Hindi Essay on “Yudh ke Labh aur Haniya” , ”युद्ध के लाभ और हानियां” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
युद्ध के लाभ और हानियां
Yudh ke Labh aur Haniya
युद्ध और लाभ! नहीं, युद्ध का तो नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। युद्ध मूल रूप से कोई अच्दी बात नहीं है। यों स्वभाव से भी मनुष्य शांतिप्रिय प्राणी है और युद्धों से बचा ही रहना चाहता है, फिर भी कई बार उसे युद्ध करने की विवशता ढोनी ही पड़ती है। हानि उठाकर भी तब उसका प्रयोजन राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा और विजय प्राप्त करना हुआ करता है। ऐसा हो जाना लाभ ही तो है, पर कितना अच्छा हो कि युद्ध का अवसर ही देशों-राष्ट्रों के जीवन में न आए। क्या ऐसा हो पाना संभव है? संभव तभी हो सकता है, जब व्यक्ति उदार बनकर मात्र बातचीत द्वरा ही समस्यांए हल करने का संकल्प का ले। परंतु ऐसा हो कहां पाता है?
कुछ विद्वानों की यह उचित मान्यता है कि मूलत: बुरा और विनाशक होते हुए भी कई बार युद्ध लडऩा अनिवार्य एंव लाभप्रद हुआ करता है। जब कोई निहित स्वार्थी व्यक्ति, देश या राष्ट्र किसी अन्य पर अपनी बातें, धारणाएं या सत्ता थोपना चाहता हो तब युद्ध अपने बचाव, सुरक्षा और आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक तथा लाभप्रद हो जाया करता है। बड़े-से-बड़ा बलिदान देकर और कष्ट सहकर भी मातृभूमि की रक्षा मानव का परम कर्तव्य हुआ करता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए युद्ध को अनुचित नहीं कहा जा सकता। देशों-राष्ट्रों के जीवन में कई बार ऐसा समय भी आया करता है जब उसे चारों ओर से आलस्य, उन्माद, लापरवाही और बिखराव का-सा वातावरण घेर लिया करता है। तब युद्ध का बिगुल सहसा बजकर इन सब दूषणों को एकाएक दूर कर जातियों-राष्ट्रों को सप्राण बना दिया करता है। युद्ध नई ऊर्जा, नई उत्सुकता, साहस और उत्साह को भी जातियों के जीवन में जगाया करता है। उसे नए-नए साधन जुटाने, आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर किया करता है। जैसा कि सन 1965 में लड़े गए भारत-पाक युद्ध ने भारत को अनाज के मामले में आत्म-निर्भर होने की दिशा में अग्रसर किया। सन 1962 के चीनी आक्रमण ने देश को शस्त्रास्त्र एंव शक्ति के स्त्रोत जुटाने की प्रेरणा दी। इन युद्धों का ही परिणाम है कि आज हम एक सशक्त राष्ट्र के रूप में, आत्मनिर्भर एंव स्वावलंबी देश बनकर विश्व के मानचित्र पर उभर कर अपना एक अलग एंव महत्वपूर्ण स्थान रखने लगे हैं। न केवल तीसरी दुनिया की, बल्कि विश्व की प्रमुख शक्तियों में से एक महत्वपूर्ण शक्ति माने जाने लगे हैं।
ऊपर बताए अनुसार कई लाभ रहते हुए भी हमारे विचार में युद्धों का न होना ही बेतर है। उससे हानियां ही अधिक हुआ करती हैं। युगां-युगों की साधना और प्रयत्नों से मानव जिस सभ्यता-संसकृति एंव उपयोगी साधनों-प्रसाधनों का निर्माण करता है, युद्ध का एक ही झटका उस सबको विनष्ट करके रा दिया करता है। युद्ध मानवता के सभी उच्च मानों-मूल्यों, सुख-शांति और समृद्धि की उपलब्धियों को क्षण भर में ही समाप्त कर सकता है। उसके कारण जो अविश्वास और तनाव का वातावरण बन जाया करता है, वह फिर कभी चैन नहीं लेने देता। मानव की मूल समस्याओं की ओर से ध्यान हटा केवल युद्ध-विषयक तैयारियों में लीन कर दियाकरता है। मनुष्य की शक्ति, समय और साधन सभी कुछ उसी ओर केंद्रित होकर रह जाया करते हैं। प्रगति औश्र विकास की बातें, सुख-शांति की बातें, कला-संस्कृति की बातें सभी भूली-बिसरी यादें बन जाया करती है। जीवन विभीषिक, अस्थिर, उन्मन बनकर रह जाता है। आज भारत ही नहीं, सारा विश्व महंगाई के जिस भीषण दौर में से गुजर रहा है, सभी जानते हैं कि इसका आरंभ प्रथम विश्व-युद्ध के अंतराल से हुआ था। दूसरे विश्व-युद्ध ने उसे और भी तूल दिया। आज जो पारस्परिक अविश्वास और निहित स्वार्थों के कारण चारों ओर युद्ध का सा वातावरण बना हुआ है, सभी जाने है कि विश्व की आय के स्त्रोतों का अधिकांश भाग इस वातावरण से बचाव के नाम पर युद्धक मानसिकता को बढ़ावा देने और भयानकतम शस्त्रास्त्रों के निर्माण में ही खर्च हो रहा है। परिणामस्वरूप महंगाई का भूत भयानक से भयानकतम होकर अपना विस्तार करता जा रहा है ऐसी स्थिति में युद्ध से प्राप्त होने वाले तथाकथित लाभ भी स्वत: ही समाप्त हो जाया करते हैं। शेष रह जाया करती है मात्र हानियां, जिन्हें भोगने के लिए आज हम विवश हो रहे हैं और अनवरत होते जाएंगे।
ऊपर के ब्यौरे से स्पष्ट है कि युद्ध से लाभ स्वल्प और वह भी कल्पित ही अधिक है, जबकि हानियों की प्रत्यक्षत: भरमार है। युद्ध हजारों-लाखों को अनाथ और बेसहारा बना दिया करते हैं। महामारियां, अकाल और भुखमरियों का कारण बनते हैं। इन सबके कारण मात्र विनाश ही तो पल्ले पड़ा करता है। अत: युद्ध से होने वाले लाभों की बातें भूल उनसे होने वाली व्यापक हानियों के आलोक में हमें ऐसी चेष्टा आज से ही आरंभ कर देनी चाहिए जिससे कि युद्ध का भूत हमेशा के लिए बोतल में बंद हो सागर ही गहराई में डूब जाए। ऐसा होना ही मानवता और उसके भविष्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। अन्य कोई उपाय नहीं। बड़े और समर्थ राष्ट्रों को उदात्त मानवीय दृष्टि अपनाकर युद्धों की विभीषिका से निरीज मानवता को छुटकारा दिलाना चाहिए। रूस द्वारा स्वेच्छा से अनेक शस्त्रों को नष्ट करने की बात एक अच्छी पहल और शुरुआत मानी जा सकती है। जब अमेरिका भी ऐसा कदम उठाएगा, वह दिन युद्धग्रस्त मानवता के लिए वास्तव में बड़ा शुभ होगा।