Hindi Essay on “Swatantrata Diwas , स्वतंत्रता दिवस” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
स्वतंत्रता दिवस
6 निबंध “स्वतंत्रता दिवस” पर
निबंध नंबर : 01
स्वतंत्रता दिवस का हर देश में अत्यन्त महत्व होता है। यह वही दिन होता है जो हर गुलाम देश अपनी स्वतंत्रता के दिन को पूरे उत्सव के रूप में मनाता है। भारतवर्ष प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त के दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है।
भारत ने 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की दासता से मुकित मिली थी। यह मुकित उसे 190 वर्षों की गुलामी के बाद मिली थी। स्वतंत्र होने के पश्चात देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू और प्रथम राष्टपति के रूप में डा0 राजेन्द्र प्रसाद जी का चयन किया गया था। यह दिन पूरे देश में हर पर्व से बढ़कर मनाया गया था। इस दिन के बाद प्रतिवर्ष दिल्ली के लालकिला पर प्रधानमंत्री द्वारा झंडोत्तोलन का आयोजन किया जाने लगा। इस दिन सभी शिक्षण संस्थानों और कार्यालयों में अवकाश का दिन होता है। इन स्थानों पर विधिवत झंडा फहराया जाता है। छात्र-छात्राओं द्वारा आकर्षक एवं रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। झांकियां निकाली जाती है। मिठाइयां और चाकलेट वितरण किया जाता है।
सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेद-भाव के साथ-साथ इस कार्यक्रम में शामिल होते हैं। यह दिन हर देशवासी को स्वतंत्र होने का अहसास दिलाता है। इस दिन हम उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं जिन्होंने किसी न किसी रूप में भारतवर्ष से अंगे्रजों को भगाने में अपना योगदान दिया। हम उनका कर्ज कभी नहीं चुका सकते,अत: हम उन्हें याद करके अपना कर्तव्य याद करने का प्रयास करते हैं।
आज भारतवर्ष भ्रष्टाचार, जमाखोरी, अपहरण, फिरौती, हत्या, बलात्कार आदि जैसे भयानक रोगों के चंगुल में बुरी तरह से जकड़ता जा रहा है। देश का शायद ही ऐसा कोर्इ हिस्सा बचा हो जो इन से अछुता हो। अत: आज के युवाओं को समिमलित प्रयास कर तथा क्रांति का बिगुल फुंककर भारत को पुन: उसका गौरव दिलाने का प्रयास करना चाहिए, अन्यथा दिन-व-दिन भारत गत्र्त में समाहित होता जाएगा।
स्वतंत्रता-दिवस – 15 अगस्त
निबंध नंबर: 02
स्वतंत्र भारत में अनेक प्रकार के जो राष्ट्रीय पर्व, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं, स्वतंत्रता-दिवस कई कारणों में उन सब में एक अत्याधिक महत्वपूर्ण, प्रेरणादायक और महान है। यह महान दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए कितने-कितने त्याग और बलिदान करने पड़ते हैं। स्वतंत्रता का मूल्य प्राणों की आहुति देकर चुकाना पड़ता है। इसके लिए अनेक प्रकार के दुख और कष्ट उठाने पड़ते हैं। तब कहीं जाकर कोई देश अथवा राष्ट्र अपने मुक्त आकाश पर अपने स्वतंत्र राष्ट्र की महानता का प्रतीक ध्वज फहरा सकता है। अपने राष्ट्रीय ध्वज को फहराता देखकर गर्व एंव गौरव के उन्नत भाव से भरकर उतसव का आनंद प्राप्त कर सकता है। हां, प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त के दिन हम जो स्वतंत्रता-दिवस एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं, उसको मनाने की मूल भावना इसी रतरह की रहा करती एंव रहनी भी चाहिए।
