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Hindi Essay on “Telephone : Suvidha ke sath Asuvidha”, “टेलीफोन : सुविधा के साथ असुविधा” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

टेलीफोन : सुविधा के साथ असुविधा

Telephone : Suvidha ke sath Asuvidha 

 

प्रस्तावना : आखिर मानव का व्यवहार ही तो है। वह कई बार अनियमित एवं असन्तुलित होकर स्थान, समय और स्थिति का ध्यान न रख कर किसी अच्छी वस्तु को भी बुरी सुविधापूर्ण स्थिति को भी असुविधाजनक बना दिया करता है। फलस्वरूप बेमतलब ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाया करती  है।  जिन पर काबू पा सकना मानव के वश में नहीं रह जाया करतायदि व्यक्ति इस प्रकार के साधनों, उपकरणों और स्थितियों को नकार देता है। तो उसे आज की कठिन एवं विषम परिस्थितियों वाले युग में कई प्रकार की आवश्यक सुविधाओं से वंचित होकर अन्य कई प्रकार के कष्ट सहने के लिए बाध्य होना पड़ता या पड़ सकता है। टेलीफोन एक ऐसा ही उपकरण है। जो अपने साथ सौ तरह की सुविधाओं के साथ कम-से-कम पचहत्तर तरह की असुविधाएँ भी लिए रहा करता है।

टेलीफोन: आज की आवश्यकता : आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ने वर्तमान मानव-समाज के लिए जो तरह-तरह के साधन और उपकरण आविष्कृत किये है। उनमें टेलीफोन एक अति महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। कहा जा सकता है।  कि फ्रिज, टेलीविजन, मिक्सर और ग्राइण्डर आदि अनेक उपकरण आज के युग की आवश्यकता होते हुए भी एक सीमा तक ऐय्याशी के प्रतीक एवं परिचायक है। इनके बिना भी मानव जी सकता है।  परन्तु टेलीफोन ऐय्याशी का सामान या साधन तो कतई नहीं है। , यद्यपि मानव जी उस के बिना भी सकता है। ध्यान से विचार करने पर निश्चय ही यह एक बड़ी उपयोगी वैज्ञानिक सुविधा एवं आवश्यकता प्रतीत होती है। इसकी सहायता से व्यक्ति जगह-जगह पर जाने से बच कर अपने व्यवसाइयों से घर बैठे सम्पर्क साध सकता है। सौदेबाजी कर सकता है। इच्छित वस्तुओं को पाने या देने के लिए आदेश ले और दे सकता है। बाजार-भाव जान सकता है। रिश्तों-नातों से भी घर बैठे सम्पर्क साध कर उनके कुशल-क्षेम से  परिचित हो सकता है। आज का जीवन जिस प्रकार बँटा और बिखरा हुआ है। टेलीफोन इस बिखराव और दूरी को मिटाकर निकटता का अहसास करा दिया करता है। इन और इन जैसे अन्य कई कारणों से भी टेलीफोन को आज के युग की एक महती आवश्यकता माना गया  है।

 टेलीफोन : सुविधाजनक सेवा : मान लीजिए आप को किसी  रिश्ते-नातेदार की अगवानी करने रेलवे स्टेशन पर जाना है।  जाने पर पता चलता है कि रेल तो पाँच घण्टे लेट आ ही है। उस समय की फजीहत से दो-चार न होना पड़ता, यदि फोन करके पता लगा लिया होता कि रेल समय पर पहुँच रही है कि नहीं इसी प्रकार आपने कार्य-व्यापार के सम्बन्ध में किसी से मिलना है। या फिर कुछ लेन-देन करनी है। आप आठ-दस, पन्द्रह किलोमीटर का सफर तय कर सर्दी-गर्मी सहते वहाँ पहुँचते है पता चलता है  कि लक्षित व्यक्ति तो कहीं बाहर गया हुआ है। सुनकर निराशा के साथ-साथ अचानक सिर दर्द हो जाना भी निश्चित है। यदि टेलीफोन करके पहले पता करलिया होता कि लक्षित व्यक्ति अपने ठिकाने पर है या नहीं, तो उपर्युक्त विषम स्थिति का सामना न करना पड़ता समय, शक्ति और धन की भी बेकार में हानि न उठानी पड़तीसभी कुछ आसानी से बचाकर किसी अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य करने में खर्च किया जा सकता था इस प्रकार की अन्य कई प्रकार की बातें और स्थितियाँ है। कि टेलीफोन सेवा उपलब्ध होने पर जिन से तत्काल सरलता से निपटा जा सकता है। जीवन में सौ प्रकार के ऐसे सुख-दु:ख और बीमारी आदि के क्षण आते है। कि जिनकी तत्काल सूचना विशिष्ट नज़दीकी जनों, मित्रों और रिश्ते-नातों तक पहुँचनी ही चाहिएउपलब्ध टेलीफोन–सेवा ही वह सुविधा और साधन है। जिससे यह सब सहज ही संभव हो जाया करता है। इसी कारण टेलीफोन एक सुविधाजनक सेवा माना गया है।

