Hindi Essay on “Sada Jivan Uchch Vichar” , ”सादा जीवन उच्च विचार” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
सादा जीवन उच्च विचार
Sada Jivan Uchch Vichar
निबन्ध नंबर :- 01
इस तरह की सहजता, स्वाभाविकता बहुत बड़ा गुण है। परंतु आज का युग प्रदर्शन और कृत्रिमता का युग बनकर रह गया है। आज तडक़-भडक़ को ही विशेष एंव अधिक महत्व दिया जाने लगा है। तन पर पहनने वाले कपड़े हों या घरों-दफ्तरों के उपकरण और उपयोगी सामान सभी जगह प्रदर्शनप्रियता के कारण कोरी चमक-दमक का बोलबाला है। सादगी और सादे लोगों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। हमारे विचार में इसी का दुष्परिणाम पूरे समाज के नैतिक पतन, भ्रष्टाचार एंव अराजकता के रूप में हमारे सामने आ रहा है। चारों तरफ अशांति, आपाधापी और लूटपाट का बाजार गरम है। बड़े-छोटे का कोई विचार, भेद और सम्मान नहीं रह गया। भौतिक साधनों और तडक़-भडक़ को पाने के लिए दूसरों के पांव घसीट और उन्हें नीचे गिराकर सब आगे बढ़ जाना चाहते हैं। लाखों-करोड़ों रुपए कमाकर भी तृष्णांए शांत नहीं हो पातीं। और-ओर की प्यास बढ़ती ही जा रही है। ऐसा करने वाले लोग अपनी भटकी चेतनाओं का बहाव देखते और समझते भी हैं। कई बार इन स्थितियों से छुटकारा पाने की बात सोचते भी हैं पर छुटकारा प्राप्त नहीं कर पाते। प्रश्न उठता है क्यों? आखिर क्यों छुटकारे के स्थान पर तृष्णाओं का अनंत विस्तार होता जा रहा है? क्यों लोग भाई तक का गला काट लेना चाहते हैं। दूसरे को नोच-खसोट कर खुद सजना-संवरना ओर बनाना चाहते हैं। न चाहते हुए, इन सबके दुष्परिणामों से परिचित रहते हुए भी क्यों लोग इसी राह पर अंधाधुंध भागे जा रहे हैं? चाहकर भी छूट क्यों नहीं पाते? सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है कि जब तक लोग व्यर्थ की तडक़-भडक़ से बचकर, इच्छाओं का विस्तार रोककर सहज जीवन जीवने की आदत नहीं डालते, तब तक इस विषमता से छुटकारा नहीं। यही सोचकर तो महापुरुषों ने यह मूलमंत्र दिया है :
‘सादा जीवन, उच्च विचार।’ अर्थात सादगी भरा रहन-सहन, खान-पान और अन्य प्रकार के जीवन-व्यवहार बनाने पर ही आदमी के मन में अच्छे भाव और विचार आ सकते हैं। वे सादगी भरे उच्च विचार ही व्यक्ति के जीवन का उच्च और महान बना सकते हैं। विचारों और व्यवहारों को उचच बना लेने पर ही मनुष्य को उस वास्तविक सुख-शांति की प्राप्ति संभव हो सकती है कि जिसकी खोज में वह दिन-रात मारा-मारा, भटकता फिरता और चारों ओर मार-धाड़ करता रहता है। जिसे मोक्ष या मुक्ति कहते हैं, मरने के बाद तो पता नहीं वह कभी किसी को मिल पाती है कि नहीं परंतु जीते-जी मनुष्य मोक्ष या मु िकत की अनुभूति अवश्य पा सकता है। वह सादे जीवन और विचारों में उच्चता यानी स्वरूपता आने पर ही संभव हो सकती है। इस तथ्य को हर देश के मनीषी ने भली प्रकार समझा है। तभी तो अपनी-अपनी भाषा और अपने-अपने ढंग से सभी ने इस तथ्य को उजागर करने का व्यावहारिक प्रयास किया है। हमारे देश को अहिंसा के असत्य से स्वतंत्र कराने वाले महात्मा गांधी का जीवन कितना सादगीपूर्ण था। एक लंगोटी और ऊपर से एक चादर, वह भी अपने हाथों से काती-बुती खादी की। उनका आहार-विहार भी एकदम सादा था। वह मोटा खाते, मोटा पहनते और बकरी का दूध पीकर संतोष कर लिया करते थे। उनके विचार भी रहन-सहन और खान-पान के समान ही सादे थे पर बहुत उच्च और महान। उन उच्च एंव महान विचारों के बल पर ही तो वे ‘विश्वबंध्य बापू’ होने का अंतर्राष्ट्रीय मान-सम्मान प्राप्त कर सके। देश की जनता में जागृति उत्पन्न कर, उसे संगठिन बनाकर स्वतंत्रता के लक्ष्य तक पहुंचा सके। तभी तो उनका जीवन ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के मुहावरे को साकार करने वाला स्वीकारा जाता है। सारा संसार उन्हें महत्व देता और पूजता है। क्या इस उदाहरण और आदश्र से इस कथित मुहावरे का वास्तविक अर्थ एंव उद्देश्य स्पष्ट उजागर नहीं हो जाता?