हमारे नव-स्वतंत्रता-प्राप्त भारत के स्वतंत्रता-संघष्ज्र्ञ की वास्तविक कहानी बहुत लंबी है। उसका आरंभ उसी दिन हो गया था, जब व्यापार करने की सुविधांए प्राप्त कर चालाक अंग्रेजों ने अपनी सेनांए भी खड़ी कर ली थीं। फिर धीरे-धीरे यहां की अनेकता और फूट का लाभ उठा सारे देश को अपने साम्राज्यवादी लौह-शिकंजों में जगड़ लिया था। यह सब हो जाने के बाद ही देशवासियों की आंखें खुलीं। वे संगठित होने लगे और सन 1857 में उन्होंने अंग्रेजों के साम्राज्य के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया। यह ठीक है कि इस पहले स्वतंत्रता-संघर्ष और क्रांति का परिणाम भारत के पक्षा में न निकल सका और अंग्रेजों का दमन-चक्र और भी तेजी से चलने लगा पर स्वतंत्रता-प्राप्ति की आग और क्रांति की वह चिंगारी पराधीनता की राख में दबकर भी बुझी नहीं। वह भीतर-ही-भीतर भावी संघर्ष के क्षणों की प्रतीक्षा करती रही। अनेक सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संस्थाओं के संगठित प्रयास ने उस चिनकारी को पिुर हवा दी। हम लोग अखिल भारतीय कांग्रेस के नेतृत्व में एक बार फिर राष्ट्रीय संग्राम के मोर्चे पर पूर्णतया संगठित होकर डट गए। अनेक नौजवानों ने इस संग्राम में अपने-अपने ढंग से प्राणों की आहुति देकर, त्योग और बलिदान करके इसे आगे बढ़ाया। क्रांतिकारी गतिविधियां, सत्याग्रह और अन्य प्रकार के अनेक राष्ट्रीय आंदोलन भी स्वतंत्रता का लक्ष्य पाने के लिए ही चले। ब्रिटिश सरकार ने अपनी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के अनुसार कुछ लोगों को स्वतंत्रता के उस महान अभियान से फोड़ भी लिया, फिर भी संघर्ष चलता रह। अंत में 15 अगस्त 1947 की आधी रात को खंडित रूप में ही सही, भारत को अपनी स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त हो गया। उसी लक्ष्य प्राप्ति की याद में प्रत्येक वर्ष ‘स्वतंत्रता-दिवस’ के इस महान राष्ट्रीय पर्व को मनाया जाता है।
राजधानी दिल्ली में ‘स्वतंत्रता-दिवस’ के इस महान पर्व को मनाने की परंपरा गणतंत्र-दिवस से भिन्न है। इस दिन सुबह-सवेरे लाल किले के चांदनी चौक की तरफ वाले मुख्य द्वार के शिखर पर ध्वजारोहण करके ही मुख्य रूप से यह पर्व मनाया जाता है। यों इसका स्वरूप संक्षिप्त सा हुआ करता है। सुबह से ही लोग लाल किले के सामने जमा होने लगते हैं। तीनों सेनाओं की सलामी टुकडिय़ां, होमगार्ड, पुलिस आदि अर्धसैनिक गण, एन.सी.सी. के छात्र-छात्रांए और स्कूली बच्चे सजधजकर सलामी आदि के प्रदर्शन के लिए सुबह ही आ जुटते हैं। तब देश के प्रधानमंत्री का आगमन होता है। पहले उन्हें सैनिक सलामी दी जाती है। अनेक प्रकार के प्रदर्शन किए जाते हैं। वह परेड का निरीक्षण करते हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर पर बने ध्वजारोहण के मंच पर पहुंच ध्वजारोहण करते हैं। ध्वज के लहराते ही सामूहिक रूप से राष्ट्रीय गान गाया जाता है। सैनिक-बैंड पर उसकी धुन बजती रहतीी है। इस सबके बाद प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश सुनाया जाता है। वह संदेश राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नीतियों पर प्रकाश डालने वाला होने के कारण बड़ा ही महत्वपूर्ण हुआ करता है।
प्रधानमंत्री का यह भाषण कई अन्य दृष्टियों से भी विशेष महत्वपूर्ण हुआ करता है। वास्तव में इस भाषण में प्रधानमंद्धी अपने अनेक प्रकार की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एंव अंर्राष्ट्रीय नीतियों की घोषणा मुख्य रूप से किया करते हैं। अत: लाल किले से दिया जाने वाला प्रधानमंत्री का यह भाषण देश-विदेश सभी जगह बड़े ध्यान से सुना और गुना जाता है। भाषण के बाद एक प्रकार से मुख्य समारोह प्राय: समाप्त हो जाता है। देश के अन्य भागों में भी यह दिवस स्थानीय तौर पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वहां प्रांतों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल या अन्य प्रमुख नेता राष्ट्रीय ध्वज फहराकर, स्वतंत्रता का महत्व और संदेश प्रसारित करते हैं। विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास सभी इस पर्व को समारोह पूर्वक मनाया करते हैं।
