Hindi Essay on “Rashtra Aur Rashtriyata” , ”राष्ट्र और राष्ट्रीयता” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
राष्ट्र और राष्ट्रीयता
Rashtra Aur Rashtriyata
राष्ट्र और राष्ट्रीयता पूर्ण रूप से परस्पर संबद्ध अत्यंत सूक्ष्म तत्व एंव विषय हैं। किसी विशेष भू-भाग पर रहन ेवाले ऐसे लोग राष्ट्र कहलाते हैं, जिनके सुख-दुख आशा-विश्वास, रीति-रिवाज और परंपराएं, उत्सव-त्योहार और भाषा आदि सब-कुछ सांझा हुआ करता है। उनके धार्मिक विश्वास और सांप्रदायिक मान्यतांए अलग हो सकती हैं, पर सभ्यता-संस्कृति की चेतना बड़ी सूक्ष्मता के साथ परस्पर जुड़ी हुई या फिर एक ही हुआ करती है। वे सभी लोग उस भू-भाग या देश-विशेष की धरती की मिट्टी को मां के समान मानते हैं। वहां के प्रत्येक पेड़-पौधे ओर कण-कण के साथ अपनत्व का संबंध माना करते हैं। वह उनके गर्व और गौरव का कारण भी हुआ करती है। उसी सबके नाम से उनकी देशीयता और व्यक्तित्व के अस्तित्व की पहचान बनती और होती है। सभ्यता-संस्कृति भी उसी के कारण एंव दमखम से जानी जाती है। वस्तुत: देश के समान राष्ट्र का कोई प्रत्यक्ष या मूर्त रूप नहीं हुआ करता, वह भावनात्मक ही होता है। फिर भी उसकी रक्षा के लिए, निर्माण और विकास के लिए देशवासी या राष्ट्रजन उसी तरह प्राणों का बलिदान तक कर देने को तैयार रहते हैं, जैसे अपने मां-बहिनों के सम्मान की रक्षा के लिए। इस प्रकार राष्ट्र और राष्ट्रीयता का महत्व स्पष्ट उजागर है।
यह भी एक स्मरणीय तथ्य है कि राष्ट्र की पहचान से ही व्यक्ति की राष्ट्रीयता जानी जाती है। जैसे हम भारत राष्ट्र के जन हैं अत: हमारी राष्ट्रीयता भारतीय। सबसे पहले हम राष्ट्रीयता के स्तर पर भारतीय हैं, हिंदू-मुसलमान, सिक्ख-ईसाई, जैन, बौद्ध या अन्य कुछ बाद में। हमारा सबसे पहला धर्म है राष्ट्र और राष्ट्रीयता, उसके बाद ही और कुछ हो सकता है। यह भाव ही किसी राष्ट्र और राष्ट्रीयता को जीवित रखा करता है। जिस देश के निवासियों में यह भाव मर या दब जाता है उसका राष्ट्र और राष्ट्रीयता कभी भी अपना अस्तित्व बनाए नहीं रख्र सकते। अत: इस भाव के हमेशा जाग्रत रहने की आवश्यकता है। पर जागृति का अर्थ अंधराष्ट्रीयता या अंधी राष्ट्रभक्ति कदापि नहीं है। अंधराष्ट्रीयता की भावना कई बार व्यक्ति और व्यक्तियों के मन में दूसरे राष्ट्रों की तुलना में अपनी श्रेष्ठता को थोथी बात जगा दिया करती है। उसे सिद्ध करने या दूसरों पर आरोपित करने के लिए युद्धोन्माद को भडक़ाया करती है। विश्व में घटित प्राय: युद्धों के मूल में यह अंधराष्ट्रीयता की भावना रही है। प्रबुद्धजन ऐसा स्पष्ट मानते और कहा करते हैं। जर्मन के हिटलर ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए ही विश्व को दो बार युद्ध की आग में झोंका और नष्ट हो गया। अत: याद रखना चाहिए कि वस्तुत: राष्ट्र और राष्ट्रीयता एक उदात मानवीय सूझ, चेतना और मर्यादा का नाम है। अन्य राष्ट्रों के प्रति सहज मानवीयता समानता और सहयोग का भाव बनाए रखकर उन सबको चिरजीवित रखा जा सकता है। मानवीयता और देशीयता का अमूर्त मूल्य मूर्त का स्वरूपवान होकर ही राष्ट्रीयता को जीवित रखा करता है।
राष्ट्र का वास्तविक आतंरिक स्वरूप तो हमेशा एक ही रहा करता है, पर राष्ट्रीयता बदल भी सकती है। जब कोई व्यक्ति किसी एक राष्ट्र या देश में जन्म लेकर, किसी कारणवश हमेशा के लिए किसी दूसरे देश में जाकर आबाद हो जाता है, तब नियमानुसार उसकी राष्ट्रीयता बदल जाती है। तब उस व्यक्ति और परिवार का उसी राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होना आवश्यक हो जाता है कि जहां वह रह रहा है, जहां धंधा करके अपने तथा परिवार के लिए भी सभी प्रकार केस सुख-साधन जुटा पा रहा है। कई बार दोहरी राष्ट्रीयता के उदाहरण मिल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति अस्थाई तौर पर कुछ वर्षों के लिए किसी अन्य राष्ट्र में रहकर रोजगार या अन्य विशिष्टकार्य करने की अनुमति पा लेता है, तब जन्म-राष्ट्र के उसके अधिकार समाप्त नहीं हो जाते और निवास-राष्ट्र में उसे सभी प्रकार की नागरिकता के अधिकार हमेशा के लिए नहीं मिल जाते। निवास-काल के अनुरूप ही यह सब बना रहा करता है। इस प्रकार राष्ट्रीयता के मुख्य दो रूप ही स्वीकारे गए हैं। एक जन्मजात राष्ट्रीयता और दूसरी अधिगृहीत या प्राप्त की गई राष्ट्रीयता, जो अस्थाई-स्थाई दोनों प्रकार की हो सकती है। मुख्य बात यह है कि स्थाई-अस्थाई या जन्मजात और राष्ट्रीयता का जो भी रूप हो, उसकी सार्थकता अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने में ही है, न कि तन कहीं और मन कहीं बनाए रखने की दुविधापूर्ण स्थिति में। यह स्थिति व्यक्ति और राष्ट्र दोनों के लिए घातक हो सकती है।
राष्ट्र और राष्ट्रीयता अपने आप में दोनों ही बड़े पवित्र, गर्व और गौरव वाले भाव हैं। अत: हर मूल्य पर इनकी पवित्रता, गर्व और गौरव बना रहना चाहिए, इसी में राष्टजनों, राष्ट्र और राष्ट्रीयता का जीवन, महत्व आदि सभी कुछ है। यार रहे, हमारा राष्ट्र रहता है, तभी हमारा धर्म, संप्रदाय, जाति, आस्था, विश्वास और जीवन भी जीवंत रह सकता है। यह सब जीवित रह सके, यह हम राष्ट्रजनों के सुनियोजित आपसी व्यवहार ओर सूझ-बूझ से काम लेकर अपनी ही रक्षा और जीवन के लिए राष्ट्र और राष्ट्रीयता के गौरव और महत्ता को बनाए रखना हम सबका पवित्र कर्तव्य हो जाता है। नागरिकता की पहली शर्त और पहचान से भी इसी सबको स्वीकार किया जाता है। फिर अंध राष्ट्रीयता हानिकर होती है, यह तथ्य हमेशा बना रहकर सहज राष्ट्रीय-भाव को जगाए रख सकता है – बस! इस का जागरित रहना उदात्त मानवीय भाव का जागरण है।