अंग्रेजी के विद्वान और भौतिकता को महत्व देने वाले अंग्रेज भी इसका महत्व समझते थे। तभी तो उन्होंने भी सिंपल लीविंग एंड हाई थिंकिंग का उदघोष करके वही सब भाव प्रकट किया जो ‘सारा जीवन उच्च विचार’ का मुहावरा प्रकट करता है। कहावत है कि जैसा खाता अन्न, वैसा होता मन! अर्थात जब हम अराम का खाते-पीते हैं, तो हमारा मन भी हरामी हो जाता है। वह इधर-उधर भटकाकर मनुष्य को यदि जीवन नहीं तो बेजान मशीन अवश्य बना देता है। तभी तो वह स्वंय बेचैन रहकर दूसरों को भी बेचैन रखता है। इसके विपरीत, सादे खान-पान से व्यक्ति का व्यवहार, आचार-विचार भी सादा रहता है। सादगी से मन-कर्म में संतोष आता है। संतोष्ज्ञ आदमी को न तो पशु बनने देता है और न जड़ मशीन ही। वह महज आदमी रहकर ऐसे कार्य करता है, जिससे उसका अपना तो हितल्-साधन होता ही है, यथासंभव पूरे समाज और समूची मानवता के हित-साध्य का प्रयास भी उसमें समाया रहता है। सादगी और विचारों की उच्चता के इस सहज स्वाभाविक पाठ को आज हम भूल गए हैं। अपने-आपको कहने को तो सभ्य सुसंस्कृ कहते हैं, पर यह सब महज दिखावा ही होता है। हमारे भीतर छिपा और पनप रहा पशु हमें मनुष्यता के सहज स्तर पर कभी भी खड़े नहीं रहने देता। तभी तो आज चारों तरफ अराजकता और अशांति का राज है। असहिष्णुता ओर मार-धाड़ है। कहीं संप्रदाय और धर्म के नाम पर आदमी को बरगलाया जा रहा है, कहीं राजनीति और व्यापार के नाम पर भडक़ाया जा रहा है। फलस्वरूप दंगे-फसाद होते हैं, सीमा-संघर्ष और युद्ध तक हो जाते हैं। तृष्णा और अशांतियों के क्षेत्र का और भी विस्तार हो जाता है। निश्चय ही थोड़ा-सा प्रयत्न करके ही उन सब दुष्कर्मों और दुष्प्राभावों से बचा जा सकता है। उसका रास्ता ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के निहितार्थ में से ही बनता और जाता है।
हम सब मनुष्य हैं। मनुष्य होने के नाते हम सबको जीवन की सामान्य आवश्यकता-पूर्ति के उपकरण सहज भाव से पाकर जीवन जीने का अधिकार है। इस अधिकार को पाने का हमारे विचार से मात्र एक ही उपाय या एक रास्ता है। वह है सादा जीवन, उच्च विचार, अन्य कोई नहीं। इसी से मानव और समाज सभी का हित-साधन संभव हो सकता है।
निबन्ध नंबर :- 02
सादा जीवन उच्च विचार
ada Jeevan Uch Vichar
कहावत प्रसिद्ध है-‘सादा जीवन उच्च विचार, लेनी एक न देनी चार’ अर्थात जो सादगी से जीवन जीना जानता है, अच्छे और ऊँचे विचार रखता है, उसे न तो किसी से कुछ लेना पड़ता है और न देने की ही नौबत आया करती है। उसकी इच्छाएँ-आकांक्षाएँ अपने आप ही स्वल्प और सीमित हो जाया करती हैं। जब बहुत आवश्यकता से अधिक कुछ पाने की इच्छा ही नहीं, तो सभी प्रकार के सांसारिक झगड़े अपने-आप समाप्त हो जाया करते हैं। लड़ाई-झगड़ा करने की नौबत ही नहीं आ पाती। यही कारण है कि हर देश, जाति-धर्म, वर्ग के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की कहावत को माना और महत्त्व दिया है।
इच्छाओं का विस्तार आदमी को स्वार्थी बना दिया करता है। स्वार्थी आदमी अपने स्वार्थ के आगे औरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता तक का ध्यान नहीं रखा करता। दूसरों के सहन करने की भी एक सीमा हुआ करती है। अन्य व्यक्तियों का सब्र जब सीमा को पार कर जाता है, तब स्वार्थियों की क्रिया होना स्वाभाविक हो जाया करता है। बस, यों समझिए कि संसार में छोटे-बड़े जितने भी लडाई-झगडे और फिसाद हुए या हो सकते हैं, उन सब की बुनियाद एकदम इसी प्रकार से पड़ा करती है। ऐसे हानिकारक अवसर न आएँ, मानवता विनाश से बची रहे; यही सब सोच-समझ कर जागरुक महापुरुषों ने सादगी और अच्छे-ऊँचे विचारों पर बल दिया है।