असुविधा के कारण : समाधान : टेलीफोन रहने पर मुख्यत: दो प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पडता है। एक तो आस-पड़ोस के रात-बेरात, समय-असमय फोन करने या आने के कारण, दूसरे इससे सम्बन्धित विभाग की काहिली और रिश्वतखोरी के कारण अक्सर होता क्या है। कि आस-पड़ोस के लोग अपने दूर-पास के मिलने वालों को हमारा नम्बर दे दिया करते है। तब या तो सारा दिन उन्हें बुलाने के लिए दौड़ते रहना पड़ता है। या वे स्वयं बार-बार किसी को फोन करने आते रहते है। इसी स्थिति में समय का बंधन न मान वे काफी समय तक बेकार की बातें करते रहते है। और जाते समय रुपया-धेली टिका गएउस बीच हो सकता है। कि कोई हमारा आवश्यक फोन न आ पाए, बनता कार्य बिगड़ जाए, नहीं ; उन्हें इस सबकी कतई कोई चिन्ता ही हुआ करतीकई बार रात-बेरात टेलीफोन घनघना उठता है।  मात्र यह जानने के लिए कि पड़ोसी घर पर पहँचा है। कि नहीं या आज नहीं आएगा, बता दिया जाएइस तरह नींद भर सो भी नहीं सकतेमना कर के पड़ोसियों से बिगाड़ भी तो नहीं सकतेइस प्रकार की असुविधाएँ अक्सर भोगते रहना पड़ता है।

टेलीफोन विभाग काहिली का तब पता चलता है। जब किसी कारणवश फोन खराब हो जाने पर आपको हफ्तों उसकी घण्टी सुनने के लिए तरस जामा पड़ता है। इस बीच कार्य में कितनी हानि पहुँच  चुकी है। यह बाद में पता चल पाता है। विभाग की रिश्वतखोरी का पता तब चल पाता है।  जब कभी न किए गए कॉल्ज को हजारों रुपयों का बिल भी आपके नाम आकर होशोहवास गुम कर देता है। फिर  दफ्तर के हफ्तों-महीनों चक्कर काटते रहने पर भी पहले तो सुनवाई  होती ही नहीं, जब होती भी है। तो रिश्वत देकर बहुत संभव है। बिल न चुकाने के कारण तब तक फोन कट भी चुका हो यदि कट जाए, तब नया लगवाने से भी अधिक मशक्कत, धीरज, साहस और  भाग-दौड़ के साथ-साथ कई जगह कई तरह की दस्तूरी का लेन-देन भी बहुत ही आवश्यक हो जाया करता है व्यवस्था दोष से।

उपसंहार : इस प्रकार स्पष्ट है।  कि पड़ोसियों की ज्यादती और विभाग की रिश्वतखोरी काहिली व्यवस्था के कारण आज टेलीफोन जैसी एक अनिवार्य सुविधा, सुविधा से कहीं अधिक असुविधा बन कर रह गई है। जाने वह दिन कब आएगा, जब एक टेलीफोन उपभोक्ता सर्वथा मुक्तभाव से इस सुविधा का उपयोग कर पाएगा ?

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