यह बात ध्यान रखने वाली है कि इस प्रकार के त्योहार मनाकर ही स्वतंत्र राष्ट्री की सरकार और नागरिकों के कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाया करती। इस दिन हम कठिना से प्राप्त स्वतंत्रता की हर मूल्य पर रक्षा करने का व्रत लेते हैं। ऐसा करके ही वास्तव में इस प्रकार के राष्ट्रीय पर्वों का गौरव ओर महत्व बना रह सकता है। प्रत्येक राष्ट्र-जन का परम कर्तव्य हो जाता है कि वह मूल भावना को समझ अपने व्यवहार को भी तदनुरूप बनाए। तभी ऐसे आयोजन सफल कहे जा सकते हैं। तभी राष्ट्र का गौरव भी बढक़र अक्षुण्ण बना रहा करता है।
स्वतंत्रता दिवस
निबंध नंबर : 03
स्वतंत्रता दिवस अर्थात् प्रदह अगस्त का दिन भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम दिन है जिसे हम भारतीय युग-युगांतर तक भुला नहीं सकेंगे क्यांेकि इसी दिन हमारा देश अंग्रेजी पराधनता से मुक्त हुआ था। लगभग तीन सौ वर्षों की राजनीतिक अस्थिरता के पश्चात् इसी दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व0 पं0 जवाहर लाल नेहरू ने देश का राष्ट्रीय तिरंगा झंडा लाल किले की प्राचीर पर फहराया था जहाँ कि पहले यूनियन जैक लहराया करता था।
देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुका था। सन् 1857 ई0 में ही देशभक्तों ने क्रांति के बीज बो दिए थे। तब से स्वतंत्रता प्राप्ति तक हजारों लोगों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम ने चमत्कारिक मोड़ तब लिया जब गाँधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर सँभाली।
महात्मा गाँधी का पूरा जीवन भारतीयों के हक के लिए संघर्ष में बीता। यह उनका ही नेतृत्व था जब सारा देश उनके बताए गए मार्ग पर चल पड़ा था। उन्होनें जिन शब्दों का प्रयोग किया वे भारत के लिए ही नहीं अपितु विश्व के लिए अद्विितीय थे। उनके शब्द थे – सत्य और अहिसां। गाँधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलनों मे देशवासियों ने अंग्रेजी वस्तुओं का पूर्णतः बहिष्कार किया। अहिंसा के पथ पर चलते हुए हजारों लोगों ने हँसते-हँसते स्वंय को बलिदान कर दिया। नेतागण जेल में डाल दिए गए। अंग्रेजी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलनों को दबाने के सभी तरह से प्रयास किए पंरतु अंततः उन्हें अपने घुटने टेकने पड़े और 15 अगस्त 1947 ई0 के दिन देश को अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिल गई। इसी खुशी में प्रत्येक वर्ष बड़े ही हर्षोल्लास के साथ देश 15 अगस्त के दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता आ रहा है।
स्वतंत्रता दिवस के कई दिन पूर्व से ही देश में इसे मनाने हेतु तैयारियाँ प्रारंभ हो जाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली में तो इसका आयोजन विशेष रूप से होता है। इस दिन प्रतिवर्ष देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर ध्वजारोहण करते हैं तथा राष्ट्रगान गाया जाता है। इस समारोह में अनेक नेता, राजनयिक तथा देश-विदेश के अन्य गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित होते हैं। ध्वजारोहण के पश्चात् माननीय प्रधानमंत्री जी देश के नाम संदेश देते हैं जिसमें वे सरकार की अनेक उपलब्धियों के साथ-साथ भावी योजनाओं व रणनीतियों पर प्रकाश डालते हैं। दिल्ली के अतिरिक्त देश की अन्य प्रमुख संस्थाओं व विद्यालयों आदि में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
