Hindi Essay on “Tantya Tope” , ”तात्या टोपे” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
तात्या टोपे
Tantya Tope
तात्या टोपे का जन्म सन 1814 में हुआ था। उनका नाम ‘रघुनाथ राव पाडुं यवलेकर’ था। सन 1818 में पेशवाई सूर्य अस्त हो चुका था। अंग्रेजों द्वारा पेशवा बाजीराव को 8 लाख रुपए पेंशन देकर कानपुर के निकट बिठुर भेज दिया गया था। उस समय बालक रघुनाथ की अवस्था मात्र चार वर्ष की थी। पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब के साथ ही उनका पालन-पोषण हुआ। नाना साहब के बाल सखा होने के कारण दोनों में अटूट प्रेम था। यही कारण था कि क्रांति के समय भी तात्या टोपे पेशवा के दाहिने हाथ बने रहे।
जून 1858 से लेकर 1859 तक तात्या टोपे अंग्रेजों के विरुद्ध पूरी शक्ति से लड़ते रहे। कभी उनके पास तोपें होतीं तो कभी एक बंदूक भी न रहती। सेना के नाम पर कुछ मुट्ठी भर साथी रह जाते।
च्वालियर की पराजय के बाद तात्या टोपे ऊबड़-खाबड़ भूभागों में अंग्रेजी सेना का सामना करते रहे। बिना युद्ध सामग्री के, बिना किसी विश्राम के अपनी सेना सहित एक स्थान से दूसरे स्थान पर अंग्रेजी सेना को छकाते हुए तात्या टोपे घूमते रहे। सीकर के युद्ध के बाद तात्या का भाज्य-सूर्य अस्त हो गया। राव साहब और फिरोजशाह उनका साथ छोड़ गए। निरुपाय होकर उन्होंने तीन-चार साथियों के साथ नरवर राज्य में पोराण के जंगलों में अपने मित्र मानसिंह के पास जाकर शरण ली।
7 अप्रैल 1859 को तात्या टोपे राजा मानसिंह के विश्वासघात के कारण मेजर मींड़ द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। उस समय उनके पास एक घोड़ा, एक खुखरी और संपत्ति के नाम पर 118 मुहरें थीं। बंदी अवस्था में तात्या टोपे को सीप्री लाया गया। वहां पर एक सैनिक अदालत में उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें प्राणदंड दिया गया।
18 अप्रैल 1859 की शाम 5 बजे तात्या को फांसी के तख्ते पर लाया गया। वहां वे अपने आप ही फांसी के तख्ते पर चढ़ गए और अपने ही हाथों फांसी का फंदा गले में डाल लिया और फिर भारत माता का यह रणबांकुरा, फांसी के फंदे पर झूल गया।