विद आर्यभट्ट के नाम पर किया गया है। भारत का यह उपग्रह सोवियत रूस के अंतरिक्ष अड्डे ‘इंटर कासमस रॉकेट द्वारा छोड़ा गया। छोड़ने के तुरंत बाद यह पृथ्वी से बहुत ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करने लगा।
आर्यभट्ट 250 वैज्ञानिकों और अभियंताओं के 26 मास के अथक प्रयास से बनकर तैयार हुआ। इसका भार 360 कि.ग्रा. है। इसकी ऊंचाई 116 से.मी. तथा व्यास 140 से.मी. है। इसका रंग नीला और बैंगनी है।
यह उपग्रह भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयास का परिणाम है। यह भारत के बंगलौर उपग्रह संस्थान में निर्मित हुआ था। भारतीय वैज्ञानिकों के सहयोग से रूसी वैज्ञानिकों ने इसका परीक्षण अंतरिक्ष अड्डे में किया।
भारत के श्री हरिकोटा तथा रूस के बीयर्सलेक उपग्रह संस्थानों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार आर्यभट्ट सामान्य रूप से सक्रिय है, इससे प्राप्त सूचनाओं में यह ज्ञात होता है कि आर्यभट्ट अंतरिक्ष अभियान में गौरवपूर्ण महत्त्व किया जा रहा है। यह उपग्रह भारतीय तकनीक और विज्ञान का उदाहरण है। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करने वाला 11वां राष्ट्र स्थान है।
यद्यपि दूसरे अन्य विकसित देश अंतरिक्ष विज्ञान में भारत से आगे हैं। परंतु अंतरिक्ष विज्ञान में सीमित साधनों के बावजूद भारत ने यह उपलब्धि हासिल की। भारत की सफलता पर सोवितय रूस के वैज्ञानिक बोरिस पेट्रोव ने कहा है कि “भारत द्वारा सुनियोजित परीक्षण इस काल का अति आधुनिक परीक्षण है तथा यह विज्ञान के अति उच्च क्षेत्र से संबंधित है।” सोवियत वैज्ञानिक के साथ घनिष्ठ मैत्री संबंध तथा सहयोग की स्थापना इस प्रोजेक्ट की बेमिसाल उपलब्धि है।
आर्यभट के अंतरिक्ष में छोड़े जाने के उपलक्ष्य में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
भारतीय अंतरिक्ष अन्वेषण का इतिहास मात्र दो दशकों का है। इसकी प्रथम शुरुआत सन् 1961 ई. में हुई थी, जबकि डॉ. विक्रम साराभाई के द्वारा त्रिवेंद्रम में कृत्रिम उपग्रह व्यवस्था विभाग की स्थापना हुई। इस क्षेत्र में अनेक कठिनाइयां आई, फिर भी भारत आगे कदम बढ़ाता जा रहा है। कुछ बाधाओं को दूर करने के लिए विदेशी सहायता ली गई, जो अपरिहार्य थी। 1972 ई. में रूस और भारत के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार भारतीय उपग्रह की रचना का भार भारत पर था और उसे अंतरिक्ष में छोड़ने का दायित्व रूस पर था। सन् 1972 ई. में त्रिवेंद्रम् में फ्यूल फैक्टरी की स्थापना की गई। मद्रास के श्री हरिकोटा में उपग्रह संबंधी साधनों की स्थापना की गई।
भारत में उपग्रह निर्माण का कार्य तीव्र गति से प्रगति कर रहा है। विश्वास है कि शीघ्र ही भारत में निर्मित उपग्रह भूमि से ही अंतरिक्ष में छोड़े जाएंगे।