इस दिन अनेक स्थानों पर सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। इस दिन छात्र-छात्राओं का उत्साह देखते ही बनता है। विद्यालयोें में विभिन्न प्रकार के खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें छात्र-छात्राएँ बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं। ग्रामीण अंचलों में भी इसका उल्लास देखते ही बनता है। संपूर्ण देश विशेषकर संसद भवन व राष्ट्रपति भवन विद्युत प्रकाश से ही जगमगा उठते हैं।
स्वतंत्रता दिवस का पर्व सभी देशवासियों के लिए पावन पर्व है। यह हमें अमर शहीदों के बलिदानों का स्मरण कराता है तथा इसें पे्ररणा देता हैं कि हम अपने देश की स्वतंत्रता, अखंडता व अक्षुण्णता को बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प रहें। हमें अपने महान् स्वतंत्रता सेनानियों के कृत्यों का अनुसरण करते हुए एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जहाँ अशिक्षा, संप्रदायवाद, अंधविश्वास तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों का अस्तित्व न बचें। इसके लिए जन-जन को जागरूक होने की आवश्यकता है। सच ही कहा गया है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने से अधिक कठिन और जिम्मेदारीपूर्ण है उसे कायम रखना। अतः अपनी आजादी की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए।
स्वतन्त्रता दिवस
निबंध नंबर : 04
आजाद भारतवर्ष का इतिहास 15 अगस्त, 1947 से प्रारम्भ हुआ जिस दिन हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिली। राष्ट्र को अनेकानेक कष्टों एवं दुःखों के बीच गुजरना पड़ा था। इतने अधिक शहीदों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था और इतने अधिक लोगों को जेल की कोठरियों में घुटना पड़ा था कि उनकी गणना सम्भव नहीं।
भारत को स्वतन्त्रता तो मिल गई किन्तु दो हिस्सों में देश का विभाजन हो गया – एक का नाम भारतवर्ष ही रहा, किन्तु दूसरे का नाम पाकिस्तान पड़ा। देश का बहुत बड़ा हिस्सा, जो देश के दोनों सिरों पर स्थित था, पाकिस्तान में चला गया। पूर्वी हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान कहलाया और पश्चिमी हिस्सा पश्चिमी पाकिस्तान। लाखों शरणार्थी अपना घर-बार छोड़कर भारत भाग आए।
किन्तु प्रत्येक राष्ट्र को आजादी प्राप्त करने के लिये बहुत बलिदान देने पड़ते हैं। मातृभूमि की आजादी से बढ़कर कोई भी दूसरी वस्तु अधिक मूल्यवान नहीं।
देश का पहला स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त, 1947 को मनाया गया। उस दिन पं. जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर राष्ट्रीय तिरंगा झण्डा फहराया था।
तब से प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को देश में स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाता है। उस दिन सभी बड़े शहरों में समारोह आयोजित होते हैं। दिल्ली में प्रधानमंत्रीजी लाल किले पर तिरंगा झण्डा फहराते हैं और राष्ट्र के नाम सन्देश प्रसारित करते हैं।
सेना लाल किले की ओर बढ़ती है तथा असंख्य दर्शक प्रतिवर्ष इस उत्सव को देखते हैं।