सादगी पसन्द व्यक्ति कि इच्छाएँ बहुत सीमित, एकदम कम रह जाती हैं । वह थोड़े में गुजारा कर लेने का आदि हो जाता है। इस प्रकार का अभ्यास पड़ जाने पर व्यक्ति के विचार भी अपने-आप बदल जाते हैं। अच्छे, सादे और उच्च बन जाया करते हैं; क्योंकि उस का ध्यान फालतू बातों की तरफ जा ही नहीं पाता, अतः स्वभावतः विचारों में भी किसी तरह का भड़काव नहीं आया करता। ऐसा व्यक्ति ही बाकी संसार के लिए कुछ कर भी सकता है। संसार के दुःखी और पीड़ित लोगों को कुछ दे भी पाता है।
महात्मा टालस्टॉय, महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर आदि महान् व्यक्तियों की जीवनियाँ और कार्य हमारे सामने हैं। टालस्टॉय का जन्म एक बहुत बड़े जमींदार परिवार में हुआ था। लेकिन दुःखी मानवता के दुःख ने उन्हें सब कुछ छोड़-छाड़ कर उसकी सेवा में लग जाने को प्रेरित किया और वे लग गए। आज सारी दुनिया महान मानवतावादी कह कर उनके सामने नतमस्तक होती है। इसी प्रकार कौन नहीं जानता कि महात्मा गांधी धनी परिवार के और नामी-गिरामी वकील थे। चाहते तो लाखों-करोड़ों कमाकर आराम और विलासिता का जीवन जी सकते थे। पर नहीं, जल्दी भले ही समझ आ गया कि जो सुख सादगी म है, जिस प्रकार की शान्ति मानवता का हित साधन करने वाले अच्छे और ऊँचे विचारा से मिल सकती है, वह सब विलासिता या भडकीला जीवन व्यतीत करने में कहाँ? ऐसा ही कुछ सोचकर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने महानगरीय जीवन त्याग कर प्रकृति की सादी शान्त गोदी में जाकर डेरा डाल लिया था। इस प्रकार सादगी का महत्त्व बताने वाले, विचारों की महत्ता उजागर करने वाले और कई उदाहरण भी मिल जाते हैं।
सन्त कबीर का पेट पालने के लिए कपड़ा बुनना, गुरु नानक देव का खेती करना, औरण का गौएँ चराना और खलीफा उमर का अपने महलों में चटाइयाँ बुन-बेचकर गाजर-बसर करना सादगी और वैचारिक उच्चता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इन्होंने प्रमाणित कर दिया कि महान् कार्य करने के लिए किसी प्रकार की तड़क-भड़क या बेकार की बडी-बड़ी बातें तथा भाषणबाजी कतई आवश्यक नहीं हुआ करती। एक कपड़ा बुनने वाला सीधा-सादा व्यक्ति बड़े-बड़े विद्वान् समझे जाने वालों, आडम्बर-पाखण्ड को जीवन मानने वालों की बोलती बन्द कर सकता है। एक खेती-बाड़ी करने वाला सीधा-सादा व्यक्ति भ्रमित बुद्धि वालों के मक्के मदीने को अपने इशारों पर नचा सकता है। एक गौएँ चराने वाला बाल-ग्वाल कालिया दानव और कंस जैसे दम्भी का दम्भ मसल सकता है और एक लंगोटी-चादरधारी हड्डियों का ढाँचा शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य की बन्दूकों और तोपों का सामना कर भारत को स्वतंत्र करा सकता है। जीवन की सादगी और विचारों की उच्चता में ऐसी अद्भुत शक्ति हुआ करती है। तभी तो महापुरुष हर हाल में सादगी और वैचारिक उच्चता को प्रमुखता देना अपना पवित्र कर्म-धर्म सब कुछ समझा करते हैं।
सादगी में, वास्तव में एक स्वाभाविक पवित्रता और आकर्षण का भाव हुआ करता है। इसी प्रकार अच्छे और उच्च मूल्यों का संदेश देने वाले विचार कठोर से कठोर व्यक्तियों का भी न्यूनाधिक रूप में प्रभावित किया ही करते हैं। तड़क-भड़क और बड़ी-बड़ी बेकार का बातों ने तो आज तक जीवन संसार को विनाश और तबाही का सन्देश एवं वातावरण दिया है। यह एक परीक्षित एवं निखरा हुआ सत्य है कि केवल विचारों की उच्चता “यवहारा की सादगी ही जीवन की उसकी महान परम्पराओं की, उच्च मानो और मूल्यों की रक्षा कर पाने में समर्थ हो सकती है. अन्य कोई नहीं। आज कल किस प्रकार का वातावरण बन रहा है, परिस्थितियाँ जिस प्रकार की करवटें बदल रही हैं, विनाश की साँवली घटाएँ आगे बढ़कर आगे बढ़कर जिस प्रकार मानव-सृष्टि को अपनी भयानक बाहो में समेट कर पीस डालना चाहती हैं; एक ही मंत्र इन सब से मानवता की रक्षा कर सकता है। वह मंत्र है अनेकशः परीक्षिप्त-सादा जीवन, उच्च विचार।