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Hindi Essay on “Srinivasa Ramanujan” , ”श्रीनिवास रामानुजन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

श्रीनिवास रामानुजन

Srinivasa Ramanujan

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को मद्रास में हुआ था। स्थान है कुंभकोणम के पास इरोड नामक गांव। उनके पिता का नाम था श्रीनिवास आयंगर। उनके पिता एक व्यापरी के यहां कार्य करते थे।

श्रीनिवास की प्रारंभिक शिक्षा कुंभकोणम हाई स्कूल में हुई। उनकी स्मरण-शक्ति बहुत अच्छी थी। गणित के टेढ़े सवालों को हल करने के लिए वे अपने मित्रों के बीच बहुत प्रसिद्ध थे। छह से सात दिनों से ही गणित की किसी नई पुस्तक के सारे सवालों को वे हल कर डालते थे। उनकी इस प्रतिभा को देखकर उनकी सहपाठी हैरान रह जाते थे। उन्होंने गणित के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए।

श्रीनिवास ने सबसे पहले अंकगणित के सूत्र तैयार किए। उसके बाद वे ज्योमिति की ओर झुके और फिर बीजगणित की ओर। सन 1903 में उन्होंने मैट्रिक की परक्षा उत्तीर्ण की थी। उसके बाद इंटर की परीक्षा दी थी, किंतु वे उसमें असफल रहे। इंज्लैंड के प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ. हार्डी ने उनकी बहुत सहायता की। हार्डी का कहना था रामानुजन को मैंने जितना कुछ समझाया, उससे कहीं अधिक मैंने उनसे सीखा।

सन 1903 में जानकी देवी के साथ उनका विवाह हो गया था। सन 1922 में उनका पहला निबंध मैथेमेटिकल सोसाइटी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। तब वे मात्र 23 वर्ष के थे। सन 1916 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय लंदन से उन्हें बी.ए. की उपाधि दी गई थी। रॉयल सोसाइटी और टिनिटी कॉलेज कैंब्रिज ने उन्हें अपना फैलो नियुक्त किया था। इस तरह से किसी ीाारतीय को मिलने वाला यह पहला सम्मान था।

सन 1917 में रामानुजन तपेदिक की चपेट में आ गए। सन 1919 में वे अपने देश लौटे थे। उनका स्वास्थ्य गिरता गया। 23 अप्रैल 1920 को मद्रास में उनका देहांत हो गया। तब वे केवल 33 साल के थे।

विदेशों की पत्र-पत्रिकाओं में उनके निबंध और सूत्र प्रकाशित हुए। उनके शोध-पत्र छपे। हां, उनके सारे शोध संख्याशास्त्र पर आधारित थे। उन्होंने विश्व को यह सिद्ध करके दिखा दिया था कि किसी भी पूर्ण संख्या को तीन तरह से लिखा जा सकता है।

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