अन्य बड़े शहरों में सभी सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। कभीकभी ध्वजारोहण के लिए मंत्रियों या उच्च अधिकारियों को आमंत्रित किया जाता है।
इस समारोह का आयोजन सभी स्कूलों और कालेजों में होता है। वहां प्रधानाचार्य हजारों विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति में ध्वजारोहण करते हैं और ध्वजारोहण के समय आस-पास का वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता
कहीं-कहीं पर स्कूलों और कालेजों में नाटकों का आयोजन भी किया जाता है और उनके माध्यम से स्वतन्त्रता आन्दोलन के दृश्यों को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। विद्यार्थी अधिक-से-अधिक संख्या में इस समारोह में हिस्सा लेते हैं और राष्ट्रीय नेताओं के सन्देश उपस्थित समूह के समक्ष पढ़कर सुनाए जाते हैं। कई स्थानों पर जिले के मुख्यालयों में यह उत्सव रात्रि में विशाल खेल मैदानों या सार्वजनिक स्थलों पर भी मनाया जाता है और लाखों की संख्या में उपस्थित दर्शक उसे देखते हैं। कहीं-कहीं पटाखे और फुलझड़ियां भी छोड़ी जाती हैं व सरकारी भवनों को रोशनी से सजाया जाता है।
स्वतन्त्रता दिवस हमारे देशवासियों को उन महान् बलिदानियों की स्मृति को सुरक्षित रखने की प्रेरणा देता है जिन्होंने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान राष्ट्र के लिए कर दिया था। सुभाषचन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद तथा अनेकानेक महान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। कुछ कस्बों और गांवों में सभाओं का आयोजन किया जाता है और राष्ट्रीय शहीदों के महान त्याग और बलिदान की गाथाएं लोगों को सुनाई जाती हैं।
इस वर्ष मुझे भी अपने महाविद्यालय का स्वतन्त्रता दिवस समारोह एवं झण्डारोहण देखने का सुअवसर मिला। प्रधानाचार्य महोदय ने झंडारोहण के पश्चात् एक संक्षिप्त भाषण दिया तथा लोगों को अमर शहीदों की त्याग एवं संघर्ष से पूर्ण गाथाएं सुनाई व मातृभूमि की आजादी का महत्त्व बताया। मुझे दिल्ली में लाल किले के स्वतन्त्रता दिवस समारोह को भी देखने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। इन आयोजनों को देखकर मुझे बहुत गहरी प्रेरणा मिलती है।
मैं अपने देश को बेहद प्यार करता हूं और कामना करता हूं कि आजन्म देश सेवा में रत रहूं।
स्वतंत्रता दिवस
निबंध नंबर : 05
स्वतंत्रा दिवस हमारे देश भारत में प्रतिवर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। यह हमारा महत्त्पूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश अंग्रेज़ी शासन से स्वतंत्र हुआ था इसीलिए प्रतिवर्ष 15 अगस्त को ही हम इसे मनाते हैं। यह शुभ दिन बहुत बलिदान, त्याग और तपस्या के बाद हमारे सामने आया है। ‘स्वतंत्रता’ हमारी अमूल्य संपत्ति है।
यह पर्व भारत के सभी राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन यह पर्व राजधानी दिल्ली में सबसे अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। लाखों की संख्या में बूढ़े, बच्चे, नौजवान, महिलाएँ इस अवसर पर लालकिले के मैदान में इकट्ठे होते हैं। इस अवसर पर भारत के माननीय प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वजारोहण करते हैं। राष्ट्र की जनता के नाम संदेश देते हैं। स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम का दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के माध्यम से सीधा प्रसारण किया जाता है अतः लोग जो वहाँ नहीं पहुँच पाते, वे अपने-अपने घरों में बैठकर स्वंतत्रता दिवस समारोह का कार्यक्रम देख सकते है। इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है। सभी सरकारी भवनों पर रात में रोशनी की जाती है। विद्यालयों में ध्वजारोहण के अलावा अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस स्वतंत्रता के लिए भारतवासियों को बहुत वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा। हमारे कितने नौजवान क्रांतिकारी फाँसी पर लटका दिए गए, कितने वयोवृद्ध जेल में डाल दिये गए। जलियाँवाला बाग कांड भी स्वतंत्रता के इसी संघर्ष के क्रम में हुआ।
इसीलिए हमारा कर्तव्य है कि हम स्वतंत्रता दिवस को उत्साह से मनाएँ और उत्तम नागरिक बनकर कठिनाई से प्राप्त की गई स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध रहें।
स्वतंत्रता दिवस
निबंध नंबर: 06
प्रस्तावना
सुखद एवं पुण्य अवसरों को चिरस्थाई बनाने के प्रयोजनों से त्योहारों का सूत्रपात होता है। जिन पर्वो को धर्म जाति को भूलकर सम्पूर्ण राष्ट्र मनाता है, उन्हें राष्ट्रीय पर्व कहते हैं। स्वतंत्रता दिवस हमारी आजादी का स्मरण दिवस है। किसी देश के लिये आजादी का दिन कितना महत्वपूर्ण हो सकता है, इसकी कल्पना कोई गुलाम देश ही कर सकता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति
भारत को सैकड़ों वर्षों के बाद गुलामी की जंजीरों से मुक्ति मिली। मुक्ति के इस मंगलमय दिन 15 अगस्त 1947 को कोई भी भारतीय कभी भी नहीं भुला सकता। स्वतंत्रता हमें अथक प्रयल एवं अपूरणीय त्याग के कारण मिली है। इसके लिये लाखों लोग शहीद हुए। असंख्य लोगों ने अंग्रेजों की जेलों में दम तोड़ा; उनकी गोलियाँ खाईं।
गाँधी जी के अहिंसक सत्याग्रह ने अंग्रेजी शासन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। सत्याग्रह ने बच्चे-बच्चे में बल भर दिया। ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा भारत के आकाश में गूंज गया। “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है” के ओज पूर्ण नारे दिये गये। गाँधी, नेहरू, तिलक, सुभाष, भगतसिंह, आजाद, गोखले, पटेल आदि महान देशुभक्तों के अथक परिश्रम और बलिदान से अंततः 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ।
स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम
स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रातःकाल प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं। लालकिले पर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराकर राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं। शालाओं और सार्वजनिक स्थलों पर अनेक कार्यक्रम होते हैं। हमारी शाला में भी मुख्य अतिथि द्वारा ध्वजारोहण से कार्यक्रम प्रारम्भ होता है।
देशुभक्ति के गीत, भाषण, वाद-विवाद प्रस्तुत किये जाते हैं। मुख्य अतिथि, प्रधानाचार्य एवं अध्यक्ष के भाषण के बाद अंत में प्रसाद वितरण होता है।
स्वतंत्रता के पश्चात
स्वतंत्रता के इन वर्षों में अनेक योजनाएँ क्रियान्वित की गई। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं – पंचवर्षीय योजनाएँ। वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र में भी देश ने पर्याप्त प्रगति की है। अंतराष्ट्रीय क्षेत्र में भी हमने गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। विकास के सभी क्षेत्रों में उन्नति हुई है।
उपसंहार
हम भारत के नागरिक सदैव याद रखें कि अथक प्रयलों और बलिदानों की लम्बी श्रृंखला के बाद जिस आजादी को हमने पाया है, उसे गौरवपूर्ण बनाएँ। सफलताओं पर प्रसन्न अवश्य हों, किंतु दुर्बलताओं की ओर से आँखें बन्द न करें।